मध्य प्रदेश में क्यों नहीं खुल पाया कांग्रेस का खाता?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
इस बार का लोकसभा चुनाव परिणाम चौंकाने वाला रहा। कई राज्यों में बीजेपी क्लीन स्वीप की स्थिति में रही। बीजेपी ने मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली में सारी की सारी सीटों पर जीत दर्ज की। छत्तीसगढ़ में सिर्फ एक सीट कांग्रेस को मिली। 11 में से 10 सीटों पर बीजेपी का परचम रहा। मध्य प्रदेश में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया। बीजेपी ने सभी 29 सीटें जीत लीं। इससे पहले मध्य प्रदेश में कांग्रेस का कभी सूपड़ा साफ नहीं हुआ था। आखिर मध्य प्रदेश में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई, इसके क्या कारण रहे? बीजेपी ने बीजेपी ने जो बिसात बिछाई, उसमें कांग्रेस पूरी तरह कैसे चित हो गई?
शिव-मोहन की जोड़ी पर था दारोमदार
बीजेपी के बड़े नेताओं के कंधे पर जीत को लेकर पूरा दारोमदार था। खासतौर पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सीएम मोहन यादव के ऊपर। बीजेपी संगठन ने पांचवीं बार शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री नहीं बनाकर उन पर लोकसभा चुनाव की सारी जिम्मेदारी दी। उन्होंने पूरी ताकत के साथ प्रचार किया। खुद विदिशा लोकसभा सीट से 8 लाख के बड़े अंतर से जीते, साथ ही पार्टी को भी प्रदेश में बंपर जीत दिलाई।
पहली बार सीएन बने मोहन यादव के लिए थी अग्नि परीक्षा
मुख्यमंत्री बनने के बाद मोहन यादव के लिए यह चुनाव किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं था। उन्होंने इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी। इस दौरान उन्होंने 185 विधानसभाओं में ताबड़तोड़ 142 रैलियां और 56 रोड शो किया। वे इस परीक्षा में पूरी तरह खरे उतरे। बीजेपी ने 29 में से सभी 29 सीटों पर जीत दर्ज की।
अर्ध पन्ना प्रमुख पर बूथ लेवल की जिम्मेदारी
मध्य प्रदेश में बंपर जीत के लिए बीजेपी ने अर्ध पन्ना प्रमुख बनाए। इससे पहले पार्टी पन्ना प्रमुख बनाती थी। वोटर लिस्ट के एक पन्ने पर 35 मतदाताओं के नाम होते हैं। जिसकी जिम्मेदारी पार्टी किसी एक कार्यकर्ता को सौंपती है। इसे पन्ना प्रमुख कहते हैं। लेकिन इस बार बीजेपी ने रणनीति में बदलाव करते हुए अर्ध पन्ना प्रमुख बनाए इसमें अब आधे पन्ने के हिसाब से एक कार्यकर्ता के पास 15-17 वोटर की जिम्मेदारी थी।
कांग्रेस की अंदरूनी कलह, प्रचार से दूर रहे प्रियंका-राहुल
विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया था। प्रदेश की कमान जीतू पटवारी को दी। इसके बाद चार कांग्रेस नेता बीजेपी में शामिल हो गए। अटकलें लगाई जाने लगीं कि कमलनाथ भी बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। कमलनाथ ने इस बार छिंदवाड़ा सीट पर बहुत मेहनत नहीं की। ना ही राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे स्टार प्रचारकों ने इस सीट पर चुनाव प्रचार किया। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस के हाथ से छिंदवाड़ा भी निकल गया। पूर्व सीएम के बेटे नकुल नाथ इस सीट से हार गए। वहीं, कांग्रेस दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी राजगढ़ से चुनाव हार गए।
मध्य प्रदेश में छह महीने के भीतर कांग्रेस की दो बड़ी हार के बाद पार्टी में अफरातफरी और सिर फुटव्वल की स्थिति है। विधानसभा चुनाव में करारी हार का दर्द कम भी नहीं हुआ था और लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदेश में सफाया हो गया। यह स्थिति तब है जब भाजपा शासित दूसरे राज्यों में कांग्रेस और आइएनडीआइ गठबंधन को उम्मीद से अच्छे परिणाम मिले।
ऐसे में शांत बैठे पार्टी के बड़े नेता अब खुलकर प्रदेश नेतृत्व के विरोध में उतर आए हैं। सबसे अधिक घेराबंदी पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ व दिग्विजय सिंह के साथ प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की हो रही है। कमल नाथ और दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस विधानसभा चुनाव हारी और जब पार्टी में जान फूंकने के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व ने जीतू को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी तो उनके कार्यकाल में तीन विधायक सहित कई बड़े नेता उन पर आरोप मढ़कर भाजपा में चले गए।
अजय सिंह ‘राहुल’ ने ऐसा नहीं कहा है। मेरी इस संबंध में उनसे फोन पर भी बात हुई है। यदि कहा भी है तो वे बड़े भाई हैं। समीक्षा कर हार का कारण जानेंगे और सुधार करेंगे। मेरे तरीके पर किसी नेता ने आपत्ति नहीं ली। दुर्व्यवहार की शिकायत नहीं की। जो छोड़कर गए हैं, उन्होंने भी बुराई नहीं की। – जीतू पटवारी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, मध्य प्रदेश
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