रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में कहां पर है भारत?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अंतरराष्ट्रीय जगत में अब युद्ध की उपादेयता और अनिवार्यता को पुरातन अवधारणा के तौर पर देखा जाने लगा था। मनोवैज्ञानिक युद्ध, साइबर युद्ध, व्यापार युद्ध और अंतरिक्ष युद्ध की बातें ही खबरों में जगह पा रही थीं। अर्थात पारंपरिक युद्ध की जगह गैर परंपरागत असैन्य तरीकों से बिना रक्त बहाए ही अपने शत्रु को पराजित करने की बातें होने लगी थीं, जिसके केंद्र में तकनीकी दक्षता और संपन्नता निहित होती है। अफगानिस्तान से अमेरिका के वापस लौटने के बाद इन बातों को और बल मिल गया था, पर रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से ये बात बेमानी हो गई हैं।

देखा जाए तो इस लड़ाई का आधार कोई एक दिन में तैयार नहीं हुआ था। वर्ष 1991 में सोवियत संघ 15 भागों में तो बट गया। फिर भी वह यूक्रेन को आधुनिक रूस के निर्माण का केंद्र मानता रहा। उसे अपने अभिन्न हिस्से के तौर पर देखता रहा। सोवियत संघ के विघटन के बाद वारसा संधि के तहत बने सैन्य संगठन का तो अंत हो गया, परंतु अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय शक्तियों द्वारा बनाए गए नाटो नामक सैन्य संगठन अपने अस्तित्व में बना रहा। जबकि मिखाइल गोर्बाचोव से वार्ता के दौरान मौखिक तौर पर नाटो को अस्तित्वहीन करने का वचन दिया गया था। समय के साथ नाटो के सदस्य राष्ट्रों की संख्या भी बढ़ती गई। पूर्वी यूरोप के कई देशों तथा सोवियत संघ से निकले कुछ राष्ट्र भी इसके तहत आ गए।

अब अमेरिका के नेतृत्व में सैनिकों का जमावड़ा रूस के पड़ोस में दस्तक देने लगा। वहीं रूस प्राकृतिक गैस और तेल के भंडार के दोहन तथा दृढ़ राजनीतिक नेतृत्व के साथ वैश्विक राजनीति में पुन: उभरने लगा। व्लादिमीर पुतिन के नेतृत्व में चेचन्या का ऐतिहासिक संकट निपटाने के बाद रूस ने जार्जिया और क्रीमिया को आक्रामक तरीके से अपने में मिला लिया।

रूस चाहता था कि यूक्रेन एक बफर राष्ट्र के तौर पर पश्चिमी यूरोप और उसके मध्य बना रहे। वह यूक्रेन को हर वह सुरक्षा गारंटी देना चाहता था, जो उसे नाटो से मिल सकती थी, परंतु यूरोपीय संघ और नाटो के प्रति वोलोदिमीर जेलेंस्की के आकर्षण ने यूक्रेन को आज युद्ध की स्थिति में ला दिया है। विश्व के बड़े हथियार निर्यातक देश युद्ध का भय दिखा और युद्ध की स्थितियों में छोटे राष्ट्रों को ला कर अपने सैन्य निर्माण को बढ़ावा देने के निमित्त भी एक नीति के रूप में सदैव से ऐसा करते आए हैं। इस तरह वे अपने हथियारों का प्रयोग दूसरे देश की भूमि पर करके उसकी मारक क्षमता को परखते हैं।

रूस इस युद्ध को परिणाम तक अवश्य पहुंचाएगा। संयुक्त राष्ट्र की महासभा या सुरक्षा परिषद में उसके खिलाफ जो भी प्रस्ताव आएंगे वह सभी से निपटने के लिए वीटो शक्ति और उन्हीं तर्को के साथ प्रस्तुत होगा, जिनके साथ अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक पर आक्रमण किया था। रूस एक व्यापक रणनीति के साथ रूसी भाषी दो स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के बाद यूक्रेन में अपनी पसंद का सरकार बनाना चाह रहा है।

शीत युद्ध का वह दौर याद है जब क्यूबा मिसाइल संकट उत्पन्न हुआ, जिससे अमेरिका तिलमिला उठा था। कल्पना कीजिए यदि आज के समय में अमेरिका के दक्षिणी राष्ट्र मेक्सिको में रूस अपनी सेना खड़ी कर दे और हथियारों का अंबार लगा दे तो अमेरिका पर इसका क्या असर होगा? वैसा ही कुछ यूक्रेन का यूरोपीय यूनियन और नाटो के करीब जाने पर रूस पर हुआ है।

jagran

भारत रूस का ऐतिहासिक और मजबूत मित्र राष्ट्र रहा है। एक सदाबहार दोस्त के रूप में रूस के अनेक मित्रवत उपकार रहे हैं, जो भारत को उससे दूर नहीं जाने देंगे। हम कैसे भूल सकते हैं कि रूस ने ही हमें एयरक्राफ्ट करियर विक्रमादित्य, मिग तथा सुखोई, एस-400 मिसाइल सिस्टम तथा चक्र जैसे परमाणु चालित पनडुब्बियों से हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को बिना शर्त सुदृढ़ किया है। यदि अमेरिका ने उसे क्रायोजेनिक इंजन देने का प्रबल विरोध नहीं किया होता तो आज भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम 20 वर्ष आगे रहता।

जहां चीन को संतुलित करने के लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र में क्वाड के माध्यम से हमें अमेरिका की आवश्यकता है तो वहीं सैन्य आपातकाल में रूस की भी उतनी ही जरूरत है। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के सातवें अनुच्छेद के तहत कोरिया, वियतनाम, माली, मिस्र, अफगानिस्तान, इराक, लीबिया और सीरिया में समय-समय पर हस्तक्षेप किया है अब उसी के तहत रूस ने यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई की है। इस वजह से विगत 77 वर्षो में 193 सदस्य राष्ट्रों का यह संगठन फेल होता हुआ प्रतीत हो रहा है। इस अवसर पर भारत को सुरक्षा परिषद का वीटो शक्ति से युक्त स्थायी सदस्य बना कर उसे अपने आप में सुधार की शुरुआत कर देनी चाहिए जिससे कि उसकी उपादेयता में वृद्धि हो।

वैश्वीकरण के इस युग में पूरी दुनिया एक दूसरे से जुड़ी हुई है। इस वजह से रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों की तपिश से भारत भी वंचित नहीं रहेगा। विश्व पटल पर व्यापार युद्ध के काल में एक नए शीत युद्ध ने दस्तक दे दिया है। भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को केंद्र में रखते हुए एशिया में चीन के संभावित आक्रमण को काउंटर करने के लिए रूस, यूरोपीय संघ तथा अमेरिका तीनों की आवश्यकता होगी, जिससे अत्यधिक दबाव पर सेफ्टी वाल्व का निर्माण हो सके।

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