जर्मनी में किसके पास होगी सत्ता की चाबी ?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जर्मनी में आम चुनाव के बाद अब यह सवाल उठने लगे हैं कि सत्ता की चाबी किसके पास होगी। एंजेला मर्केल के बाद क्या कोई महिला इस पद पर आसीन होगी या यह कुर्सी किसी और को मिलेगी। फिलहाल चांसलर की दौड़ में तीन प्रमुख उम्मीदवार हैं। इसमें ग्रींस पार्टी ने चांसलर पद के लिए एक महिला उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है। हालांकि, सभी उम्मीदवारों के समक्ष एक जैसी चुनौती और मुश्किलें हैं।
1- आर्मिन लाशेट (क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी, सीडीयू)
- चांसलर की रेस में लाशेट: चांसलर पद की दौड़ में आर्मिन लाशेट का नाम शामिल है। 60 वर्षीय लाशेट एक समय में अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे चल रहे थे, लेकिन कुछ गलतियों से उनकी लोकप्रियता का ग्राफ गिरा है। हालांकि वह अभी चांसलर की रेस में बने हुए हैं। वह एंजेला मर्केल की राजनीतिक पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी (सीडीयू) के नेता हैं। पार्टी प्रमुख के पद पर लाशेट एंजेला मैर्केल के दूसरे उत्तराधिकारी हैं। वह चांसलर पद के लिए पार्टी का स्वाभाविक उम्मीदवार हैं। अगर क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स संसदीय चुनावों में बहुमत हासिल करती है तो वह चांसलर पद के प्रबल दोवदार हैं।
- चांसलर के लिए पार्टी के बने उम्मीवार : वह जर्मनी के नार्थ राइन वेस्टफालिया के प्रीमियर है। यह जर्मनी का सबसे अधिक आबादी वाला प्रांत है। पार्टी में चांसलर की उम्मीदवारी के लिए उन्होंने अपनी ही पार्टी के मार्कस सोडर को बेहद कम अंतर से पीछे छोड़ा है। इस रेस को जीतने के बाद सीडीयू ने लाशेट का समर्थन किया है। पार्टी अध्यक्ष पद के लिए तीन दावेदारों में से लाशेट अकेले थे जो पहले पार्टी के लिए प्रांतीय स्तर पर नेता के रूप में चुनाव जीत चुके हैं और उन्हें सरकार चलाने का अनुभव भी है।
- कोरोना से जनसमर्थन में कमी: हालांकि, देश में कोरोना महामारी के कारण सीडीयू की सहयोगी पार्टी सीएसयू के प्रति जनसमर्थन थोड़ा सीमित हुआ है। लाशेट पर भी कोरोना महामरी के खराब प्रबंधन के आरोप लगे हैं। एक अन्य घटना ने भी लाशेट की लोकप्रियता में कमी लाई है। जुलाई में देश में आई बाढ़ के दौरान राष्ट्रपति के भाषण के समय लाशेट की हंसते हुई एक फोटो कैमरे में कैद हो गई थी। इस घटना के बाद उनकी लोकप्रियता में कमी आई। इसके बाद ओपिनियन पोल में संघर्ष कर रहे हैं।
- ओपिनियनम पोल में पिछड़ गए लाशेट: ओपिनियन पोल के मुताबिक सीडीएस-सीएसयू गठबंधन को 23 फीसद मत मिले हैं और अपनी प्रतिद्वंदी पार्टी मध्यमार्गी-वामपंथी एसपीडी से दो अंक पीछे है। लाशेट की अपनी रेटिंग भी बहुत अच्छी नहीं है। महज 20 फीसद लोग ही उन्हें चांसलर के रूप में देखना चाहते हैं।
- आशा के अनुरूप नहीं रहे परिणाम: चुनाव के शुरू में सीडीयू/सीएसयू को उम्मीद थी कि वह मध्य जर्मनी में मैदान मार लेगी। यह उम्मीद की जा रही थी कि 30 फीसद तक मत आसानी से हासिल करेगी, लेकिन परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए। जर्मनी के चुनाव में आमतौर पर मध्य मार्ग का प्रभाव होता है, लेकिन लाशेट ने अचानक दक्षिणपंथी रवैया अपना लिया। उनके लिए यह जोखिम भरा रहा है।
- विवादों में रहे लाशेट : लाशेट ने वर्ष 2005 में अपने गृह क्षेत्र में एकीकरण मंत्री बनें थे। यह जर्मनी में अपनी तरह का पहला मंत्रालय था। उन्होंने नस्लीय तुर्की समुदाय से मजबूत रिश्ते बनाए। वर्ष 2015 में जब करीब 10 लाख प्रवासी जर्मनी पहुंचे तो चांसलर मर्केल ने उनका स्वागत किया। उस वक्त मर्केल की इस नीति का लाशेट ने समर्थन किया था। लाशेट पर कैथोलिक चर्च का प्रभाव रहा है। वह चर्च में संचालित स्कूल में पढ़े हैं। उनके माता-पिता धार्मिक रहे हैं। वे विवाहित हैं। उनके तीन जवान बच्चे हैं।
