कोविड-19 की तीसरी लहर क्या भयावह होगी,कब आएगी?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कोविड-19 के नए केस घटने और कई राज्यों में अनलॉक होने के बाद अब कोरोना की तीसरी लहर कब आएगी, इसे लेकर वैज्ञानिकों और आम जनता में चर्चा शुरू हो गई है। राहत की बात यह है कि भारत में वैक्सीनेशन ने रफ्तार पकड़ ली है। गुरुवार तक 33 करोड़ से अधिक डोज दिए जा चुके हैं। पूरे देश में 20% से अधिक वयस्क आबादी ऐसी है, जो कम से कम एक डोज ले चुकी है। वहीं, 4.3% आबादी पूरी तरह वैक्सीनेट हो चुकी है।
वैज्ञानिक भी कह रहे हैं कि तीसरी लहर कितनी भयावह होगी, यह वैक्सीनेशन का स्टेटस ही तय करेगा। क्या वाकई में तीसरी लहर आएगी? आएगी तो कब आएगी? यह लहर क्या दूसरी लहर जैसी ही भयावह होगी? यह ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब तलाशे जा रहे हैं। इस पर बहस शुरू तब हुई, जब दिल्ली-एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने 19 जून को कहा कि 6-8 हफ्ते में तीसरी लहर भारत में आ जाएगी। यह दूसरी लहर की तरह ही भयावह होगी। उनका यह फोरकास्ट एक तरह से चेतावनी थी कि कोविड-19 से बचाव के उपायों को छोड़ना नहीं है। हाथों की धुलाई, सोशल डिस्टेंसिंग और सबसे बढ़कर मास्क पहनना जरूरी है। पर उसके बाद अलग-अलग फोरम पर इसे लेकर बहस छिड़ गई।
क्या तीसरी लहर आएगी?
1. अक्टूबर में आएगी तीसरी लहरः रॉयटर्स सर्वे
दावा किसकाः रॉयटर्स न्यूज एजेंसी
दावे का आधारः 3 से 17 जून के बीच 40 हेल्थकेयर स्पेशलिस्ट, डॉक्टरों, वैज्ञानिकों, वायरोलॉजिस्ट, एपिडेमियोलॉजिस्ट और प्रोफेसरों के बीच सर्वे किया। अलग-अलग प्रश्नों पर उनकी राय जानी।
क्या कहाः महत्वपूर्ण बात यह है कि 100% यानी सभी विशेषज्ञों ने माना कि भारत में तीसरी लहर आएगी ही। 85% ने कहा कि अक्टूबर में तीसरी लहर आएगी। वहीं, कुछ ने अगस्त-सितंबर और कुछ ने नवंबर-फरवरी के बीच तीसरी लहर की प्रेडिक्शन दी। अच्छी बात यह है कि 70% विशेषज्ञों को लगता है कि दूसरी लहर के मुकाबले तीसरी लहर काबू में रहेगी। उस समय वैक्सीन, दवाएं, ऑक्सीजन, हॉस्पिटल बेड्स की कमी पड़ी थी। पर तीसरी लहर में पीक भी चार लाख तक नहींं जाएगा।
चेतावनीः 65% विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार बच्चे और अंडर-18 आबादी ज्यादा रिस्क में रहेगी। वहीं ऐसा नहीं मानने वालों की संख्या 35% रही। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (NIMHANS) में एपिडेमियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. प्रदीप बनांदुर का कहना है कि अंडर-18 के लिए वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। ऐसे में तीसरी लहर में वे ही सबसे अधिक रिस्क में रहेंगे। नारायणा हेल्थ के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. देवी शेट्टी ने कहा कि अगर बच्चे बड़ी संख्या में इन्फेक्ट हुए तो हम उसके लिए तैयार नहीं हैं। अंतिम क्षणों में हमसे कुछ नहीं होने वाला।
2. तीसरी लहर में बच्चों को खतरा कम, वयस्क ही रिस्क में
दावा किसकाः WHO और AIIMS
दावे का आधारः सर्वेक्षण के साथ 5 राज्यों में 10 हजार की सैम्पल साइज के साथ सीरोप्रिवलेंस स्टडी की गई। 4,500 पार्टिसिपेंट्स का डेटा लिया गया है। अंतिम नतीजे दो या तीन महीनों में आएंगे।
क्या कहाः भारत में तीसरी लहर आई तो उसमें बड़े-बच्चों में रिस्क बराबरी से रहेगी। ऐसा नहीं कह सकते कि बच्चों को खतरा अधिक होगा। कुछ इलाकों में तो बड़ों की तुलना में अधिक बच्चों में कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बन चुकी है।
एम्स-दिल्ली में कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. पुनीत मिश्रा ने इस स्टडी का नेतृत्व किया। सर्वे का कहना है कि साउथ दिल्ली के शहरी इलाकों में सीरो पॉजिटिविटी रेट सबसे अधिक 74.7% था। इस इलाके में दूसरी लहर की भयावह मार देखी गई थी। इसकी वजह से ज्यादातर लोगों को पता भी नहीं चला और उन्हें कोविड-19 इन्फेक्शन होकर चला गया। ज्यादातर लोग एसिम्प्टोमेटिक रहे होंगे।
