Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
देर से मदद के लिए क्यों आया अमेरिका? - श्रीनारद मीडिया

देर से मदद के लिए क्यों आया अमेरिका?

देर से मदद के लिए क्यों आया अमेरिका?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

इस समय देश कोरोना महामारी विकट दौर से गुजर रहा है. देश के हर हिस्से से से रोजाना दिल दहलाने वाली खबरें सामने आ रही हैं. कोरोना संक्रमण के मरीजों की संख्या रोज बढ़ रही है. ऑक्सीजन की कमी और कोरोना से होने वाली मौतें दिल को दहला दे रही हैं. संकट की इस घड़ी में सिंगापुर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश मदद के लिए आगे आए हैं.

लेकिन इस संकट पर अमेरिका की चुप्पी सबको हैरान कर रही थी जबकि भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है. यहां तक कि अमेरिका ने भारत में वैक्सीन निर्माण के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करने से भी इनकार कर दिया था. रविवार को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि भारत में फैले व्यापक कोरोना संक्रमण के इस दौर में हम और मजबूती से भारत के साथ खड़े हैं. हम इस मामले में अपने साझेदार भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.

हम जल्द ही भारत के लोगों और भारतीय हेल्थकेयर हीरो के लिए अतिरिक्त सहायता मुहैया कराएंगे. अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने भी कहा कि भारत में कोरोना संकट को लेकर अमेरिका बहुत चिंतित है. हम अपने दोस्त और सहयोगी भारत की मदद की दिशा में काम कर रहे हैं जिससे वे इस महामारी का मुकाबला बहादुरी से कर सकेंगे.

अमेरिका के दो शीर्ष अधिकारियों के बयान के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि बाइडेन प्रशासन कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटा सकता है. इसके पहले भारत के राजनयिक हलकों से भी इस आशय का अनुरोध किया गया था. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ वैक्सीन के कच्चे माल को लेकर बातचीत की थी.

इससे पहले अमेरिका ने कोरोना के टीके के प्रमुख कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा था. इससे भारत में सीरम इंस्टीट्यूट के टीके कोविशील्ड के निर्माण की रफ्तार धीमी पड़ने की आशंका जताई जा रही थी. सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने ट्वीट कर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से कच्चे माल के निर्यात के नियमों में ढील देने का अनुरोध किया था ताकि भारत की जरूरतों को पूरा किया जा सके.

लेकिन अमेरिकी ने टीका निर्माण के कच्चे माल से निर्यात प्रतिबंध हटाने से साफ इनकार कर दिया था. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि बाइडेन प्रशासन का पहला दायित्व अमेरिका के लोगों की जरूरतों का ध्यान रखना है. अभी अमेरिका अपने लोगों के महत्वाकांक्षी टीकाकरण के काम में लगा है. हमारी अमेरिकी लोगों के प्रति विशेष जवाबदेही है. जहां तक बाकी दुनिया की बात है, हम पहले अपना दायित्व को पूरा करने के साथ जो कुछ भी कर सकेंगे, वह करेंगे.

हालांकि अमेरिका की इस दलील में दम नहीं है कि उसे पहले अपने लोगों को वैक्सीन लगानी है. अमेरिका के पास टीके की जरूरत से ज्यादा अतिरिक्त खुराक हैं जिनका इस्तेमाल कभी नहीं किया जाना है. अमेरिका ने एस्ट्राजेनेका और जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन भी खरीद रखी हैं. इनमें से एस्ट्राजेनेका जो भारत में कोविशील्ड के नाम जानी जाती है, उसका अमेरिका ने इस्तेमाल ना करने का निर्णय किया है.

अमेरिका में टीकाकरण तेजी से चल रहा है और वहां चार जुलाई तक पूरी आबादी को टीका लगाने का काम पूरा हो जाएगा. यही स्थिति यूरोप के कई अन्य देशों की है. रिपोर्टों के अनुसार ब्रिटेन ने अपनी आबादी से लगभग चार गुना अधिक टीके की खुराक खरीद रखी हैं.

कहा जा रहा है कि ट्रंप के जाने के बाद बाइडन के नेतृत्व में असली अमेरिका की वापसी हुई है. आशय यह है कि अमेरिका अब अपने रंग में वापस आ गया है. उसको केवल अमेरिकी लोगों से मतलब है, दुनिया के जीने मरने से कोई लेना देना नहीं है. जबकि भारत में पिछले दो दशकों से भारत- अमेरिका मैत्री के तराने गाए जाते रहे हैं. भारत ने अपने पुराने मित्र रूस से हाथ खींचकर अमेरिका से हाथ मिलाकर कूटनीतिक दृष्टि से बड़ा परिवर्तन किया था.

तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जमाने में अमेरिका के साथ परमाणु समझौता हुआ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौर में यह रिश्ता और परवान चढ़ा. इसमें तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की भारत यात्रा और उनका भव्य स्वागत शामिल है. और तो और जब कोरोना की पहली लहर आयी थी, तो उस दौरान हाइड्रो क्लोरोक्वीन इसके इलाज में कारगर मानी जा रही थी.

भारत ने इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा था ताकि देश में इसकी कमी ना होने पाए. लेकिन तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इसकी आपूर्ति का अनुरोध किया. भारत ने निर्यात पर से रोक हटाकर अमेरिका को इसकी आपात आपूर्ति की थी. जहां तक भारत-अमेरिका के रिश्तों की बात है, तो भारत चार देशों के विशेष समूह क्वाड का सदस्य भी है जिसका पहला शिखर सम्मेलन एक महीने पहले मार्च में हुआ था.

कोरोना वायरस संक्रमण के बीच वर्चुअल तरीके से आयोजित क्वाड की इस बैठक में भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा शामिल हुए थे. द क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग यानी क्वाड अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच कूटनीतिक बातचीत का महत्वपूर्ण फोरम है.

अमेरिका की पहल पर मार्च में इसकी बैठक हुई थी और इसका मकसद चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना है. अमेरिका चीन को गंभीर चुनौती मानता है और भारत उसके प्रभाव को रोकने की महत्वपूर्ण कड़ी माना जाता है. हाल में अमेरिका ने जलवायु परिवर्तन को लेकर एक अहम वर्चुअल सम्मेलन किया. इसके लिये अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के विशेष दूत जॉन केरी भारत आये थे और उन्होंने अमेरिका-भारत संबंधों के तराने गाये और कहा कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में भारत की अहम भूमिका है.

जान कैरी ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान भारत ने वैक्सीन तैयार की और उसे दूसरे देशों तक भी पहुंचाया जिसकी तारीफ की जानी जानी चाहिए. पुरानी कहावत है कि सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय ही होती है. जो मित्र दुख की घड़ी में आपसे दूर हो जाता है, वह आपका सच्चा मित्र नहीं है.

गोस्वामी तुलसीदास ने मित्र की पहचान बताई है- जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहि बिलोकत पातक भारी, निज दुख गिरि सम रज करि जाना, मित्रक दुख रज मेरु समाना. जो लोग मित्र के दुख से दुखी नहीं होते, उन्हें देखने से ही बड़ा पाप लगता है. अपने पर्वत के समान दुख को धूल के समान और मित्र के धूल के समान दुख को सुमेरु (पर्वत) के समान जाने, वही मित्र है.

ये भी पढ़े…

Leave a Reply

error: Content is protected !!