अब क्या करेंगे उद्धव उनके पास न तीर रहा, न कमान?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चुनाव आयोग ने शिव और सेना को अलग कर दिया। यानी आधिकारिक तौर पर उसके दो टुकड़े कर दिए। लगभग तैंतीस साल पुराना था शिवसेना और भाजपा का गठबंधन। एक महाराष्ट्र ही ऐसा राज्य है जहां भाजपा की सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना हमेशा बड़े भाई की भूमिका में ही रही थी।
विधानसभा चुनावों में हमेशा ज़्यादा सीटों पर शिवसेना ही लड़ा करती थी। लेकिन शुक्रवार को चुनाव आयोग के एक फ़ैसले ने वर्षों की सकारात्मकता पर आख़िरी कील ठोक दी। चुनाव आयोग का हैरत में डालने वाला फ़ैसला आया। उसने एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना को ही असल शिवसेना मान लिया और चुनाव चिन्ह -तीर कमान भी शिंदे- सेना को ही सौंप दिया।
इसका सीधा सा मतलब ये है कि उद्धव सेना को अब अलग चिन्ह पर चुनाव लड़ना पड़ेगा। हालाँकि विवाद अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है लेकिन चुनाव चिन्ह का फ़ैसला आख़िर चुनाव आयोग को ही करना था सो उसने कर दिया। उद्धव ठाकरे और संजय राउत आयोग के इस फ़ैसले को केंद्र सरकार की दादागिरी बता कर कोस रहे हैं। कह रहे हैं कि देश में लोकतंत्र को दबाया जा रहा है।
सरकार अपने और अपनों के पक्ष में फ़ैसले करवाने के लिए किसी भी हद तक जाने से नहीं चूक रही है। उद्धव ने कहा कि अगर चुने हुए जनप्रतिनिधि ही पार्टी के बारे में फ़ैसले करने लगे तो संगठन का महत्व आख़िर क्या रह जाएगा? उधर शिंदे गुट आयोग के इस फ़ैसले को लोकतंत्र की जीत बता रहा है। सत्य का परचम फहराने वाला फ़ैसला निरूपित कर रहा है। अब क्या होगा?
दरअसल, उद्धव गुट को अब नए निशान पर चुनाव लड़ना बहुत महँगा पड़ने वाला है। वर्षों से एक परम्परा चली आ रही थी। लोग शिवसेना का मतलब तीर कमान समझते थे। अब तीर और कमान दोनों शिंदे- सेना के पास चले गए हैं। शिंदे गुट के लिए अब पहचान का संकट नहीं होगा। यही चाहते थे शिंदे गुट और उसके अपने यानी भाजपा। हालाँकि किसी न किसी तरह महाराष्ट्र की सत्ता पाने के भाजपा के करतब को सब जानते हैं।
भाजपा ने क्या- क्या नहीं किया? जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री की गद्दी पाने के लिए बेमेल गठबंधन पर तुल गए। कांग्रेस और राकांपा जिनके ख़िलाफ़ हमेशा शिवसेना लोहा लेती रही, उद्धव ने उन्हीं विरोधी पार्टियों से हाथ मिला लिया तो भाजपा के फडनवीस ने शरद पवार के भतीजे अजीत पवार को फुसलाकर अल सुबह शपथ ले ली। हालाँकि यह सरकार चल नहीं पाई।
आख़िर उद्धव ने बेमेल गठबंधन वाली सरकार खड़ी कर ली और चलाई भी। भाजपा ने शिवसेना के एक गुट से हाथ मिलाया और वापस सत्ता हासिल कर ली। अब उद्धव अपने ही किए पर पछता रहे होंगे। दरअसल, उद्धव का भला भाजपा के साथ रहने में ही था। जिनकी विचारधारा मिलती है, उनका साथ लम्बा चल सकता है, उद्धव पद के लालच में यह बात भूल गए थे शायद!
- यह भी पढ़े………
- भाकपा-माले के राष्ट्रीय महाधिवेशन में नीतीश बोलें- हम आपका इंतजार कर रहें!
- निक्की हत्या की साजिश में साहिल के पिता-दोस्त समेत 5 गिरफ्तार, दिल्ली पुलिस का जवान भी शामिल