क्यों और कैसे बदलता चला गया पत्रकारिता का स्वरूप?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष
30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन सन् 1826 में हिंदी भाषा के पहले समाचार पत्र ”उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन शुरू हुआ था। कोलकाता से निकले इस साप्ताहिक समाचार पत्र ने जो प्रकाश दिखाया उसकी रौशनी में धीरे-धीरे हजारों हिंदी समाचार-पत्र शुरू हुए, पाठकों का विश्वास जीता और आगे बढ़ते रहे। यह वह समय था जब पत्रकारिता एक मिशन हुआ करती थी और सरकार तथा जनता के बीच पुल का काम किया करती थी। समय के साथ समाचार पत्रों का ही नहीं बल्कि समाचार लेखन का भी स्वरूप बदला। समाचार और विश्लेषण निष्पक्ष से पक्षकार होते चले गये और अब तो अधिकतर समाचार पत्र के नाम से लोग पहचानते हैं कि कौन-किस पार्टी की ओर झुकाव रखता है।
समाचार पत्र उठाएंगे तो विज्ञापन बड़े और खबरें छोटी नजर आयेंगी। राष्ट्रीय महत्व और जन सरोकार की खबरों से ज्यादा सनसनीखेज खबरों को महत्व दिखेगा और संपादकीय पृष्ठ की गरिमा का तो अब बहुत ही कम ख्याल देखने को मिलता है। कई समाचार पत्रों ने तो हिंग्लिश को मान्यता देकर हिंदी भाषा को गहरी ठेस भी पहुँचाई है।
महामारी के इस दौर में हमने देखा कि समाचार पत्रों की बिक्री पर काफी असर पड़ा। कोरोना जब आया तब लोग अखबार को छूने से भी डरने लगे, नतीजतन अखबार कम छपने लगे क्योंकि उनका वितरण बंद हो गया था। इसलिए समाचार पत्रों ने अपने ई-संस्करणों पर ध्यान देना शुरू किया जोकि इससे पहले तक मुफ्त में पढ़े जा सकते थे अब उन पर शुल्क लगा दिया गया। एक बड़े समाचार पत्र ने तो अदालत से आदेश भी हासिल कर लिया कि उनके ई-संस्करणों को सोशल मीडिया पर शेयर या फॉरवर्ड नहीं किया जाये जिसे पढ़ना है वह शुल्क देकर पढ़े। हिंदी समाचार पत्रों की यात्रा भले बेहद उतार-चढ़ाव वाली रही हो लेकिन यह कहा जा सकता है कि आज भी सत्य खबर के लिए समाचार पत्रों पर विश्वास कम नहीं हुआ है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
90 के दशक में जब इलेक्ट्रानिक मीडिया तेजी से उभर रहा था तो हिंदी पत्रकारिता को एक नयी दिशा मिली। कई वरिष्ठ पत्रकारों ने टीवी का रुख किया और कुछ ने पश्चिम की शैली का अनुसरण किया तो कुछ ने अपनी नयी शैली विकसित करते हुए टीवी पर हिंदी भाषा में खबरों को प्रस्तुत कर नया मंच खड़ा कर दिया। यह मंच ऐसा था जिसने हजारों की संख्या में रोजगार दिये और एक बड़े उद्योग का रूप लेकर हजारों करोड़ रुपये कमाये भी। लेकिन धीरे-धीरे टीवी समाचारों पर व्यावसायिकता हावी होने लगी और समाचार चैनल ‘इशारों पर’ एजेंडा सेट करके चलाने लगे। आज स्थिति ऐसी है कि चाहे कोई सबसे तेज खबर देने वाला चैनल हो या सबसे ज्यादा खबर देने वाला चैनल सभी किसी ना किसी की ओर झुकाव रखते ही हैं।
डिजिटल मीडिया
बात डिजिटल मीडिया की करें तो यह सही है कि यह सबसे बाद में आया लेकिन सबसे पहले आये समाचार पत्र, उसके बाद आये टीवी चैनल भी डिजिटल मीडिया मंच पर उपस्थित होने को मजबूर हुए क्योंकि यही वह माध्यम है जो बिजली की गति से दौड़ता हुआ समाचारों को पल भर में दुनिया के हर कोने तक पहुँचा सकता है। डिजिटल मीडिया पर प्रकाशित समाचारों को संकलित करने के लिए उन्हें फाइलों में लगा कर रखने या उनकी वीडियो क्लिप संभाल कर रखने की जरूरत नहीं है क्योंकि इंटरनेट के विशाल संसार में कुछ भी, कभी भी और कहीं भी खोजा जा सकता है और उसको आगे भेजा जा सकता है।
साथ ही डिजिटल मीडिया कमाई का एक बड़ा जरिया भी बन गया तो बहुत से लोग इस क्षेत्र में आ गये। डिजिटल मीडिया का क्षेत्र आज बहुत व्यापक हो गया है लेकिन अगर विश्वसनीयता के पैमाने पर आंका जाये तो डिजिटल मीडिया पर ही सबसे ज्यादा सवाल उठते हैं। इसलिए जरूरी हो जाता है उसका जिक्र जिसने इस मंच पर शुरुआती दौर में तो कदम रखा ही साथ ही समय के साथ पाठकों के हित में नित नये प्रयोग करते हुए बड़ी जिम्मेदारी के साथ इस मंच का मार्गदर्शन भी किया।
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