भारत के कई राज्यों के जगलों में आग क्यों लग रही है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 तमिलनाडु के नीलगिरी में कुन्नूर वन क्षेत्र में वनाग्नि की घटनाएँ बढ़ रही हैं।

  • राज्य वन विभाग के चल रहे अग्निशमन प्रयासों में भाग लेते हुए भारतीय वायु सेना ने “बांबी बकेट” ऑपरेशन करने के लिये कई Mi-17 V5 हेलीकॉप्टर तैनात किये।

वनाग्नि क्या है?

  • परिचय:
    • इसे बुश फायर/वेजिटेशन फायर या वनाग्नि भी कहा जाता है, इसे किसी भी अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन या प्राकृतिक स्थिति जैसे कि जंगल, घास के मैदान, क्षुपभूमि (Shrubland) अथवा टुंड्रा में पौधों/वनस्पतियों के जलने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो प्राकृतिक ईंधन का उपयोग करती है तथा पर्यावरणीय स्थितियों (जैसे- हवा तथा स्थलाकृति आदि) के आधार पर इसका प्रसार होता है।
    • वनाग्नि के लिये तीन कारकों की उपस्थिति आवश्यक है और वे हैं- ईंधन, ऑक्सीजन एवं गर्मी अथवा ताप का स्रोत।
  • वर्गीकरण:
    • सतही आग: वनाग्नि अथवा दावानल की शुरुआत सतही आग (Surface Fire) के रूप में होती है जिसमें वन भूमि पर पड़ी सूखी पत्तियाँ, छोटी-छोटी झाड़ियाँ और लकड़ियाँ जल जाती हैं तथा धीरे-धीरे इनकी लपटें फैलने लगती हैं।
    • भूमिगत आग: कम तीव्रता की आग, जो भूमि की सतह के नीचे मौजूद कार्बनिक पदार्थों और वन भूमि की सतह पर मौजूद अपशिष्टों का उपयोग करती है, को भूमिगत आग के रूप में उप-वर्गीकृत किया जाता है। अधिकांश घने जंगलों में खनिज मृदा के ऊपर कार्बनिक पदार्थों का एक मोटा आवरण पाया जाता है।
      • इस प्रकार की आग आमतौर पर पूरी तरह से भूमिगत रूप में फैलती है और यह सतह से कुछ मीटर नीचे तक जलती है।
      • यह आग बहुत धीमी गति से फैलती है और अधिकांश मामलों में इस तरह की आग का पता लगाना तथा उस पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
      •  ये कई महीनों तक जलते रह सकते हैं और मृदा से वनस्पति तक के आवरण को नष्ट कर सकते हैं।
    • कैनोपी या क्राउन फायर: ये तब होता है जब वनाग्नि पेड़ों की ऊपरी आवरण/वितान के माध्यम से फैलती है, जो प्रायः तेज़ हवाओं और शुष्क परिस्थितियों के कारण भड़कती है। ये विशेष रूप से तीव्र और नियंत्रित करने में कठिन हो सकती हैं।
    • कंट्रोल्ड डेलीबरेट फायर: कुछ मामलों में, कंट्रोल्ड डेलीबरेट फायर, जिसे निर्धारित वनाग्नि या झाड़ियों की आगजनी के रूप में भी जाना जाता है, इच्छित तौर पर या जानबूझकर वन प्रबंधन एजेंसियों द्वारा ईंधन भार को कम करने, अनियंत्रित वनाग्नि के जोखिम को कम करने और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये लगाई जाती है।
      • जोखिमों को कम करने और वन पारिस्थितिकी तंत्र को अधिकतम लाभ पहुँचाने के लिये इन नियंत्रित अग्नि की सावधानीपूर्वक योजना बनाई जाती है तथा विशिष्ट परिस्थितियों में निष्पादित किया जाता है।
  • सरकारी पहल:
    • वनाग्नि हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना, 2018 में वन सीमांत समुदायों को सूचित करने, उन्हें सक्षम करने और सशक्त बनाने व राज्य वन विभागों के साथ सहयोग करने के लिये प्रोत्साहित कर वनाग्नि को कम करने के लक्ष्य के साथ शुरू की गई थी।
    • वनाग्नि रोकथाम और प्रबंधन योजना एकमात्र सरकार प्रायोजित कार्यक्रम है जो वनाग्नि से निपटने में राज्यों की सहायता के लिये समर्पित है।

भारत में वनाग्नि कितनी आम है?

