लंदन स्थित उच्चायोग में भारतीय ध्वज को उतारने के बाद अब क्या होगा?
खालिस्तान समर्थकों पर कार्रवाई करे ब्रिटिश सरकार
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
खालिस्तान समर्थकों द्वारा लंदन स्थित उच्चायोग में भारतीय ध्वज को उतारने के बाद भारत सरकार ने ब्रिटेन के “वरिष्ठतम” राजनयिक, उप-उच्चायुक्त को तलब किया और उन्हें वियना अभिसमय के तहत यूनाइटेड किंगडम की सरकार को बुनियादी दायित्वों की याद दिलाई।
राजनयिक संबंधों पर वियना अभिसमय
- 14 अप्रैल, 1961 को वियना, ऑस्ट्रिया में आयोजित राजनयिक समागम और प्रतिरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा अभिसमय को स्वीकृत किया गया था। भारत ने अभिसमय की पुष्टि कर दी है।
- यह 24 अप्रैल, 1964 को लागू हुआ और लगभग सार्वभौमिक रूप से अनुसमर्थित है, लेकिन पलाऊ और दक्षिण सूडान इसके अपवाद हैं।
- यह विशेष नियम – विशेषाधिकार और प्रतिरक्षा निर्धारित करता है, जो राजनयिक मिशनों को स्थानीय कानूनों के प्रवर्तन के माध्यम से ज़बरदस्ती या उत्पीड़न के भय के बिना कार्य करने और उन्हें भेजने वाली सरकारों के साथ सुरक्षित रूप से संवाद करने में सक्षम बनाता है।
- यह किसी अभियान की वापसी के संदर्भ में प्रावधान करता है, जो आर्थिक या भौतिक सुरक्षा के आधार पर हो सकता है, यह राजनयिक संबंधों के उल्लंघन के संदर्भ में जो प्रतिरक्षा के दुरुपयोग या राज्यों के मध्य संबंधों में गंभीर गिरावट के प्रत्युत्तर में हो सकता है।
- “रिसीविंग राज्य” उस मेज़बान देश को संदर्भित करता है जहाँ राजनयिक मिशन स्थित है।
- इनमें से किसी भी मामले में या जहाँ स्थायी मिशन स्थापित नहीं किये गए हैं, प्रत्येक भेजने वाले राज्य के हितों के लिये एक रूपरेखा प्रदान की जाती है ताकि किसी तीसरे राज्य से प्राप्तकर्त्ता राज्य को संरक्षित किया जा सके।
- यह एक राजनयिक मिशन की “अनुल्लंघनीयता” की अवधारणा की पुष्टि करता है, जो अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की स्थायी आधारशिलाओं में से एक रहा है।
- मूल रूप से किसी भी उच्चायोग या दूतावास की सुरक्षा मेज़बान देश की ज़िम्मेदारी होती है। अतः मेज़बान देश सुरक्षा हेतु जवाबदेह होता है। हालाँकि राजनयिक मिशन भी अपनी स्वयं की सुरक्षा को नियोजित कर सकते हैं।
- उच्चायोग और दूतावास के बीच मुख्य अंतर यह है कि वे कहाँ स्थित हैं। राष्ट्रमंडल सदस्य राज्यों को उच्चायोग द्वारा सेवा प्रदान की जाती है, जबकि शेष विश्व को दूतावास द्वारा सेवा प्रदान की जाती है।
अलगाववादी खालिस्तान समर्थकों द्वारा लंदन में भारतीय उच्चायोग के ऊपर फहराए गए भारतीय झंडे को नीचे उतारने के कुछ दिनों बाद, भारतीय समुदाय ने खालिस्तान समर्थकों के “अपमानजनक कृत्य” के खिलाफ आयोग के सामने सभा कर विरोध जताया. उन्होंने मांग की है कि कि लंदन के मेयर, सादिक खान और ब्रिटिश सरकार अपराधियों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई करें. ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी ने इंडिया हाउस में प्रवासी भारतीयों की एक बैठक की मेजबानी की और इस हमले के बाद भारतीय समुदाय के नेताओं की चिंताओं का समाधान करने का प्रयास किया.
गौरतलब है कि खालिस्तानी झंडे लहराते और खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाते हुए प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने लंदन में भारतीय उच्चायोग के ऊपर फहराए गए तिरंगे को रविवार शाम उतारने का प्रयास किया था. घटना के बाद हिंसक उपद्रव के संबंध में पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया. इसके बाद भारतीय उच्चायोग की इमारत पर एक अतिरिक्त तिरंगा लगाया गया है. भारतवंशियों के साथ इस बैठक के बाद भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट किया, ‘रविवार को उच्चायोग पर हमले के बाद उनकी एकजुटता की सराहना करता हूं.’
ब्रिटेन की सरकार की विफलता पर जताई हैरानी
ब्रिटेन के फ्रेंड्स ऑफ इंडिया सोसाइटी इंटरनेशनल (एफआईएसआई) नामक संगठन ने मंगलवार की बैठक के बाद कहा कि प्रवासी भारतीय चरमपंथी ताकतों द्वारा भारतीय ध्वज के अपमान के ‘घृणित कृत्य’ से गहरे सदमे में हैं. एफआईएसआई ने कहा, ‘भारतीय राजनयिक अधिकारियों को खतरे में डालने वाली ऐसी शर्मनाक घटनाओं को रोकने के लिए निवारक उपाय करने में ब्रिटेन की सरकार की विफलता को देखकर हम भी उतने ही स्तब्ध हैं. इस घटना में, भारतीय उच्चायोग के एक अधिकारी ने गुंडों का बहादुरी से मुकाबला किया और उनसे झंडा लेकर भारत का गौरव की रक्षा की. परिसर में उपयुक्त सुरक्षा की कमी के कारण भारतीय अधिकारी को यह कार्रवाई करनी पड़ी.
भारतीय अमेरिकियों ने की निंदा
इस बीच, खालिस्तान-समर्थक प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने रविवार को सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमला किया और इसे क्षति पहुंचाई. भारतीय-अमेरिकियों ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की. भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले को लेकर ‘फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज’ (एफआईआईडीएस) ने कहा, ‘हम लंदन के साथ-साथ सैन फ्रांसिस्को में भी कानून-व्यवस्था की विफलता से चकित हैं, जहां कुछ कट्टरपंथी अलगाववादियों ने भारत के राजनयिक मिशन पर हमला किया.’
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