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बढ़ती हुई जनसंख्या का आखिर क्या होगा? - श्रीनारद मीडिया

बढ़ती हुई जनसंख्या का आखिर क्या होगा?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यदि किसी भी देश की जनसंख्या लगातार तीव्र गति से बढ़ेगी तो उसी अनुपात में वहां उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव भी बढ़ेगा। इसे भारत के संदर्भ में देखा जाए तो 13 सितंबर 2024 को भारत की जनसंख्या लगभग 1,453,567,738 थी, जो विश्व की कुल जनसंख्या (लगभग 8,176,283,486) का करीब 18 प्रतिशत है। गौरतलब है कि विश्व के महज ढ़ाई प्रतिशत भू−भाग पर दुनिया की कुल जनसंख्या का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा जीवन यापन करने के लिए विवश है।

जरा सोचिए कि ऐसे में क्या देश में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ेगा। आंकड़ों पर नजर डालें तो इसी वर्ष अप्रैल के अंत में जारी संयुक्त राष्ट्र की ‘ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फूड क्राइसिस’ के अनुसार आज दुनिया भर के कुल 59 देशों के लगभग 28.2 करोड़ लोग भूख से तड़पने के लिए मजबूर हैं। रपट के अनुसार युद्धग्रस्त गाजा पट्टी और सूडान में बिगड़े खाद्य सुरक्षा के हालातों के कारण 2022 में 2.4 करोड़ से भी अधिक लोगों को खाद्य सामग्री के अभाव में भूखे रहना पड़ा था।

जनसंख्या बढ़ने और संसाधनों के घटने से देशों पर कर्ज का बोझ बढ़ने लगता है। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रपट के अनुसार सितंबर 2023 तक भारत पर कुल कर्ज का बोझ 205 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। वहीं, विश्व आर्थिक मंच की 2021 में जारी एक रपट के अनुसार शिक्षा गुणवत्ता में भारत का स्थान 90वां है।

जनसंख्या संबंधी संयुक्त राष्ट्र की 15 नवंबर 2022 को जारी एक रपट के अनुसार वर्ष 2050 तक एशिया महाद्वीप की आबादी लगभग पांच अरब हो जाएगी और सदी के अंत तक दुनिया की आबादी 12 अरब तक पहुंच जाएगी। रपट में यह भी बताया गया था कि 2024 तक भारत और चीन की जनसंख्या बराबर हो जाएगी और 2027 में भारत चीन को पछाड़कर विश्व का सर्वािधक आबादी वाला देश बन जाएगा, जबकि संयुक्त राष्ट्र की रपट के आकलन को झुठलाते हुए अप्रैल 2023 में ही चीन को पछाड़कर भारत दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है।

फरवरी 2024 में संयुक्त राष्ट्र ने ही अपनी एक और रपट जारी कर इसकी सूचना भी सार्वजनिक की थी। हालांकि 2011 के बाद भारतवर्ष में जनगणना नहीं हुई है। वैसे 1888 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन ने भी जनसंख्या वृद्धि को एक समस्या के रूप में देखा था। उन्होंने तब यह आशंका प्रकट की थी कि भारत में कृषि उत्पादन कम है और अकाल इसलिए पैदा होता है, क्योंकि यहां जनसंख्या बहुत आकि है और लोग तेजी से बढ़ रहे हैं।

इसके बावजूद 1871 से 1941 तक भारत की जनसंख्या की औसत वृद्धि दर 0.60 प्रतिशत रही, जबकि इस दौरान दुनिया का औसत 0.69 प्रतिशत ही था। हालांकि 20वीं सदी के पहले दो दशकों में जनसंख्या वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम रही। 1931 की जनगणना में जब सामने आया कि भारत में 1921 से 1931 के बीच प्रतिवर्ष एक प्रतिशत की दर से जनसंख्या बढ़ी है तो सभी चौंक गए, लेकिन 1951 के बाद यह दर लगातार बढ़ती हुई लगभग दो प्रतिशत के आसपास पहुंच गई।

वैसे हम इस बात के लिए थोड़ा संतोष व्यक्त कर सकते हैं कि 1970 के दशक से देश की जनसंख्या वृद्धि दर में निरन्तर गिरावट दर्ज की जाती रही है, लेकिन यह गिरावट दर अपेक्षाकृत इतनी धीमी रही है कि इसके लिए खुश नहीं हुआ जा सकता। आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में वर्ष 1971−81 के बीच वार्षिक जनसंख्या वृद्धि की दर जो 2.5 प्रतिशत थी,

उससे घटकर वर्ष 2011−16 के मध्य तक आते−आते 1.3 प्रतिशत रह गई। इस संदर्भ में अनेक प्रकार के तर्क और विचार दिए जाते रहे हैं, जिनमें से यह तर्क कि पिछले कुछ दशकों में देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के स्तर में निरन्तर किए जा रहे सुधारों के कारण धीरे−धीरे जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आई है, सच प्रतीत होती है, क्योंकि वास्तव में अब तक जनसंख्या वृद्धि की दर सर्वािधक उन्हीं इलाकों में पाई गई है, जिन क्षेत्रों में लोग शिक्षित और स्वस्थ नहीं होते।

1977 में आपातकाल के बाद जब इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं तब विश्लेषकों ने माना कि परिवार नियोजन की सख्ती के कारण ही वह चुनाव हारी थीं। उसके बाद 1980 और 1990 के दशक में पब्लिक डोमेन में तो बढ़ती हुई जनसंख्या पर खूब बातें हुईं, किंतु राजनेताओं ने इस पर चुप्पी साधना ही बेहतर समझा। यही नहीं, भूमंडलीकरण के बाद भी जनसंख्या का मुद्दा भारत में दबा ही रहा,

लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से ‘आबादी के तेजी से बढ़ने’ की बात कहते हुए केंद्र और राज्यों से इसे रोकने के लिए योजनाएं बनाने का आह्वान भी किया था। वहीं, 2024 के अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तेजी से बढ़ती आबादी और डेमोग्राफी में आए बदलाव की चुनौतियों से निपटने के लिए एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति बनाने का ऐलान किया, जो ‘विकसित भारत’ बनाने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इन समस्याओं से निपटने के लिए सुझाव देगी।

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