रेल यात्रियों की सुरक्षा के लिए कौन जिम्मेदार है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
एक और ट्रेन दुर्घटना हो गई। यह घटना उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले में घटित हुई, इसलिए इसे गोंडा ट्रेन दुर्घटना के नाम से जाना गया। देखा जाए तो पिछले एक महीने में यह दूसरा बड़ा रेल हादसा है, जिसमें 3-4 यात्रियों की मौत हो चुकी है और आधा दर्जन से अधिक लोग घायल चुके हैं। इससे एक सुलगता हुआ सवाल पैदा हो रहा है कि लाखों लोगों के लिए यात्रा का प्राथमिक साधन रेलवे अब उतना सुरक्षित नहीं रह गया है, जितनी कि उससे अपेक्षा हुआ करती है।
आंकड़े बताते हैं कि भारत के रेलवे नेटवर्क में, 64,000 किलोमीटर (40,000 मील) ट्रैक पर 14,000 ट्रेनों में प्रतिदिन 12 मिलियन से अधिक यात्री यात्रा करते हैं। बावजूद इसके यहां रेल दुर्घटनाओं का एक लंबा इतिहास रहा है। गत जून महीने में ही पश्चिम बंगाल में एक मालगाड़ी एक यात्री ट्रेन से टकरा गई, जिसमें नौ लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए, क्योंकि मालगाड़ी के चालक ने सिग्नल की अनदेखी की थी।
इसी तरह से पिछले साल, पूर्वी भारत में एक बड़ी ट्रेन दुर्घटना हुई, जिसमें 280 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, जो दशकों में सबसे घातक दुर्घटनाओं में से एक थी। आलम यह है कि रेल सुरक्षा में सुधार के तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद, हर साल कई एक दुर्घटनाएँ होती हैं, जिनका कारण अक्सर मानवीय भूल या पुराने सिग्नलिंग उपकरण होते हैं। लेकिन लगातार हो रही इन रेल दुर्घटनाओं को देखते हुए आधा दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण सवाल पैदा हो रहे हैं, जिनके जवाब समय रहते ही मिल जाएं तो इन दुर्घटनाओं को टाला जा सकेगा।
पहला, रेलवे की ‘कवच’ सुरक्षा प्रणाली अब तक केवल 1 प्रतिशत रेलवे ट्रैक को ही क्यों कवर कर पाई है? इस विलम्ब के लिए कौन जिम्मेदार है?
दूसरा, अगर देश के पास सभी रेलवे ट्रैक पर कवच प्रणाली लगाने के साधन नहीं हैं, तो प्रधानमंत्री और रेलमंत्री कवच प्रणाली को अपग्रेड करने के बजाय बुलेट ट्रेनों और 250 किलोमीटर प्रति घंटे की हाई स्पीड ट्रेनों की संख्या बढ़ाने के पीछे क्यों पड़े हैं? क्या उनके ऊपर कोई कूटनीतिक दबाव है या फिर मित्र उद्योगपतियों और ठेकेदारों को उपकृत करने के लिए यह सबकुछ किया जाएगा।
तीसरा, लगातार रेल दुर्घटनाओं के बावजूद भारत सरकार ने रेल सुरक्षा पर खर्च करने के बजाय बुलेट ट्रेनों पर 1 लाख करोड़ रुपये क्यों खर्च किए? क्या इसके लिए रेलवे सुरक्षा के लिए आवंटित धन को डायवर्ट किया गया?
चतुर्थ, वित्त वर्ष 2024 में ट्रैक नवीनीकरण के लिए आवंटन बजट के 7.2 प्रतिशत तक ही सीमित क्यों रखा गया? क्या सुरक्षित ट्रेन संचालन के लिए रखरखाव और नवीनीकरण को उच्च प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए? यदि नहीं तो फिर उपाय क्या है?