- भारत से यथावत रहेंगे संबंध: भारत से उनका लिंक नहीं है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भारत के साथ उनकी विदेश नीति यथावत रहेगी। वह यूरोपीय यूनियन में सांसद भी रहे हैं। वह फ्रांस की सीमा से लगे आखेन शहर से आते हैं इसके चलते फ्रांस से मजजबूत रिश्ते हैं। लाशेट पेशे से वकील हैं। उनके पिता एक कोयला खदान में काम करते थे। इसलिए वह कोयला उद्योग का बचाव करते रहे हैं। वह यूरोपीय यूनियन के समर्थक हैं।
2- एनालेना बेयरबाक (ग्रींस पार्टी)
- अकेली महिला उम्मीदवार : एनालेना बेयरबाक एंगेला मर्केल के उत्तराधिकारी की दौड़ में अकेली महिला प्रत्याशी हैं। वह अब तक ग्रीन पार्टी की पहली चांसलर उम्मीदवार भी हैं। 40 वर्षीय बेयरबाक ने हैमबर्ग और लंदन में कानून और राजनीति की पढ़ाई की है और यूरोपीय संसद में ग्रींस पार्टी के लिए काम किया है।
- चांसलर बनने की सबसे कम संभावना: यह माना जा रहा है कि पार्टी अगले सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा रहेगी। तीन बड़े उम्मीदवारों में चांसलर बनने की सबसे कम संभावना बेयरबाक की ही है। हालांकि, उनकी पार्टी सत्ता में शामिल होने के रास्ते पर चलती दिखाई दे रही है। बेयरबाक और उनके सह-नेता राबर्ट हेबेक पार्टी में अनुशासन लागू करने के लिए जाने जाते हैं। ये अलग बता है कि पार्टी मध्यमार्गियों और कट्टरवादियों के बीच विभाजित रही है।
- ओपिनियन पोल में ग्राफ बढ़ा: इस वर्ष हुए ओपिनियन पोल में ग्रींस पार्टी के समर्थन का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। यह करीब 25 फीसद तक पहुंच गया। हालांकि, उस लिहाज से चुनाव के नतीजे नहीं आए हैं। ग्रींस पार्टी को चुनाव में लोगों का वह समर्थन नहीं मिला। इसके चलते वह तीसरे नंबर पर चली गई। बेयरबाक पर साहित्यिक चोरी और अपने सीवी को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के भी आरोप लगे। इन आरोपों से उनकी साख को धक्का लगा है।
- रूस और चीन के प्रति सख्त, भारत के प्रति उदार: बेयरबाक वर्ष 2013 से जर्मनी की संसद की सदस्य हैं। सीडीयू/सीएसयू और सोशल डेमोक्रेट्स के मुक़ाबले वो रूस और चीन के प्रति अधिक सख्त रुख रखती है। भारत के प्रति उनका नजरिया उदार है। बेयरबाक कभी मंत्री नहीं रही हैं। इस पर उनका तर्क है कि वह जर्मनी की मौजूदा राजनीति के प्रभाव से बची हुई हैं। वह जर्मनी में राजनीतिक सुधारों की वकालत करती रही हैं।
3- ओलाफ स्कोल्ज (मध्यमार्गी वामपंथी, सोशल डोमेक्रेट, एसपीडी)
- चांसलर एंजेला मर्केल के डिप्टी: 62 वर्षयी ओलाफ स्कोल्ज जर्मनी में यह नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। स्कोल्ज इस समय जर्मनी के वित्त मंत्री हैं। वह चांसलर एंजेला मर्केल के डिप्टी हैं। जर्मनी में चुनाव अभियान के दौरान उनके चांसलर बनने की संभावना को मजबूती से देखा गया। वर्ष 1998 से 2011 तक वह सांसद रहे हैं। ओपिनियन पोल में आधे से अधिक मतदाताओं ने उन्हें चांसलर के लिए अपनी पहली पंसद बताया है।
- युवावस्था में ही राजनीति में शामिल: स्कोल्ज वर्ष 2011 से 2018 के बीच हैमबर्ग शहर के मेयर भी रहे हैं। मेयर के पद पर रहते हुए उन्होंने वित्तीय सुधारों पर जोर दिया और कामयाबी हासिल की। युवावस्था में ही राजनीति में शामिल हो गए थे और समाजवादी आंदोलन का हिस्सा बन गए थे। एसपीडी के अंदर उन्हें एक रूढ़िवादी नेता के तौर पर जाना जाता है।
कोरोना के दौरान हुई तारीफ: महामारी के दौरान उन्हीं के नेतृत्व में सरकार ने कारोबारियों और श्रमिकों के लिए 904 अरब डालर का राहत पैकेज लागू किया था। कोरोना महामारी के दौर उनके काम की तारीफ की गई। बता दें कि कोरोना महामारी के दौरान जर्मनी के कारोबार पर गहरा असर डाला। जर्मन नागरिक एंजेला मर्केल की तरह देश की स्थिरता चाहते हैं, ऐसे में स्कोल्ज जर्मनी के लोगों की पहली पंसद बन गए हैं।
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