गणिकाओं के चौखट की माटी से देवी दुर्गा मूर्तियों का निर्माण क्यों होता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्‍क

दुर्गा की मूर्ति का निर्माण करने वाले कारीगर एक विशेष विधान के बाद ही दुर्गा की मूर्ति का निर्माण शुरू करते हैं। मान्‍यता है कि गणिकाओं के आंगन की माटी या धूलि का प्रयोग अगर मूर्ति में करते हैं तो इसके बाद ही मूर्ति का निर्माण हो सकता है। आज भी यह परंपराएं पीढ़ी दर पीढ़ी बंगाल से आने वाले कारीगरों के जरिए जीवित है। माना जाता है कि अगर यह माटी चुटकी भर न पड़ी तो मूर्ति खंडित हो जाएगी और प्राण प्रतिष्‍ठा का क्रम खत्‍म हो जाएगा। इन्‍हीं मान्‍यताओं के अनुसार आज भी मूर्तिकार गणिकाओं की चौखट की माटी मांगने जाते हैं।

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मूर्ति में प्राण तभी आने की मान्‍यता है जब गणिकाओं के आंगन चौखट की माटी का प्रयोग मूर्ति निर्माण में होता है। बंगाल के कारीगर ही दुर्गा की मूर्ति बनाते हैं जो इन दिनों नवरात्रि के माह भर पूर्व से ही दुर्गा की प्रतिमाओं को गढ़ने की तैयारी कर रहे हैं। बंगाल से आने वाले कारीगर सोनागाछी से ही पोटली भर माटी लाकर पूर्वांचल सहित यूपी में कई जगहों पर मूर्ति का निर्माण करते हैं। मुगलकालीन अवध के नक्‍खास में कोठे बंद होने के बाद भी परंपरागत कारीगर वहां की माटी की चाह में जा पहुंचते हैं। हालांकि, नाम सामने न आने की की शर्त पर अब जो मूर्तिकार खुलासे करते हैं वह काफी चौंकाने वाले हैं।

माटी की आस में दूर देश का सफर : तमाम मूर्तिकारों का संबंध बंगाल से ही रहा है। लिहाजा वह माटी (धूलि) लेने के लिए सोनागाछी के बदनाम इलाकों का रुख जून माह में ही कर जाते हैं और वहां से माटी लाकर जुलाई से कारखानों में मूर्तियों को सांचे में ढालने की प्रक्रिया को शुरू कर देते हैं। वहीं यूपी में अवध क्षेत्र में जा बसे मूर्तिकार मुगलकालीन दौर में बसाए गए नखास के इलाकों से ही माटी लाकर संतोष कर लेते हैं।

बताते हैं कि अब गणिकाओं का कार्य अवैध है और सामने कोई नहीं आता लिहाजा माटी की आस में उनको भटकना भी पड़ता है। जगदंबा को जगाने के लिए यह माटी और परंपरा अनिवार्य होने से हर मूर्तिकार के लिए यह बहुत जरूरी प्रक्रिया है। लिहाजा पहले गणिकाओं के कोठे की माटी का संकलन शुरू करना पहली प्रक्रिया है। बताते हैं कि एक कारीगर जाकर तमाम लोगों के लिए भी माटी अलग- अलग पोटली में संकलित करता है।

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धान की पैडी (पुआल) से बनता सांचा : गणिकाओं के कोठे से मिली माटी को धान की पैडी से बने सांचे में लेप के दौरान प्रयोग किया जाता है। इस लेप के परत दर परत जुड़ने के बाद कच्‍ची माटी से पैडी (पुआल) के ऊपर लेप करने के बाद मूर्ति का आकार दिन प्रतिदिन पक्‍का होता जाता है। मूर्तिकार बताते हैं कि बारिश के मौसम में मूर्तियों के सूखने की प्रक्रिया काफी जटिल है। खरीदारों के मांग के अनुरूप इस दौरान ही इसमें बदलाव किया जाता है।

माह भर ही दुर्गा पूजा शेष है तो इस समय मिट्टी के लेपन और सुखाने का कार्य बदस्‍तूर जारी है। पखवारे भर के बाद मू‍र्तियों में रंग रोगन का दौर शुरू हो जाएगा। इसके बाद नवरात्रि के पूर्व ही साज सज्‍जा में गहने और चुनरी के साथ ही साड़‍ियों से साज सज्‍जा का अंतिम दौर शुरू होगा। वहीं नवरात्रि में यह खरीदारों के सिपुर्द कर दी जाती हैं।

कब है वर्ष 2022 का नवरात्र पर्व : वर्ष 2022 में नवरात्र का पर्व 26 सितंबर से शुरू होकर पांच अक्‍टूबर तक मनाया जाएगा। अंतिम दिन विजयदशमी के मौके पर दुर्गा प्रतिमाओं का नदियों में विसर्जन किया जाएगा। इस बार नवरात्रि सोमवार के दिन से शुरू हो रहे हैं। यह दिन काफी शुभ माना जाता है। इसके साथ ही जब नवरात्रि रविवार या सोमवार के दिन शुरू होते हैं, तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। हाथी पर सवार होने से सर्वत्र सुख सम्पन्नता बढने का मान है।

 

 

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