जब सीवान के रामदेव बाबू ने मजदूर हित के संदर्भ में हिंडाल्को प्रबंधन को झुकने पर कर दिया था मजबूर!
मजदूरों के शोषण के खिलाफ रेणुकूट में रामदेव सिंह ने लड़ी थी लंबी लड़ाई
सीवान के रघुनाथपुर के कौसड़ गांव के निवासी थे रामदेव बाबू
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर विशेष
श्रीनारद मीडिया, गणेश दत्त पाठक, सीवान (बिहार):
मजदूर समाज के उस आयाम से संबंधित होता है, जिसके कठिन परिश्रम और छलकते पसीने की बूंदों के बूते समाज अपने समृद्धि पर इतराता है। परंतु सत्य यह भी है कि जब बात मजदूर के हक की आती है तो शोषण ही उसकी नियति हो जाती है। कई ऐसे मजदूर नेता भी हुए, जिन्होंने मजदूरों के हक के लिए तमाम संघर्षों को झेला। रसूखदार कंपनियों और उद्योगपतियों को मजदूरों के हितों के लिए कदम उठाने के लिए मजबूर किया। मजदूरों की जिंदगी में खुशहाली के लिए तमाम जतन किए। एक ऐसे ही महान मजदूर नेता रहे सिवान के रघुनाथपुर प्रखंड के ग्राम कौसड के मूल निवासी रामदेव सिंह, जिन्होंने मजदूरों के हक में आवाज उठाते हुए एशिया की सबसे बड़ी एल्यूमिनियम कंपनी हिंडाल्को के प्रबंधन को झुकने के लिए विवश कर दिया था।
शोषण के खिलाफ आवाज उठाने पर निकाले गए नौकरी से
24-25 साल की उम्र में रामदेव बाबू ने रेणुकूट स्थित हिंडाल्को एल्यूमीनियम प्लांट में नौकरी की शुरुआत की। कार्यस्थल पर आग के दहकते शोलों के बीच काम करना था लेकिन वहां मजदूरी बेहद कम और अन्य सुविधाएं नदारद थी। रामदेव बाबू ने जब इस शोषण की व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया तो कंपनी द्वारा इन पर चार्जशीट दायर किए जाने लगे और अंततः कई मजदूरों के साथ इनको नौकरी से निकाल दिया गया।
रेणुकूट का स्थानीय मजदूर मामला राष्ट्रीय स्तर पर छा गया
फिर क्या था रामदेव बाबू इंसाफ की लड़ाई में कूद पड़े? रामदेव बाबू के पुत्र प्रख्यात भोजपुरी कवि श्री मनोज भावुक बताते हैं कि राजनारायण जी, लोहिया जी, जयप्रकाश जी के सहयोग से रेणुकूट का स्थानीय मजदूर मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरने लगा। मामला तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री तक पहुंच गया। रामदेव बाबू के सहयोगी श्री नारायण पाण्डेय के अनुसार, रामदेव बाबू मजदूरों की हालत देखकर प्रबंधन पर करारा प्रहार किया करते थे। रामदेव बाबू ने राष्ट्रीय श्रमिक संघ की स्थापना भी की, जो आज तक सक्रिय है। उनके आह्वान पर 1963 और 1966 की हड़ताल हिंडालको में बहुत प्रभावी रही थी। उत्तर प्रदेश ट्रेड यूनियन कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री लल्लन राय के मुताबिक मजदूर आंदोलन के दौरान एक बड़ा जनसमर्थन रहा था रामदेव बाबू के साथ।
अंततः झुकना पड़ा कंपनी प्रबंधन को, मजदूरों को मिली नौकरी वापस
हैरान परेशान कंपनी प्रबंधन ने गुंडों द्वारा आक्रमण के साथ कई लालच भी दिए। लेकिन कंपनी प्रबंधन की साम दाम दंड भेद की नीति राम देव बाबू को डिगा नहीं पाई। संघर्ष का दौर चलता रहा। रामदेव बाबू मजदूरों के इस संघर्ष में परिवार तक पर विशेष ध्यान नहीं दे पाए। कंपनी प्रबंधन ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर सिस्टम के हर सुराख का फायदा उठाना चाहा। फिर भी रामदेव बाबू के नेतृत्व में मजदूरों की एकता का बल भारी पड़ा। अंत में हिंडाल्को प्रशासन को झुकना पड़ा। रामदेव बाबू सहित 31 मजदूरों की नौकरी वापस करनी पड़ी। साथ ही, मजदूरों के हितार्थ अन्य सुविधाएं भी मुहैया करानी पड़ी।
आज जबकि मजदूर दिवस है रामदेव बाबू की मजदूरों के हित में लड़ी गई लड़ाई उन्हें मजदूर आंदोलन के संदर्भ में विशेष तौर पर सुप्रतिष्ठित करती है। साथ ही, सिवान को अपने बेटे पर गर्व का सुअवसर भी प्रदान करती है। हाल ही में 14 अप्रैल, 2022 को सिवान के इस लाल का निधन हो गया लेकिन रामदेव बाबू मजदूरों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उनके दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।
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