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जहां प्रेम का चर्चा होगा,नीरज का नाम लिया जाएगा।

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गोपालदास नीरज की 97वीं जयंती पर विशेष.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

टाइपिस्ट से साहित्यकार का सफर उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के पुरावली गांव में 4 जनवरी 1925 को जन्‍मे गोपाल दास नीरज के शुरुआती दिन संघर्ष भरे रहे। उनके बचपन का नाम गोपालदास सक्‍सेना था। जब वह 6 वर्ष के थे तभी पिता का निधन हो गया। खर्च चलाने के लिए गोपालदास को पढ़ाई के दौरान ही इटावा कचहरी में टाइपिस्‍ट का काम करना पड़ा। इस बीच वह कविताएं भी लिखते रहे। कानपुर के डीएवी कॉलेज में भी नौकरी की। इस दौरान उन्‍होंने हिंदी साहित्‍य में मास्‍टर्स की डिग्री भी हासिल की।

19 साल की उम्र में कविता संग्रह गोपालदास की लेखन के प्रति चाहत ने किशोर उम्र में उन्हें कविता संग्रह का लेखक बना दिया। 1944 में जब गोपालदास 19 साल के थे तब उनका पहला कविता संग्रह ‘संघर्ष’ प्रकाशित हुआ। इसके बाद से साहित्य जगत में वह गोपालदास नीरज के नाम से मशहूर होने लगे। 1946 में दूसरा कविता संग्रह ‘अंर्तध्‍वनि’ प्राकशित हुआ। इसके बाद दो और कविता संग्रह प्रकाशित होते ही वह जाने माने साहित्यकारों की सूची में शामिल हो गए।

पृथ्वीराज कपूर को मना किया साहित्यजगत में नाम कमाने पर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग उनसे फिल्‍मी गीत लिखने की गुजारिश लेकर आने लगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गोपालदास नीरज ने अपनी कविताएं फिल्मों के लिए बिकाऊ नहीं होने की बात कहकर फिल्मकारों को शांत करने की कोशिश की। इस बीच नामचीन फिल्मकार पृथ्‍वीराज कपूर भी गोपाल दास से फिल्मी गीत लिखवाने का प्रस्ताव लेकर मिलने कानपुर पहुंचे। एक कवि सम्‍मेलन के बाद पृथ्‍वीराज कपूर ने गोपाल दास से गीत लिखने का प्रस्‍ताव रखा तो गोपाल दास ने उन्‍हें भी मना कर दिया।

देवानंद के कहने पर राजी हुए गोपाल दास नीरज के मना करने पर पृथ्‍वीराज कपूर वापस मुंबई लौट गए। जब यह बात सुपरस्टार देवानंद को पता चली तो उन्होंने खुद गोपालदास नीरज से संपर्क किया और मिलने का प्रस्‍ताव रखा। देवानंद के काफी मनाने के बाद गोपाल दास नीरज ने सिर्फ उनकी खातिर फिल्‍मी गीत लिखने की बात कही और एक के बाद एक कई सुपरहिट नगमे लिखे। पृथ्वी राजकपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर के लिए ‘ए भाई! ज़रा देख के चलो’ गीत लिखा जो पॉपुलैरिटी के सारे रिकॉर्ड तोड़ गया।

फिल्मी गीतों और साहित्या के लिए अवॉर्ड गोपालदास नीरज ने फिल्‍म शर्मीली, प्रेम पुजारी, रेशमा और शेरा, र‍िवाज, गुनाह और रेशम की डोरी जैसी कई फ‍िल्‍मों के लिए गीत ल‍िखे। उन्‍हें गीत ‘काल का पह‍िया घूमे रे भइया’, ‘बस यही अपराध में हर बार करता हूं’ और ‘ऐ भाई जरा देख के चलो’ के ल‍िए फ‍िल्‍मफेयर अवॉर्ड म‍िला। गोपाल को भारत सरकार ने पद्म श्री, पद्मभूषण पुरस्‍कार से सम्मानित किया, जबकि और उत्‍तर प्रदेश सरकार ने यश भारती समेत मंत्री पद का विशेष दर्जा दिया।

आंसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा।जहां प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा…गोपालदास नीरज की यह पंक्तियां उनकी इस बात पर सटीक बैठती है जो वो अक्सर कहा करते थे कि आगरा की साहित्यिक हवा इतनी ताजा है कि यहां किसी की याद जा ही नहीं सकती। गोपालदास नीरज को गए तीन साल हो गए हैं, पर आगरा का साहित्य जगत उन्हें एक पल के भी नहीं भूला है।

चार जनवरी 1925 में इटावा जिले के ब्लाक महेवा के निकट पुरावली गांव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहां हुआ था। 2018 जुलाई में एम्स में उन्होंने आखिरी सांस ली। आगरा के बल्केश्वर में रह रहे उनके छोटे बेटे शंशाक प्रभाकर ने बताया कि वे कहते थे कि अगर 96 की उम्र पार कर गया तो सौ तो पकड़ लूंगा। पर एेसा हो नहीं पाया। वे खाने-पीने के काफी शौकीन थे। आगरा की बेढ़ई-कचौड़ी से लेकर लखनऊ में रबड़ी तक खाते थे।

एक बार का किस्सा सुनाते हुए शंशाक प्रभाकर ने बताया कि उज्जैन में कवि सम्मेलन में गए थे। वहां एक मेले में झूला लगाने वाला उन्हें अपने टेंट में बुलाने आया कि यह उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी इच्छा है। इस आग्रह को वे टाल नहीं पाए और उसके टेंट में पहुंचे। जहां उन्होंने झूले वाले द्वारा बनाया गया मटन भी खाया। उन्हें सालमन मछली बहुत पसंद थी।

 

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