Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है', पढ़िए रामधारी सिंह दिनकर की पूरी कविता - श्रीनारद मीडिया

मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है’, पढ़िए रामधारी सिंह दिनकर की पूरी कविता

मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है’, पढ़िए रामधारी सिंह दिनकर की पूरी कविता

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर  की यह कविता  रश्मिरथाी से  है ‘मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है’।  काफी लोकप्रिय है इसे जितने बार पढ़ेंगे उतनी आपको उर्जा मिलेगी

 

 

सच है, विपत्ति जब आती है,

कायर को ही दहलाती है,

शूरमा नहीं विचलित होते,

क्षण एक नहीं धीरज खोते,

विघ्नों को गले लगाते हैं,

काँटों में राह बनाते हैं।

 

 

मुख से न कभी उफ कहते हैं,

संकट का चरण न गहते हैं,

जो आ पड़ता सब सहते हैं,

उद्योग-निरत नित रहते हैं,

शूलों का मूल नसाने को,

बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को।

 

 

है कौन विघ्न ऐसा जग में,

टिक सके वीर नर के मग में

खम ठोंक ठेलता है जब नर,

पर्वत के जाते पाँव उखड़।

 

मानव जब जोर लगाता है,

पत्थर पानी बन जाता है।

 

गुण बड़े एक से एक प्रखर,

हैं छिपे मानवों के भीतर,

मेंहदी में जैसे लाली हो,

वर्तिका-बीच उजियाली हो।

 

बत्ती जो नहीं जलाता है

रोशनी नहीं वह पाता है।

 

पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड,

झरती रस की धारा अखण्ड,

मेंहदी जब सहती है प्रहार,

बनती ललनाओं का सिंगार।

 

जब फूल पिरोये जाते हैं,

हम उनको गले लगाते हैं।

वसुधा का नेता कौन हुआ?

भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?

अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?

नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?

जिसने न कभी आराम किया,

विघ्नों में रहकर नाम किया।

 

जब विघ्न सामने आते हैं,

सोते से हमें जगाते हैं,

मन को मरोड़ते हैं पल-पल,

तन को झँझोरते हैं पल-पल।

 

सत्पथ की ओर लगाकर ही,

जाते हैं हमें जगाकर ही।

वाटिका और वन एक नहीं,

आराम और रण एक नहीं।

वर्षा, अंधड़, आतप अखंड,

पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।

 

वन में प्रसून तो खिलते हैं,

बागों में शाल न मिलते हैं।

कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर,

छाया देता केवल अम्बर,

विपदाएँ दूध पिलाती हैं,

लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।

 

जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,

वे ही शूरमा निकलते हैं।

बढ़कर विपत्तियों पर छा जा,

मेरे किशोर! मेरे ताजा!

जीवन का रस छन जाने दे,

तन को पत्थर बन जाने दे।

 

तू स्वयं तेज भयकारी है,

क्या कर सकती चिनगारी है?

यह भी पढ़े

मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है’, पढ़िए रामधारी सिंह दिनकर की पूरी कविता

राजेंद्र महाविद्यालय में चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती समारोह पूर्वक मनाई गई

संतोष गंगेले कर्मयोगी ने समस्याओं से जूझते हुए बनाई राष्‍ट्रीय पहचान

संतोष गंगेले कर्मयोगी ने  शिक्षा, संस्कार, संस्कृति, और सनातन धर्म की रक्षा और राष्ट्र के कर दिया जीवन समर्पित

हुसैनगंज में निशुल्क नेत्र शिविर में हुई दर्जनों मरीजों की जांच

पूर्वांचल क्रिकेट एसोसिएशन का गठन किया गया, क्रिकेट खिलाड़ियों के विकास के लिए

विद्युत करंट लगने से  युवक की हो गई मौत

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!