पंचम, दिसंबर 2022 में सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया था कि 2018 से 2021 तक 69 प्रतिशत रेल दुर्घटनाएँ रेल दुर्घटनाओं से संबंधित थीं। सीएजी निरीक्षण रिपोर्ट में गंभीर कमियों की पहचान की गई थी। लेकिन उन कमियों पर अभी तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इस लापरवाही के लिए कौन जिम्मेदार है?
छठा, रेलवे में लगभग 3 लाख रिक्तियाँ क्यों हैं? जिनमें से 1.5 लाख से अधिक सुरक्षा से संबंधित पद हैं। क्या इस सरकार के लिए यात्री सुरक्षा का कोई मतलब नहीं है? या फिर इसे भी चरणबद्ध रूप से निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी चल रही है, जो समय के साथ प्रकाश में आएगा।
सातवां, लगातार दुर्घटनाओं के बावजूद मोदी सरकार ने रेल बजट को आम बजट में क्यों मिला दिया? क्या इसे उचित फैसला करार दिया जा सकता है।
आठवां, जब कतिपय जांच रिपोर्ट में दुर्घटना के लिए ऑटोमेटिक सिग्नल की विफलता, संचालन के प्रबंधन में कई स्तरों पर खामियाँ और लोको पायलट और ट्रेन मैनेजर के पास वॉकी-टॉकी जैसे महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरण की अनुपलब्धता जैसे कुछ कारण बताए गए हैं, तो फिर उन्हें पूरा करके इन कमियों को दूर क्यों नहीं किया जा रहा है?
नवम, इन तमाम गम्भीर सवालों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, जो आत्म-प्रचार का कोई मौका नहीं छोड़ते, सेल्फी और रील कल्चर के आदि हो चुके हैं, को भारतीय रेलवे में हुई भारी खामियों की सीधी जिम्मेदारी लेनी चाहिए या नहीं? यदि नहीं तो क्यों नहीं?
दशम, सच कहा जाए तो यह जांच का विषय है कि ट्रेन से जुड़ी कई दुर्घटनाएँ लगातार हो रही हैं, पर अपेक्षित कार्रवाई नदारत। देश में लगातार रेल हादसे हो रहे हैं, लोग अपनी जान गंवा रहे हैं, ऐसे में अगर कोई सबसे बड़ा दोषी है तो वो रेल मंत्री हैं या फिर रेल महकमें के वो बड़े अधिकारी जो इन्हें रोकने के प्रति गम्भीर नहीं हैं। इसलिए पूर्व के रेल मंत्रियों की तरह ही इन्हें भी इस्तीफा दे देना चाहिए।
अंतिम सवाल यह है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है, और यदि नहीं, तो क्यों नहीं? वैसे तो पिछले दशक में भारत में कई रेल दुर्घटनाएँ कई कारणों से हुई हैं, जिनमें यांत्रिक विफलताओं से लेकर मानवीय लापरवाही तक शामिल हैं। इसलिए यहाँ पर हम कुछ प्रमुख घटनाओं, उनके कारणों और अधिकारियों द्वारा कही गई बातों पर एक नज़र डालते हैं, ताकि आप यह समझ सकें।
पहला, 26 मई, 2014 को, हिसार-गोरखपुर मार्ग पर गोरखधाम एक्सप्रेस उत्तर प्रदेश में एक डबल-लाइन सेक्शन से गुज़र रही थी, जब इसका इंजन 11 डिब्बों के साथ पटरी से उतर गया। इस दुर्घटना का कारण “टंग रेल का फ्रैक्चर” माना गया, जो ट्रेनों को आसानी से दूसरी रेलवे लाइन पर जाने में मदद करता है, और इसे “उपकरण की विफलता” के रूप में वर्गीकृत किया गया। इस घटना में कम से कम 29 यात्रियों की जान चली गई, जबकि 70 से ज़्यादा लोग घायल हो गए।
