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कौन सा अखाड़ा है सबसे प्राचीन, 569 ईस्वी में हुई थी स्थापना?

कौन सा अखाड़ा है सबसे प्राचीन, 569 ईस्वी में हुई थी स्थापना?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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Haridwar Kumbh Mela 2021 श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा की स्थापना सबसे पहले हुई। यही अखाड़ा सबसे प्राचीन अखाड़ा है। बुद्धि के अधिष्ठाता श्री गजानन गणेश को अपना आराध्य मानने वाले श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा की स्थापना का वर्ष 569 ईस्वी बताया जाता है। इस वर्ष सात संन्यासी अखाड़ों में शामिल श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा की स्थापना गोंडवाना में हुई थी। हालांकि, कुछ इतिहासकारों और संत-महात्माओं का यह भी मानना है कि सबसे पहले आह्वान अखाड़े की स्थापना हुई थी।

अखाड़ों के ज्ञात और इतिहास के जानकारों के अनुसार अखाड़ों की स्थापना के वर्ष के अनुसार सबसे पहले अटल अखाड़ा की ही स्थापना हुई थी, क्योंकि इसकी स्थापना 569 ईस्वी बताई जाती है। वहीं, आह्वान अखाड़े की स्थापना 600 ईस्वी के बाद बताई जाती है। आह्वान अखाड़े की 16वीं शताब्दी में पुनर्स्थापना की गई थी। उस वक्त नागा संन्यासियों की अधिक संख्या होने के कारण आह्वान अखाड़े के तमाम नागा संन्यासी अटल अखाड़े में स्थानांतरित किए गए थे, क्योंकि पूरे देश में धर्म की रक्षा को एक जगह या एक ही केंद्र से इनका संचालन किया जाना संभव नहीं हो पा रहा था।

सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक माने जाने वाले इस अखाड़े की मुख्य पीठ पाटन (गुजरात) में है। पर, इसके आश्रम कनखल हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर सहित देश के अन्य धार्मिक इलाकों में भी हैं। मार्गशीर्ष शुदी रविवार के दिन वनखंडी भारती, सागर भारती, शिवचरण भारती, अयोध्या पुरी, त्रिभुवन पुरी, छोटे रणजीत पुरी, श्रवण गिरि, दयाल गिरि, महेश गिरि, हिमाचल वन और प्रति वन आदि गुरुओं, संन्यासी श्रेष्ठ ने एकत्र हो सामूहिक रूप से श्रीशंभू अटल अखाड़े की स्थापना की। वर्तमान में वश्र्वात्मा नंद जी सरस्वती जी महाराज श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर हैं।

अखाड़े में इस वक्त महामंडलेश्वरों की संख्या 50 से अधिक और संन्यासियों की लाखों में है। अखाड़े में बड़ी संख्या में नागा साधु-संन्यासी भी शामिल हैं। कुंभ के समय श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा महानिर्वाणी अखाड़े के साथ धर्मध्वजा, पेशवाई और शाही स्नान में शामिल होता है। इस लिहाज से इसे महानिर्वाणी अखाड़े का छोटा भाई भी कहा जाता है। इस अखाड़े की शम्भु (भस्मी का गोला) अठपहलू का होता है, जबकि महानिर्वाणी अखाड़े की भस्मी का गोला चतुष्कोण का होता है। यह अखाड़े की पहचान का अहम हिस्सा होता है।

हरिद्वार में यह अखाड़ा कनखल में संन्यास रोड पर स्थित है, जहां इन दिनों हरिद्वार कुंभ के निमित्त अखाड़े की छावनी सजी हुई है और यही पर अखाड़े की धर्मध्वजा भी स्थापित हुई है। इस अखाड़े में शामिल नागा संन्यासियों ने अपने पराक्रम से पहले बौद्ध धर्म से सनातन हिंदू धर्म की रक्षा की और बाद में खिलजी और तुगलक और मुगलकाल में हिंदू धर्म संस्कृति की रक्षा में बड़ी भूमिका निभाई।

तमाम मौकों पर धर्म की रक्षा को शक्तिशाली मुगल सेना से सीधे टकराने से भी नहीं चूके। इतना ही नहीं अखाड़े के नागा संन्यासियों का युद्ध कौशल ऐसा था कि उस वक्त के तमाम राजा-महाराजा अपने मान-सम्मान और राज्य की रक्षा को जब-तब इनकी सहायता मांगा करते थे, लिया करते थे। खिलजी और तुगलक के समय 14वीं शताब्दी में धार्मिक हमलों का सामना करने को सबसे पहले इसी अखाड़े के नागा आगे आए थे।

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