  • वनाग्नि का मौसम:
    • नवंबर से जून को भारत में वनाग्नि का मौसम माना जाता है, जिसमें प्रत्येक वर्ष विशेषकर फरवरी से गर्मी के आते ही सैकड़ों-हज़ारों छोटी और बड़ी वनाग्नि की घटना होती है।
      • देश भर में आमतौर पर अप्रैल-मई आगजनी के सबसे भीषण महीने होते हैं।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा अपनी वर्ष 2021 की रिपोर्ट में प्रकाशित द्वि-वार्षिक भारत में वनों की स्थिति रिपोर्ट (ISFR) से पता चलता है कि कुल अग्नि-प्रवण वन क्षेत्र वन आवरण का 35.47% है।
  • क्षेत्र:
    • शुष्क पर्णपाती वनों में भीषण आग लगती है, जबकि सदाबहार, अर्द्ध-सदाबहार और पर्वतीय समशीतोष्ण वनों में आग लगने का खतरा अपेक्षाकृत कम होता है।
    • नवंबर से जून की अवधि के दौरान पूर्वोत्तर भारत, ओडिशा, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के वन आग के प्रति सबसे अधिक सुभेद्य होते हैं।
      • वर्ष 2021 में, वन्यजीव अभयारण्यों सहित उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, नगालैंड- मणिपुर सीमा, ओडिशा, मध्य प्रदेश और गुजरात में वनाग्नि की कई घटनाएँ दर्ज की गई।
  • वर्तमान परिदृश्य (2024):
    • FSI आँकड़ों के अनुसार, वनाग्नि की सबसे अधिक घटनाएँ मिज़ोरम (3,738), मणिपुर (1,702), असम (1,652), मेघालय (1,252) और महाराष्ट्र (1,215) में हुई हैं।
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के उपग्रह डेटा से जानकारी प्राप्त हुई है कि मार्च 2024 की शुरुआत से महाराष्ट्र में कोंकण बेल्ट, गिर सोमनाथ एवं पोरबंदर के साथ दक्षिण-तटीय गुजरात, दक्षिणी राजस्थान एवं मध्य प्रदेश, तटीय और आंतरिक ओडिशा एवं निकटवर्ती झारखंड आसपास के दक्षिण-पश्चिमी ज़िलों में वनाग्नि बढ़ रही है।
    • दक्षिण भारत में, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं तमिलनाडु के अधिकांश वन-आच्छादित क्षेत्रों में पिछले सप्ताह आग लगने की घटनाएँ देखी गई हैं।

वनाग्नि के कारण क्या हैं?

