घाट जब दीप मालाओं से जगमगाए तो बन गई है वैश्विक ‘देव दीपावली’.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
त्रिपुर नाम के दुर्दांत असुर पर भगवान शिव की विजय गाथा की पौराणिक कथा को जानने वाली कुछ श्रद्धालु महिलाएं कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा घाटों तक आती थीं और श्रद्धा के कुछ दीप जला कर वापस लौट जाती थीं। महज काशिराज परिवार ही नहीं बल्कि आस पड़ोस के राज परिवारों और राजस्थान के रजवाड़े और दरभंगा रियासत सहित मध्यप्रदेश के राजपरिवार की ओर से भी 14 वीं शताब्दी तक देव दीपावली का आयोजन काशी में होने की मान्यता रही है।
इस बाबत तत्कालीन राजकीय दस्तावेज लम्बे समय तक मारकीन की पोटली में सुरक्षित रखे गए जो बाद में प्राप्त हुए तो आयोजनों की सूचना और उस बाबत आर्थिक मदद की भी जानकारी दुनिया के सामने आई है। पौराणिक पृष्ठों को पलटा और मजबूत इरादों के साथ जुट गया अतीत में काशी के गौरव रहे देवदीपावली उत्सव को फिर एक बार जमीन पर उतारने के काम में। यह नौजवान थे आज के उत्सव के सबसे पहले दृष्टा नारायण गुरु।
सामाजिक कार्यकर्ता एवं गीतकार कन्हैया दुबे केडी बताते हैं कि- आयोजन के दौरान सबसे पहले एक से दो-दो से चार और चार से आठ हुए। इसके बाद केंद्रीय देव दीपावली समिति का गठन काशी में हुआ। वर्ष 1986 में पंचगंगा सहित कुल छह घाट जब दीप मालाओं से जगमगाए तो नगर में उल्लास की एक नई लहर महसूस की गई।
हालांकि, यह आयोजन ‘आन क आटा-आन क घी, करें परोजन बाबा जी (जुगाड़ी- जुटान) की तर्ज पर ही हुआ। अगले साल उत्सव को श्री मठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य का प्रोत्साहन और संरक्षण मिला। कई घाटों ते तेल-दीया-बाती पंहुचाई गई और इस बार आलोकित हुए गंगा का शृंगार करते कुल 12 घाट ही। वर्ष 1988 तक उत्सव 24 घाटों तक विस्तार ले चुका था।
वर्ष 1989-90 में शहर की शांति व्यवस्था ठीक न होने की वजह से उत्सव प्रभावित हुआ। 1991 में दिव्य कार्तिक मास महोत्सव के अंर्तगत स्वामी रामनरेशाचार्य ने उत्सव को एक बार फिर खड़ा किया। वर्ष 1994 तक तो पं.किशोरी रमण दूबे (बाबू महाराज) तथा पं. सत्येंद्र नाथ मिश्र और उनके सहयोगियों ने उत्सव की भव्यता के ऐसे कीर्तिमान स्थापित किये कि बनारस के घाटों का यह उत्सव देश की सीमाओं को लांघ कर अंर्तराष्ट्रीय फलक पर छा गया। इस श्रेय से उन उत्साही नौजवानों का हिस्सा ‘बाद’ नहीं किया जा सकता जिन्होने फरुहे -बेलचों से घाट की मिट्टी हटाने से ले कर दीया जलाने तक का काम अपने कंधों पर ले कर अपने-अपने घाटों को नई पहचान दिलाई।
इस बार देव दीपावली के मौके पर पांच कन्याएं भी गंगा आरती करेंगी और मां गंगा की आरती के दौरान आधी दुनिया का भी प्रतिनिधत्व होगा। वेद, विज्ञान, सभ्यता एवं संस्कृति की राजधानी विशेश्वर विश्वनाथ की नगरी में कन्याएं मां गंगा की महाआरती करेंगी। गंगोत्री सेवा समिति, वाराणसी के दिनेश शंकर दुबे ने इस बाबत जानकारी दी है कि गंगा आरती के इतिहास में पहली बार पांच कन्याएं आरती करेंगी।
इस वर्ष काशी में गंगा आरती की शुरुआत करने वाले बाबू महाराज की तीसरी पीढ़ी की एक पुत्री और एक पुत्र भी महाआरती का नेतृत्व करेंगे। काशी के विद्वानों की सहमति के यह निर्णय लिया गया है। बताया कि इस बाद देव दीपावली के मौके पर पांच कन्याएं आरती करेंगी, वहीं उनके अलावा 21 बटुक और उनके साथ 42 रिद्धि सिद्धि की सहभागिता होगी। इस दौरान 108 किलो अष्ट धातु की मां गंगा की चल प्रतिमा का 108 किलो फूल से महाश्रृंगार किया जाएगा।
काशी के तमाम पहचानों में से एक महत्वपूर्ण पहचान के तौर पर गंगा आरती इस वर्ष देव दीपावली में एक बार फिर इतिहास रचने की तैयारी में है। गंगा के जिन नयनाभिराम आरती को देखने देश विदेश से सैलानी जुटते हैं उसी गंगा आरती को पहली बार पांच बेटियों की अगुवाई में करने की परंपरा अनोखी साबित होने जा रही है। सन 1997 में पहली बार दशाश्वमेध घाट पर गंगोत्री सेवा समिति के बैनर तले पं किशोरी रमन दुबे बाबू महाराज ने अकेले आरती का श्रीगणेश किया था। कालांतर में काशी के कई घाटों पर गंगा आरती का क्रम बढ़ता गया।
इस बार 19 अक्टूबर 2021 आश्विन पूर्णिमा (शुक्रवार) को सायंकाल पांच बजे गंगोत्री सेवा समिति, दशाश्वमेध घाट द्वारा देवदीपावली पर भव्य महाआरती का आयोजन किया जाएगा। इस वर्ष महा आरती के बड़े आकर्षण में पांच कन्याओं द्वारा आरती किया जाना तय किया गया है। काशी में गंगा आरती की शुरुआत करने वाली गंगोत्री सेवा समिति एक बार फिर महिला सशक्तिकरण और सम्मान के तहत बेटियों द्वारा गंगा आरती कराई जाएगी।
इसी दिन पिछले एक महीने से (कार्तिक पूर्णिमा) चली आ रही पुलिस और पीएसी के उन वीर जवानों की याद में जो अपने कर्तव्य परायण का निर्वहन करते हुए आकस्मिक निधन को प्राप्त हुये, उन्हीं शहीद पुलिस / पी.ए.सी कर्मियों के वीर जवानों के आत्मिक शान्ति के निमित जल रहे आकाशदीप आयोजन का समापन भी किया जाएगा।
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