दूसरा, 2015 में वाराणसी-देहरादून जनता एक्सप्रेस उत्तर प्रदेश के एक स्टेशन पर रुकने में विफल रही, जिसके कारण 20 मार्च, 2015 को कुछ डिब्बे दुर्घटनाग्रस्त हो गए और पटरी से उतर गए। उस समय रेलवे के एक प्रवक्ता ने कहा था कि जब ट्रेन बछरावां स्टेशन में प्रवेश कर रही थी, तब ट्रेन के लोको पायलट ने सिग्नल को पार कर लिया और रेत के ढेर में जा टकराई, जिससे ट्रेन का इंजन और दो डिब्बे पटरी से उतर गए। इस घटना में लगभग 39 यात्रियों की मौत हो गई और 150 लोग घायल हो गए।
तीसरा, 20 नवंबर, 2016 को कानपुर देहात जिले के पुखरायां इलाके में इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतर गए। इस दुर्घटना में 152 लोगों की जान चली गई। हाल के वर्षों में रेल दुर्घटनाओं में हुई सबसे बड़ी मौतों में से यह एक है।
चतुर्थ, 21 जनवरी, 2017 को जगदलपुर-भुवनेश्वर हीराखंड एक्सप्रेस आंध्र प्रदेश के कुनेरू स्टेशन पर पटरी से उतर गई। ओडिशा जाने वाली इस ट्रेन की दुर्घटना में 40 लोगों की मौत हो गई और 50 से ज़्यादा लोग घायल हो गए।
पंचम, 19 अक्टूबर, 2018 को अमृतसर के नज़दीक रेलवे ट्रैक पर दशहरा समारोह देखने के लिए खड़े लोगों को दो ट्रेनों ने रौंद दिया, जिसमें लगभग 60 लोग मारे गए और कई घायल हो गए। जब जालंधर-अमृतसर डीएमयू ट्रैक पर आई, तो आतिशबाजी देखने के लिए लगभग 300 लोगों की भीड़ जमा थी।
छठा, 3 फरवरी, 2019 को बिहार के वैशाली जिले में दिल्ली जाने वाली सीमांचल एक्सप्रेस की बोगियों के पटरी से उतरने के कारण सात लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। इस घटना में सहदेई-बुजुर्ग रेलवे स्टेशन के पास नौ ट्रेन के डिब्बे पटरी से उतर गए।
सातवां, हैदराबाद के पास चेरलापल्ली स्टेशन से नासिक के पनेवाड़ी स्टेशन जा रही एक खाली मालगाड़ी ने 8 मई, 2020 को पटरियों पर सो रहे 16 श्रमिकों को गलती से कुचल दिया। कथित तौर पर लोको पायलट ने श्रमिकों को देखा, लेकिन समय रहते ट्रेन को रोकने में विफल रहा।
आठवां, 13 जनवरी, 2022 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के डोमोहानी इलाके में बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस के 12 डिब्बे पटरी से उतर जाने से 10 यात्रियों की मौत हो गई और 40 से ज़्यादा लोग घायल हो गए। सीआरएस के अनुसार, पटरी से उतरने का कारण “उपकरण (लोकोमोटिव) की विफलता” थी।
नवम, 2 जून 2023 को शालीमार-चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस, बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी परस्पर टक्कर हुई। इन तीनों ट्रेनों की टक्कर के कारण भारत में सबसे खराब रेल दुर्घटना हुई, जिसके कारण 2 जून, 2023 को कम से कम 293 लोगों की मौत हो गई।
दशम, इस साल 7 जून 2024 को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में अगरतला से सियालदह जा रही कंचनजंगा एक्सप्रेस को पीछे से एक मालगाड़ी ने टक्कर मार दी, जिसमें नौ लोगों की मौत हो गई और कम से कम 40 लोग घायल हो गए।
बहरहाल, सरकार ने मृतक के परिवार को 10 लाख रुपये, गंभीर रूप से घायल होने पर 2.5 लाख रुपये और मामूली रूप से घायल होने पर 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है, जो नाकाफी है। मृतकों के परिवारों को कम से कम ₹50-50 लाख का मुआवज़ा दिया जाना चाहिए।
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