आखिर क्यों लग रही है जंगलों में आग?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सर्दी में वर्षा की कमी के कारण हिमालयी क्षेत्र में विशेषकर हिमाचल तथा उत्तराखंड में वनाग्नि/जंगल की आग लगने की कई घटनाएँ सामने आई हैं।

  • भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI) के अनुसार, 16 अक्तूबर, 2023 से 16 जनवरी 2024 के बीच वनाग्नि की 2,050 घटनाएँ हुईं, किंतु विगत वर्ष इसी अवधि के दौरान वनाग्नि की केवल 296 घटनाएँ हुईं।

वनाग्नि क्या है?

  • परिचय:
    • इसे बुश फायर/वेजिटेशन फायर अथवा वनाग्नि भी कहा जाता है, इसे किसी भी अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन अथवा प्राकृतिक स्थिति जैसे कि जंगल, घास के मैदान, क्षुपभूमि (Shrubland) अथवा टुंड्रा में पौधों/वनस्पतियों के जलने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो प्राकृतिक ईंधन का उपयोग करती है और पर्यावरणीय स्थितियों (जैसे- वायु तथा स्थलाकृति आदि) के आधार पर इसका प्रसार होता है।
    • वनाग्नि के लिये तीन कारकों की उपस्थिति आवश्यक है और वे हैं- ईंधन, ऑक्सीजन एवं ऊष्मा अथवा ताप का स्रोत।
  • वर्गीकरण:
    • सतही आग: इस प्रकार की जंगल की आग मुख्य रूप से सतही आग के रूप में हो सकती है, जिसमें ज़मीन पर पड़े कूड़े ( पत्ते और टहनियाँ एवं सूखी घास आदि) में आग लगती है।
    • भूमिगत आग: कम तीव्रता की ऐसी आग जिसमें सतह एवं इसके नीचे के कार्बनिक पदार्थ और कूड़े में आग लगती है, इसे भूमिगत आग के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। अधिकांश घने जंगलों में मृदा की सतह पर कार्बनिक पदार्थ का आवरण पाया जाता है।
      • ये आग आमतौर पर पूरी तरह से भूमिगत होने के साथ सतह से कुछ मीटर नीचे तक लग सकती है।
      • यह आग बहुत धीरे-धीरे फैलती है तथा ज़्यादातर मामलों में इस प्रकार की आग का पता लगाना और उस पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
      • ये महीनों तक जारी रह सकती है जिससे मृदा का वनस्पति आवरण नष्ट हो सकता है
    • भूमिगत आग: ये आग उपसतह जैविक ईंधन में लगी आग हैं, जैसे जंगल के नीचे की परत, आर्कटिक टुंड्रा या टैगा, और दलदल या दलदल की जैविक मिट्टी।
      • भूमिगत और ज़मीनी आग के बीच कोई स्पष्ट अंतर नहीं है
      • सुलगती भूमिगत आग कभी-कभी ज़मीनी आग में बदल जाती है।
      • यह आग जड़ और अन्य सामग्री को सतह पर या भीतर जला देती है, यानी, क्षय के विभिन्न चरणों में कार्बनिक पदार्थ की परत के साथ जंगल के फर्श पर उगने वाली जड़ी-बूटियों तक को जला देती है।
      • यह सतही आग (surface fires) की तुलना में अधिक हानिकारक हैं, क्योंकि वे वनस्पति को पूरी तरह से नष्ट कर सकते हैं। भूमिगत आग सतह के नीचे जलती है और अक्सर सतही अग्नि से प्रज्ज्वलित होती है।

हिमालय क्षेत्र में वनाग्नि की घटनाओं किन कारकों का योगदान है?

  • बर्फबारी और वर्षा का अभाव:
    • सर्दियों के महीनों में बर्फबारी और वर्षा की अनुपस्थिति ने इस क्षेत्र को शुष्क बना दिया है। बर्फबारी और वर्षा मिट्टी की नमी बनाए रखने एवं वन क्षेत्र को अत्यधिक शुष्क होने से बचाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • शुष्क स्थितियाँ:
    • मिट्टी और वनस्पति में नमी की कमी जंगल की आग के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ बनाती है। सूखी पत्तियाँ, सूखी मिट्टी के साथ मिलकर, आग के लिये संभावित ईंधन के रूप में कार्य करती हैं।
    • बढ़ता तापमान, संभवतः जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हुआ, जंगलों के सूखने में योगदान देता है। उच्च तापमान से वाष्पीकरण दर बढ़ जाती है, जिससे मिट्टी की नमी और कम हो जाती है।
  • मानवीय गतिविधियाँ:
    • मानवीय गतिविधियाँ, जैसे लापरवाही से सिगरेट छोड़ना या अनियंत्रित रूप से जलाना, वनाग्नि का कारण बन सकता है।
    • यदि ठीक से प्रबंधन न किया जाए तो वन विभाग द्वारा नियंत्रित जलावन भी इस समस्या में योगदान दे सकता है।
  • कमज़ोर वृक्ष प्रजातियाँ:
    • चीड़ पाइन जैसे अग्नि-प्रवण और ज्वलनशील वृक्ष प्रजातियों की उपस्थिति से वनाग्नि का खतरा बढ़ जाता है।
    • हिमाचल का लगभग 15% वन क्षेत्र चीड़ से आच्छादित है।
  • दीर्घकालीन सूखा रहने से खतरा:
    • कई महीनों तक बारिश या बर्फबारी के बिना लंबे समय तक सूखा रहने से क्षेत्र में वनाग्नि का खतरा बढ़ जाता है।

वनाग्नि से निपटने के लिये सरकार द्वारा कौन-सी पहल की गई हैं?

  • वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPFF), वर्ष 2018 में वन सीमांत समुदायों को जागरूक करने, सक्षम बनाने तथा उनका सशक्तीकरण करने और उन्हें राज्य वन विभागों के साथ सहयोग करने के लिये प्रोत्साहित करके वनाग्नि को कम करने के लक्ष्य के साथ यह कार्ययोजना बनाई गई थी।
  • वनाग्नि निवारण और प्रबंधन योजना (FPM) एकमात्र सरकार प्रायोजित कार्यक्रम है जो वनाग्नि से निपटने में राज्यों की सहायता के लिये समर्पित है।

आगे की राह

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