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कौन होगा नेता प्रतिपक्ष, चेहरा तलाश रही भाजपा - श्रीनारद मीडिया

कौन होगा नेता प्रतिपक्ष, चेहरा तलाश रही भाजपा

कौन होगा नेता प्रतिपक्ष, चेहरा तलाश रही भाजपा

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क 

करीब 21 महीने तक सरकार में रहने के बाद भाजपा अब विपक्ष में है। जिस तरह से अचानक सरकार बदली है, ऐसे में सड़क से सदन तक भाजपा को नेता प्रतिपक्ष के रूप में एक तेज-तर्रार चेहरे की तलाश है। चेहरा भी ऐसा जो नीतीश और तेजस्वी के सामने मुखर होकर अपनी बात रख सके। बिहार भाजपा में इसको लेकर नामों पर मंथन शुरू हो गया है। नए-पुराने चेहरे टटोले जा रहे हैं, मगर प्राथमिकता नए चेहरे को दी जा सकती है।

पार्टी नेतृत्‍व के पास दोनों सदनों के लिए रखे जाएंगे तीन-तीन नाम  

सूत्रों के अनुसार, बिहार भाजपा की ओर से विधानसभा और विधानपरिषद दोनों सदन के लिए तीन-तीन नाम का प्रस्ताव दिया जाएगा। इन नामों पर अंतिम मुहर दिल्ली आलाकमान ही लगाएगा। अभी तक जो नाम विधानमंडल के नेता के रूप में सबसे आगे हैं, उसमें पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव, विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा और संजीव चौरसिया के नाम आगे हैं। इसके अलावा अभी तक डिप्टी सीएम की कुर्सी संभाल रहे तारकिशोर प्रसाद के नाम पर भी विचार किया जा सकता है।

विजय सिन्‍हा का आक्रामक रवैया भी भाजपा को पसंद 

नंदकिशोर यादव इसके पहले भी नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं। हाल के दिनों में विजय कुमार सिन्हा के आक्रमक रवैये को देखते हुए उन्हें भी विधानमंडल दल का नेता बनाने पर विचार किया जा रहा है। विजय कुमार सिन्हा अभी विधानसभा अध्यक्ष हैं, मगर उनके विरुद्ध महागठबंधन के दलों ने अविश्वास प्रस्ताव का आवेदन दिया है। ऐसे में उनका पद पर बने रहना मु​श्किल है। ऐसे में भाजपा विधानसभा अध्यक्ष के पद से हटते ही उन्हें प्रतिपक्ष का नेता बना सकती है। युवा चेहरों की बात की जाए तो संजीव चौरसिया, जिबेश कुमार जैसे नाम भी लिए जा रहे हैं, मगर इनपर सहमति बनेगी या नहीं, कहना मु​श्किल है।

विधानसभा के बाद विधानपरिषद में भी भाजपा को सदन के नेता के रूप में एक मजबूत चेहरा चाहिए। यहां उसके पास विकल्प भी हैं। अभी तक उद्योग मंत्री के रूप में बेहतर काम करके दिखाने वाले शाहनवाज हुसैन को पार्टी आगे कर सकती है। वह केंद्र में मंत्री भी रहे हैं और उच्च सदन के हिसाब से उनकी शैली और भाषण देने का तरीका भी बेहतरीन है।

दूसरा नाम, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का हो सकता है। मंगल पांडेय भी फैक्ट के जरिए अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। ऐसे में उनके नाम पर भी विचार किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, जल्द ही इन नामों की सूची लेकर भाजपा नेता दिल्ली जाएंगे जहां आलाकमान अंतिम फैसला लेगा। अगले एक सप्ताह में विपक्ष के नेता का चयन किया जा सकता है।

नीतीश का कहना है कि एनडीए में वह अमानित हो रहे थे।

राजद के यूं आए करीब…

  • 22 अप्रैल: लालू परिवार की इफ्तार पार्टी में नीतीश कुमार ने शिरकत की। अपने आवास से राबड़ी देवी के आवास तक पैदल गए। तेजस्‍वी से अच्‍छे रिश्‍ते का संकेत दिया।
  • 10 मई: जातीय जनगणना के मुद्दे पर तेजस्‍वी यादव ने दिल्‍ली तक पैदल मार्च की घोषणा कर नीतीश सरकार पर दबाव बनाया। नीतीश ने उन्‍हें मिलने के लिए बुलाया।
  • 10 जून: अग्निपथ योजना को लेकर आंदोलन के दौरान बिहार भाजपा के दस नेताओं की सुरक्षा में केंद्रीय बल तैनात कर दिया गया। इससे भी भाजपा के प्रति अविश्‍वास बढ़ा।
  • 31 जुलाई: भाजपा के सात मोर्चों की संयुक्‍त कार्यसमिति का पटना में आयोजन। अमित शाह का आना। जेपी नड्डा का यह कहना कि क्षेत्रीय दलों का अस्तित्‍व खत्‍म हो जाएगा।

यूं भाजपा से दूर होते गए नीतीश बाबू…

  • जदयू और भाजपा के बीच कई दिनों से तनातनी की स्थिति बनी थी। एक महीने में ही चार ऐसे मौके आए, जब नीतीश ने भाजपा के कार्यक्रमों से दूरी बनाई।
  • सात अगस्त: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में दिल्ली में नीति आयोग की बैठक में शामिल होने के लिए उन्हें बुलाया गया था, किंतु नहीं गए।
  • 17 जुलाई: गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में नीतीश कुमार ने जाना जरूरी नहीं समझा।
  • 22 जुलाई: पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की विदाई पर भोज में नीतीश को आमंत्रित किया गया, मगर नहीं गए।
  • 25 जुलाई: नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के शपथ ग्रहण समारोह से भी नीतीश ने दूरी बनाई। हालांकि जदयू ने पक्ष में वोट दिया था।

बता दें, 26 जुलाई, 2017 को नीतीश कुमार ने राजद से रिश्ता तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाई थी। नीतीश के नेतृत्व में भाजपा और जदयू ने गठबंधन में 2020 के विधानसभा चुनाव जीतकर फिर से एनडीए की सरकार बनाई। बिहार की राजनीतिक हलचल पर दिनभर सोनिया गांधी की भी नजर थी। बिहार प्रदेश कांग्रेस प्रभारी भक्तचरण दास उन्हें पल-पल की खबर देते रहे। नीतीश कुमार पहले से भी सोनिया के संपर्क में थे। कहा जा रहा है कि सोनिया की सहमति मिलने के बाद ही उन्होंने भाजपा से संबंध तोड़ने की पहल की थी। राजद के साथ कुछ मसले थे, जिन्हें सोनिया की मध्यस्थता से सुलझाया जा सका।

 

 

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