सर्वे का कहना है कि बच्चों में एंटीबॉडी बन गई है। स्कूल खोल भी दिए तो रिस्क नहीं होगा। दूसरी लहर में एनसीआर क्षेत्र के फरीदाबाद (ग्रामीण इलाके) में सीरो पॉजिटिविटी रेट 59.3% (बच्चों-बड़ों में एक-सा) दिखा है। यह इससे पहले हुए राष्ट्रीय सर्वे के मुकाबले अधिक है। ग्रामीण इलाकों में गोरखपुर सबसे अधिक प्रभावित हुआ। इसका मतलब यह भी है कि यहां हर्ड इम्युनिटी बनने की संभावना अधिक है। गोरखपुर ग्रामीण इलाके में 2-18 साल के ग्रुप में सीरो पॉजिटिविटी रेट 80% मिली है।
चेतावनीः सर्वे से पता चला कि 62.3% ग्रामीण आबादी कोविड-19 से इन्फेक्ट हो चुकी है। पर अगरतला जैसे पूर्वोत्तर के शहरों में सीरो पॉजिटिविटी रेट सबसे कम (51.9%) मिला है। यानी इन इलाकों में अब भी खतरा कायम है।
3. महाराष्ट्र में तीसरी लहर सबसे भयावह होगीः कोविड टास्क फोर्स
दावा किसकाः महाराष्ट्र कोविड टास्क फोर्स
दावे का आधारः सर्वेक्षण और एनालिसिस
क्या कहाः महाराष्ट्र में तीसरी लहर 50 लाख लोगों को इन्फेक्ट कर सकती है। इसमें भी 10% से अधिक यानी 5 लाख से अधिक बच्चे इन्फेक्ट होंगे। पीक पर एक्टिव केस की संख्या बढ़कर 8 लाख तक पहुंच सकती है।
टास्क फोर्स का कहना है कि यह लहर सबसे भयानक होगी। दूसरी विनाशकारी लहर से भी घातक। यह डेल्टा प्लस वैरिएंट की वजह से आएगी, जिसका देश में पहला केस महाराष्ट्र में ही मिला था। हेल्थ मिनिस्ट्री में जॉइंट सेक्रेटरी लव अग्रवाल के मुताबिक जब वायरस में म्यूटेशन होता है। तब उसकी जीवन शक्ति बढ़ जाती है। जब कई केस होते हैं तो उसके म्यूटेशन की आशंका भी अधिक होती है। हमने पहले भी देखा है और अब भी देख रहे हैं कि महाराष्ट्र में केस कम नहीं हो रहे।
इस चेतावनी के बाद ही राज्य में लेवल 3 के प्रतिबंध फिर लागू कर दिए गए हैं। दुकानें 4 बजे के बाद नहीं खुल सकतीं। वहीं, लॉकडाउन के कुछ नियम लगाए गए हैं। ज्यादातर बड़े शहरों में रात में कोरोना कर्फ्यू लगाया जा रहा है।
चेतावनीः महाराष्ट्र के खाद्य एवं औषधि मंत्री राजेंद्र शृंगारे के मुताबिक 5 लाख बच्चों में 2.5 लाख को अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ सकती है।
4. 15 जुलाई तक सब प्रतिबंध हटा लिए तो सितंबर में आएगी तीसरी लहर: IIT कानपुर
दावा किसकाः IIT-कानपुर के रिसर्चर्स
दावे का आधारः गणितीय मॉडल बनाया है। इसमें कहा गया है कि 15 जुलाई तक मोबिलिटी पर सभी तरह के प्रतिबंध हटा लिए तो तीन परिदृश्य बन सकते हैं।
क्या कहाः IIT-कानपुर के विशेषज्ञों ने ससेप्टिबल-इन्फेक्टेड-रिकवर्ड (SIR) मॉडल के आधार पर यह पूर्वानुमान लगाए हैं। एपिडेमियोलॉजिकल मॉडल में कोविड-19 से इन्फेक्ट हो चुकी आबादी को टाइम सीरीज पर संभावित इन्फेक्टेड लोगों की संख्या का अंदाजा लगाया गया है। दूसरी लहर के डेटा के आधार पर यह मॉडल बना है।
पहले सिनेरियो में तीसरी लहर का पीक अक्टूबर में आएगा। पीक 3.2 लाख केस प्रतिदिन का होगा। दूसरे सिनेरियो में नए और अधिक इन्फेक्शियस वैरिएंट्स को ध्यान में रखा गया है। यह माना गया है कि कोई प्रतिबंध नहीं लगाए जाएंगे, तब पीक सितंबर में आ सकता है। पर इसमें हर दिन 5 लाख केस तक आ सकते हैं।
तीसरे सिनेरियो में अंदाजा लगाया है कि अगर वायरस के प्रसार को रोकने के लिए कड़े प्रतिबंध लगाए गए तो क्या होगा? इसके तहत दूसरी लहर के मुकाबले पीक कमजोर होगा, पर यह भी पहली लहर के पीक से दोगुना यानी 2 लाख इन्फेक्शन रोज तक पहुंचेगा।
चेतावनीः तीनों ही सिनेरियो में दावा किया गया है कि तीसरी लहर आएगी। उसमें पीक सितंबर 2020 की पहली लहर के पीक से दो, तीन या पांच गुना होगी। पर रिसर्चर्स ने वैक्सीनेशन कवरेज को ध्यान में नहीं रखा है। यह एक कमी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि वैक्सीनेशन का बढ़ा हुआ कवरेज पॉजिटिव केसेज के कम होते नंबरों में भी झलकेगा।
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