  • मानवीय लापरवाही: 
    • वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ मानवीय गतिविधियों; जैसे- फेंकी गई सिगरेट, कैम्पफायर, मलबा जलाने एवं इसी तरह की अन्य प्रक्रियाओं के कारण होती है।
    • बढ़ते शहरीकरण एवं वन क्षेत्रों में  मानवीय गतिविधियों  के कारण आकस्मिक वनाग्नि का खतरा भी बढ़ गया है।
      • आमतौर पर, शिकारी तथा अवैध तस्कर या तो वन अधिकारियों का ध्यान भटकाने के लिये अथवा अपने अपराधों के सबूत मिटाने के लिये भी आग लगाते हैं।
  • मौसम की स्थितियाँ: 
    • दक्षिणी भारत में विशेष रूप से गर्मी के मौसम के शुरुआती चरण के दौरान अनुभव की जाने वाली असाधारण गर्म तथा शुष्क मौसम स्थितियाँ वनाग्नि के लिये अनुकूल वातावरण तैयार करती हैं।
    • उच्च तापमान, कम आर्द्रता एवं शांत हवाओं से आग लगने के साथ इसके तेज़ी से फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
  • शुष्कता: 
    • दक्षिणी भारत में सामान्य से अधिक तापमान, स्वच्छ आसमान एवं वर्षा की कमी के कारण शुष्कता में वृद्धि हुई है।
    • सूखी वनस्पतियाँ दहन के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं और जिससे आग के तेज़ी से फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
  • शुष्क बायोमास की प्रारंभिक उपलब्धता:
    • गर्मी के मौसम से पहले के महीनों में अनुभव किये गए सामान्य से अधिक तापमान के परिणामस्वरूप जंगलों में शुष्क बायोमास की शीघ्र उपलब्धता हुई है।
    • इन सूखी वनस्पतियों में, जिसमें चीड़ की पत्तियाँ भी शामिल हैं, विशेष रूप से आग लगने और फैलने का खतरा होता है।
      • चीड़ की पत्तियों की उच्च ज्वलनशीलता वनाग्नि की संभावना को बढ़ाती है और उनकी तीव्रता को भी अधिक बढ़ाती है।

वनाग्नि को कम करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • जन जागरूकता एवं शिक्षा: 
    • वनाग्नि के कारणों एवं परिणामों के बारे में जनता को शिक्षित करने के साथ-साथ जंगलों में ज़िम्मेदारीपूर्ण व्यवहार को बढ़ावा देने से मानव-जनित आग की घटनाओं को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • अग्नि सुरक्षा, सिगरेट के उचित निपटान और कैम्पफायर को बिना निगरानी के छोड़ने के खतरों पर अभियान जागरूकता बढ़ा सकते हैं और साथ ही ज़िम्मेदारीपूर्ण व्यवहार को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
  • विनियमों का कड़ाई से प्रवर्तन: 
    • वनाग्नि की रोकथाम से संबंधित कानूनों एवं विनियमों को लागू करने से, जैसे कि मलबे को जलाने पर प्रतिबंध तथा शुष्क अवधि के दौरान कैम्प फायर पर प्रतिबंध, आकस्मिक आग के जोखिम को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
      • गैर-उत्तरदायीपूर्ण व्यवहार की रोकथाम करने हेतु अग्नि सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने की दशा में दंड के प्रावधान का सख्ती से कार्यान्वन किया जाना चाहिये।
  • अग्निरोधक एवं ईंधन प्रबंधन:
    • अतिरिक्त वनस्पति का नाश करने के लिये नियंत्रित तरीके से दहन करने और अग्निरोधक/फायरब्रेक बनाने से अन्य उपयोगी वनस्पति के दहन की रोकथाम हेतु अवरोध उत्पन्न होता है और ईंधन भार कम होता है जिससे अग्नि के संचरण को कम करने में मदद मिल सकती है।
      • उचित ईंधन प्रबंधन प्रथाएँ, जैसे घनी वनस्पतियों का विरलन करना और निर्जीव काष्ठ को साफ करना, वनों की अग्नि के प्रति संवेदनशीलता को कम सकता है।
  • त्वरित जाँच प्रणाली:
    • अनुवीक्षण कैमरे, उपग्रह निगरानी और लुकआउट टावरों जैसे त्वरित जाँच प्रणालियों के कार्यान्वन से अग्नि का शुरुआती चरण में ही पता लगाने में मदद मिल सकती है जिससे उसका शमन करना आसान हो जाता है
      • अग्नि का त्वरित रूप से पता लगाने से इसकी व्यापकता और प्रभाव को कम करते हुए त्वरित कार्रवाई करने में सहायता मिलती है।

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