वन नेशन, वन इलेक्शन से देश को क्या फायदा होगा ?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मोदी कैबिनेट ने बुधवार को एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब देश की 543 लोकसभा सीट और सभी राज्यों की कुल 4130 विधानसभा सीटों पर एक साथ चुनाव कराने की राह खुल गई। एक देश एक चुनाव पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट के बाद प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दी है।
इससे एक दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि देश में वन नेशन वन इलेक्शन हर हाल में 2029 से पहले लागू होगा। इसके एक दिन बाद ही एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिलने के क्या मायने हैं?
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन?
एक देश एक चुनाव का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हों। ऐसे समझिए, देश की सभी 543 लोकसभा सीटों और सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की कुल 4130 विधानसभा सीटों पर एक साथ चुनाव होंगे। वोटर सांसद और विधायक चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर अपना वोट डाल सकेंगे।
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर 2 सितंबर, 2023 को एक कमिटी गठित की गई थी। इसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे थे। कमेटी के सदस्यों ने सात देशों की चुनाव व्यवस्था का अध्ययन किया।
स्टेकहोल्डर्स-एक्सपर्ट्स से चर्चा और रिसर्च के बाद 191 दिन में 18 हजार 626 पन्नों की एक रिपोर्ट तैयार की गई। कमेटी ने यह रिपोर्ट 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई। रिपोर्ट में सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक करने का सुझाव दिया है।
कमेटी ने क्या सुझाव दिए?
- सभी विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए।
- पहले चरण में लोकसभा-विधानसभा चुनाव और फिर दूसरे चरण में 100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं।
- चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकाय चुनावों के लिए सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड बनाए।
- देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग करने की भी सिफारिश की है।
देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने से कई फायदे होंगे।
- चुनाव खर्च में कटौती: देश में बार-बार चुनाव कराने पर लॉजिस्टिक्स, सुरक्षा और जनशक्ति समेत कई चीजों पर बहुत पैसा खर्च होता है। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में अनुमानित कुल खर्च करीब 1.35 लाख करोड़ रुपये तक हुआ है, जोकि 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में बहुत अधिक है। 2019 में 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। अगर राज्यवार विधानसभा व स्थानीय चुनाव का खर्च भी जोड़ा जाए तो अंदाजा लगाइए कि ये खर्च कितना होगा। ऐसे में वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने पर चुनाव खर्च में कम होगा।
- प्रशासनिक कार्यक्षमता में वृद्धि: चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू होने से नीति निर्माण और विकास कार्यों में रुकावट आती है। अगर पांच साल में सिर्फ एक बार आचार संहिता लागू होगी तो स्वाभाविक है कि प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी।
- देश में हर छह माह चुनाव होने पर प्रशासनिक मशीनरी और सुरक्षाबलों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकता है।
- लुभावने वादे नहीं आएंगे काम : बार-बार चुनाव लोकलुभावन नीतियों को बढ़ावा देते हैं। एक साथ चुनाव लंबी अवधि की नीति योजना और सतत विकास पर ध्यान केंद्रित करने में मददगार साबित होंगे।
- वोट प्रतिशत में वृद्धि: एक साथ चुनाव होने से मतदाता एक ही समय में कई वोट डाल सकते हैं, जिससे मतदाता भागीदारी में वृद्धि हो सकती है।
क्षेत्रीय दल क्या कर रहे हैं विरोध?
विपक्षी दल जैसे – कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बसपा और सपा इसका विरोध करते इस असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी करार देते आ रहे हैं। इतना ही नहीं, क्षेत्रीय दल को डर है कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे तो राष्ट्रीय मुद्दे प्रमुख हो जाएंगे और वे स्थानीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठा नहीं पाएंगे।
साल 2015 में IDFC की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने पर 77 % संभावना इस बात की होती है कि मतदाता राज्य और केंद्र में एक ही पार्टी को चुनते हैं, जबकि अलग-अलग चुनाव होने पर केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी को चुनने की संभावना घटकर 61% हो जाती है।
लोकसभा सीटों की संख्या 750 होगी?
देश में अभी 543 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव होता है। साल 2029 में होने वाले चुनाव से पहले जनगणना होती है तो परिसीमन भी होगा।
ऐसे में चर्चा यह है कि साल 2029 में होने वाला लोकसभा चुनाव परिसीमन के बाद 543 की बजाय लगभग साढ़े सात सौ सीटों पर होगा। इनमें से नारी शक्ति वंदन अधिनियम के मुताबिक, एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
हालांकि, लोकसभा सीटों को बढ़ाने को लेकर दक्षिण के राज्य विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि अगर समान जनसंख्या के आधार पर परिसीमन के बाद लोकसभा सीटों पर निर्धारण होता है तो लोकसभा में दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधित्व गिर सकता है, जिस कारण वे विरोध कर रहे हैं। बता दें कि उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में दक्षिण भारत के राज्यों में जनसंख्या की बढ़ोतरी कम हुई है।
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