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जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं को अनुमति क्यों नहीं? - श्रीनारद मीडिया

जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं को अनुमति क्यों नहीं?

जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं को अनुमति क्यों नहीं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ओडिशा के राज्यपाल गणेशी लाल ने पुरी के विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के अंदर विदेशी नागरिकों के प्रवेश का समर्थन किया है, जो दशकों से चली आ रही बहस का विषय बना हुआ है और समय-समय पर विवाद पैदा करता रहा है।

  • वर्तमान में केवल हिंदुओं को मंदिर के अंदर गर्भगृह में देवताओं की पूजा करने की अनुमति है।
  • मंदिर के सिंह द्वार (मुख्य प्रवेश द्वार) पर एक संकेत स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि “केवल हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति है।”

जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं को अनुमति क्यों नहीं?

  • यह सदियों से चली आ रही प्रथा है, हालाँकि इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं है।
  • कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मुस्लिम शासकों द्वारा मंदिर पर किये गए कई हमलों ने सेवादारों को गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के लिये प्रेरित किया होगा।
    • कई लोगों का कहना है कि मंदिर के निर्माण के समय से ही यह प्रथा थी।
  • भगवान जगन्नाथ को पतितपावन के नाम से भी जाना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है “दलितों का उद्धारकर्त्ता”।
    • इसलिये यह माना जाता है कि धार्मिक कारणों से मंदिर में प्रवेश करने से प्रतिबंधित सभी लोगों को सिंह द्वार पर पतितपावन के रूप में भगवान के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है।
  • उदाहरण: 
    • वर्ष 1984 में मंदिर के सेवकों ने एक गैर-हिंदू से विवाह करने के कारण इंदिरा गांधी के प्रवेश का विरोध किया था।
    • वर्ष 2005 में एक थाई राजकुमारी को मंदिर को केवल बाहर से देखने की अनुमति दी गई थी क्योंकि विदेशियों को इसमें प्रवेश की अनुमति नहीं है।
    • इसके अलावा वर्ष 2006 में एक स्विस नागरिक को उसके द्वारा भारी मात्रा में  दिये गए दान के बाद भी उसके ईसाई धर्म के कारण प्रवेश से वंचित कर दिया गया था।

जगन्नाथ मंदिर के बारे में प्रमुख तथ्य:

  • ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में पूर्वी गंग राजवंश (Eastern Ganga Dynasty) के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा किया गया था।
  • जगन्नाथपुरी मंदिर को ‘यमनिका तीर्थ’ भी कहा जाता है, जहाँ हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पुरी में भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति के कारण मृत्यु के देवता ‘यम’ की शक्ति समाप्त हो गई है।
  • इस मंदिर को “सफेद पैगोडा” कहा जाता था और यह चारधाम तीर्थयात्रा (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम) का एक हिस्सा है।
  • मंदिर अपनी तरह की अनूठी वास्तुकला के लिये प्रसिद्ध है, जिसमें एक विशाल परिसर की दीवार और कई टावरों, हॉल तथा मंदिरों के साथ एक बड़ा परिसर शामिल है।
  • मंदिर का मुख्य आकर्षण वार्षिक रथ यात्रा उत्सव है, जिसमें मंदिर के तीन मुख्य देवताओं, भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की रथ यात्रा एक भव्य जुलूस के साथ निकाली जाती है।
  • मंदिर अपने अनूठे भोजन, महाप्रसाद के लिये भी जाना जाता है, जिसे मंदिर की रसोई में तैयार किया जाता है और भक्तों के बीच वितरित किया जाता है।

Jagannath-Temple

 ओडिशा स्थित अन्य महत्त्वपूर्ण स्मारक:

  • कोणार्क सूर्य मंदिर (यूनेस्को विश्व विरासत स्थल)।
  • तारा तारिणी मंदिर।
  • लिंगराज मंदिर।

 

 

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