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इस्राइल कब करेगा आक्रमण? - श्रीनारद मीडिया

इस्राइल कब करेगा आक्रमण?

इस्राइल कब करेगा आक्रमण?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

इस्राइल पर पिछले तैतीस वर्षों में पहली बार 13 अप्रैल 2024 को ईरान में आक्रमण किया है। इससे पहले खाड़ी युद्ध के दौरान 1991 में इराक में इस्राइल पर स्कड मिसाइलें दागी थी। ईरान के द्वारा साढे तीन सौ से अधिक मिसाइल एवं ड्रोन से हुए आक्रमण को असफल करने में इजराइल का खर्च 1.01 अरब डालर तक हुआ और ईरान को आक्रमण करने में भी इतना ही खर्च करना पड़ा। अब पूरे विश्व को इसराइल द्वारा आक्रमण करने की उत्कट प्रतीक्षा है। ज्ञात हो की पूरे विश्व बिरादरी ने आक्रमण न करने एवं शांति वार्ता करने की सलाह दी है।

अमेरिका एवं सुरक्षा परिषद की निरिह स्थिति

सुरक्षा परिषद के सदस्य चीन और रूस ने ईरान के हमले को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं दी है। अमेरिका घरेलू राजनीति की वजह से इस्राइल को संयम बरतने की सलाह दे रहा है क्योंकि इसी वर्ष नवंबर 2024 में वहां राष्ट्रपति का चुनाव होने जा रहा है। लेकिन अमेरिका में यहूदियों की सुदृढ़ स्थिति होने के कारण अमेरिका भी असमंजस में पड़ गया है।

मुस्लिम देशों में हर्ष

पूरे मुस्लिम देशों में इस बात की खुशी है कि अब इसराइल अपराजेय नहीं है, उसपर भी हमला किया जा सकता है। यह कार्य शिया बहुल देश ईरान ने कर दिखाया है। दोनों देश की आपसी दूरी 2000 किलोमीटर है। ऐसे में प्रत्यक्ष युद्ध में खर्च अधिक होगा। लेबनान में हिजबुलला, यमन में हूती और हमास को ईरान का पूर्ण समर्थन है, जो बार-बार इसराइल को परेशान करते है। विशेषज्ञों के अनुसार इस्राइल रूस, चीन एवं ईरान से बचता रहा है क्योंकि ईरान को रूस, चीन एवं उत्तरी कोरिया का समर्थन प्राप्त है। ईरान बड़ी तेजी से अपने परमाणु कार्यक्रम पर काम कर रहा है।

1979 के बाद का ईरान

ज्ञात हो कि वह 1979 के बाद अमेरिका एवं उसके कट्टर समर्थक देशों का दुश्मन है। वह इस्राइल को फेक देश मानता है। विश्व के अट्ठाइस देश ऐसे है जो इस्राइल को एक देश के रूप में मान्यता नहीं देते है। आप सभी को ज्ञात हो ईरान 4 नवंबर 1979 को तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा करते हुए पचास से अधिक अमेरिकियों को बंधक बना लिया था और 444 दिनों तक अपने कब्जे में रखा। इस घटना को लेकर अमेरिका ईरान का कुछ भी नहीं कर पाया। अमेरिका के लिए ईरान वियतनाम साबित हुआ और अब अफगानिस्तान।

अमेरिका के भरोसे को धक्का

अमेरिका के साख को धक्का लगा है। उसे भरोसे का मित्र अब नहीं माना जाता है। यह यूक्रेन युद्ध से साबित हो गया है। ऐसे में इसराइल को अपने बलबूते पर ही ईरान से निपटना होगा। क्योंकि एक सिद्धांत है कि मार्क्सवाद इस्लाम के अधिक निकट है। यही कारण है कि ईरान के निकट चीन एवं रूस है। पिछले वर्ष चीन ने ईरान और सऊदी अरब में दोस्ती कर दी है। जो क्षेत्र में अपने वर्चस्व को लेकर तनाव में थे।

भारत की दुविधा

भारत की स्थिति एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ खाई जैसी है। दोनों देशों से भारत का अच्छा संबंध है। लेकिन मोदी सरकार का झुकाव तकनीक, कृषि और रक्षा क्षेत्र को लेकर इजरायल के साथ थोड़ा अधिक है। जबकि कच्चे तेल को लेकर भारत ईरान के साथ प्रगाढ़ संबंध बनाए रखना चाहता है। दोनों देशों से व्यापार की अच्छी स्थिति है। अब भारत केवल शांति वार्ता की ही गुहार लगा सकता है। लेकिन भारत का जनमानस सोने की बढ़ती कीमतों से प्रभावित हो रहा है,जो इस युद्ध की आशंका ने पैदा किया है।

इस्राइल एक जीवट कौम

सबसे बड़ी बात है कि इस्राइल बड़ी जीवट कौम है। अपने भूमि से निर्वासित होने के 1800 वर्षों तक विश्व के 128 देश में शरणार्थियों के रूप में ये रहे। 1895 में आंशिक एवं 1948 में पूर्णत: उन्हें अपनी भूमि मिली है। जहां से उन्होंने अप्रत्याशित समृद्धि प्राप्त की है। इस्राइल पर जोरदार ढंग से 1948, 1967, 1973 में आक्रमण किया गया, जिसको उसने नाकाम किया। आप सभी को याद होगा 4 जुलाई 1976 का वह दिन जब इजरायली सेना ‘ऑपरेशन थंडरबोल्ट’ के जरिए ‘युगांडा के कसाई’ को जबरदस्त मात देते हुए अपने देश से 4000 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ऐतांबे हवाई अड्डे से अपने नागरिकों को सुरक्षित निकाल ले आये। इस पूरे ऑपरेशन में इस्राइल के वर्तमान प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू के बड़े भाई योनातन नेतनयाहू हताहत हुए थे।

जर्मनी के म्यूनिख ओलंपिक 1972 में मारे गए इस्राइली खिलाड़ियों का बदला उसने कई वर्षों तक चुन-चुन कर लिया। इस्राइली की खुफिया एजेंसी सिनबेथ और मोसाद अपने दुश्मनों को पाताल से भी ढूंढ कर मार डालती है।विशेषज्ञों की राय में इजरायल ने इन जैसे देशों से निपटने की रणनीति वर्षों से बनाकर रख ली है। उसे पता है कि मुझ पर आक्रमण होगा और हमें मुंहतोड़ जवाब देकर, विजयी होकर ही अपने अस्तित्व को बनाये रखना है।

बहरहाल ऐसा माना जाता है की तीसरे विश्व युद्ध का प्रारंभ पश्चिम एशिया से होगा शायद उसका समय आ गया है। अगर ऐसा नहीं होता है तो भारत सहित कई देशों के लिए यह उपयुक्त होगा।

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