जब चोरी हो गई गुरूजी की साइकिल…….
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
धुंधलका होने लगा था । रात आसमान से उतरने लगी थी । कउड़ खामोश होने लगे थे । कभी – कभी पछुआ का झोंका कानों को यूं छूकर जाता जैसे नाग फुंफकार रहा हो । सड़कें वीरान पड़ी थीं । दूर से खड़ाऊं की चटक आवाज आ रही थी । औऱ करीब ….और करीब……..एकदम सामने ………गुरुजी मुस्कुरा रहे थे !
दो साल पहले की बात है । साइकिल चोरी हो गयी थी । रोज रघुनाथपुर जाने का रूटीन बन गया था । राजेन्द्र माट साहब , समसुद्दीन गुरुजी, श्रीराम माट साहेब , मोती माट साहेब के साथ बैठकी लगती । देश दुनिया की बातें होतीं । कॉलेज के लिये चंदा हेतु दानवीरों का नाम शॉर्टलिस्ट किया जाता । आज लेट हो गया था । अपने पूरे मौज में आ रहे थे ।
साइकिल कहां बिया !
केहू नाप दिहल हो ! दू हफ्ता हो गइल !
काम कइसे चलता ?
दांडी मार्च होता ! अवसर मिलल बा , लाभ उठावतानी ।
नया लिया जाव ! ठंडी के दिन बा !
ना ! एकदम ना ! कॉलेज के काम ज्यादा जरूरी बा !
एगो साइकिल में केतना पइसा लाग जाई ?
दू दिन दूगो मिस्त्री आ चार गो लेबर के मजदूरी दिया जाई ओतना में । साइकिल ना किनाई । बरियारी करबs लो त बइठब ना ओपर ! साफ बता देतानी !
ऐसे ही थे गुरुजी ……
आभार-संजय सिंह के फेसबुक से…..
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