जिसने ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया और अंग्रेजों को इस पर बैन लगाना पड़ा

जिसने ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया और अंग्रेजों को इस पर बैन लगाना पड़ा

मैथिलीशरण गुप्त की जयंती पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो

जब भारत अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन कर रहा था, उस वक्त कई स्वतंत्रता सेनानी अपनी जान की परवाह ना करते हुए जंग लड़ रहे थे. कई सेनानी हथियारों से लड़ाई लड़ रहे थे तो कुछ लोग ऐसे भी थे, जो अपनी कलम से भी इस जंग में अंग्रेजों पर भारी पड़ रहे थे. उस वक्त अंग्रेज लेखकों से भी उतना ही डर रहे थे, जितना क्रांतिकारियों से. उसी दौर में एक भारतीय लेखक ऐसी रचना लिखी था कि अंग्रेजों को इस पर बैन लगाना पड़ा था. कहा जाता है कि उस रचना से इतने लोग प्रभावित हो रहे थे कि इसने ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया था. इस खास रचना के रचयिता थे मैथिलीशरण गुप्त.

जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।

मैथिलीशरण गुप्त उस दौर के महान लेखकों में से एक थे, जिन्हें महात्मा गांधी ने राष्ट्रकवि का दर्जा दिया था. आज उसी महान शख्सियत का जन्मदिवस है और उनके जन्मदिवस के मौके पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी खास बातें और साथ ही जानते हैं उनकी उस रचना के बारे में, जिससे ब्रिटिश सरकार भी डरने लगी थी. वैसे मैथिलीशरण गुप्त अपनी रचनाओं के माध्यम से सदा अमर रहेंगे और आने वाली सदियों में नए कवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होंगे.

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को।

हिन्दी कविता के इतिहास में गुप्त जी का यह सबसे बड़ा योगदान है. उनकी पहली रचना साल 1905 में ब्रजभाषा में थी, जिनका नाम रसिछेंद और सरस्वती था और इसके बाद उन्होंने खड़ी बोली में रचनाएं की.

इसके बाद उन्होंने रंग में भंग, जयद्रत-वध और भारत-भारती जैसी रचनाएं की, जिससे उन्हें खास पहचान मिली. ये भारत भारती उनके जीवन की अहम रचनाओं में से एक है, जिसके लिए कहा जाता है कि ये ऐसा संग्रह था कि इससे अंग्रेज भी डरने लगे थे और इसे बाद में बैन कर दिया गया था. इसके बैन होने का कारण इसका प्रचलित होना और उससे क्रांति के लिए जागरूक होना था.

बता दें कि आजादी की जंग के बीच आईभारत भारती ने भारत देश के गौरवशाली इतिहास का बोध करवाया. इसके बाद इसे स्कूलों से लेकर कई आंदोलनों में गाया गया. इसके बाद हम कौन थे क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी का विचार सभी के भीतर गूंज उठा. अभी इसके कई संस्करण निकल चुके हैं. गुप्त जी का प्रिय हरिगीतिका छन्द इस कृति में प्रयुक्त हुआ है. बता दें कि ये तीन खंडों में बांटा गया है, जिसमें अतीत, वर्तमान और भविष्यत खंड शामिल है.

अतीत खंड में भारत के गौरव, वीरता, आदर्श, कला, संस्कृति, साहित आदि के बारे में बताया गया है. वहीं, वर्तमान खंड में भारत की स्थिति बताई गई है और जो भी गलत हो रहा है, उसे बताया गया. इसके अलावा भविष्यत् खंड में भारतीयों के लिए मंगलकामना की गई है.

भूलोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ?
फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल कहाँ?
संपूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है?
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है।

इसके अलावा उनकी प्रमुख रचनाएं जयद्रथ-वध, पंचवटी, साकेत, यशोधरा, द्वापर, मंगल-घर, विष्णु प्रिया आदि है.

मैथिलीशरण गुप्त को सन 1936 में इन्हें काकी में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया गया था। इनकी साहित्य सेवाओं के उपलक्ष्य में आगरा विश्वविद्यालय तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने इन्हें डी. लिट. की उपाधि से विभूषित भी किया। 1952 में गुप्त जी राज्य सभा के सदस्य मनोनीत हुए और 1954 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ अलंकार से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार, ‘साकेत’ पर ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ तथा ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि से भी अलंकृत किया गया। ‘हिन्दी कविता’ के इतिहास में गुप्त जी का यह सबसे बड़ा योगदान है। ‘साकेत’ उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है।

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