राजनीति में क्यों सक्रिय हुए आनंद मोहन?

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आनंद मोहन की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने वाली है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार की राजनीति में कई बाहुबली नेताओं ने अपना दंभ दिखाया. कई नेताओं की मौत हो चुकी है तो कई अभी भी राजनीति के मैदान में सक्रिय हैं. इन नेताओं में एक नाम है आनंद मोहन सिंह का. आनंद मोहन कोसी क्षेत्र की राजनीति करके बिहार में छाए. सहरसा के पंचगछिया गांव निवासी आनंद मोहन बेहद कम उम्र में राजनीति में सक्रिय हो गए थे. 1974 में जेपी आंदोलन में भी उन्होंने हिस्सा लिया और इमरजेंसी के दौरान उन्होंने जेल की सजा भी काटी. वहीं गोपालगंज में तत्कालीन डीएम की हत्या के मामले में आनंद मोहन को सजा का ऐलान हुआ. आनंद मोहन आजाद भारत के पहले ऐसे विधायक थे जिन्हें मौत की सजा सुनायी गयी थी. उसी मामले में रिहाई का विवाद अबतक सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.

  • आनंद मोहन राजपूत समाज के नेता बनकर उभरे. उन्होंने नब्बे के दशक में सवर्णों के समर्थन में राजनीति की. राजनीति के जानकार बताते हैं कि आनंद मोहन ने साल 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को काले झंडे दिखा दिए थे. मोरारजी देसाई तब भाषण दे रहे थे.
  • आनंद मोहन ने 1980 में समाजवादी क्रांति सेना बनायी. कई अपराधिक मामलों में आनंद मोहन की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी समय-समय पर शुरू होती रही. 1983 में आनंद मोहन को तीन महीने की कैद हुई थी.नब्बे के दशक में आनंद मोहन की तूती राजनीति के मैदान में भी बोलती थी.
  • 1990 में जनता दल ने आनंद मोहन को सहरसा के महिषी विधानसभा से टिकट दिया. आनंद मोहन ये चुनाव जीत गए और विधायक बने. राजनीति के मैदान में आनंद मोहन बाहुबली नेता बनकर ही उतरे. तब राजद सुप्रीमो लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे.
  • मंडल कमीशन ने जब सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़े वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की तो जनता दल ने उसे समर्थन दिया. आनंद मोहन ने फिर अपना रास्ता अलग किया और बिहार पीपुल्स पार्टी नाम से अपना एक दल तैयार कर लिया. समता पार्टी से बाद में उन्होंने हाथ मिलाया. आनंद मोहन आरक्षण के खिलाफ थे.

आनंद मोहन की राजनीति..

  • 1994 में उनकी पत्नी लवली आनंद ने राजद उम्मीदवार को हराकर वैशाली लोकसभा सीट से उपचुनाव जीता था. लवली आनंद समता पार्टी की उम्मीदवार बनी थीं.
  • 1995 में आनंद मोहन के नाम की चर्चा काफी अधिक थी. उन्होंने तब तीन जगह से विधानसभा चुनाव लड़ा था. लेकिन तीनों सीटों से हार गए थे. इसके बाद 1996 में आनंद मोहन समता पार्टी में शामिल हो गए थे.
  • आनंद मोहन 1996 के आम चुनाव में शिवहर लोकसभा सीट से जीते. उस वक्त जेल में ही रहकर उन्होंने चुनाव जीता था. 1998 में भी इस सीट से उन्होंने जीत दर्ज की थी. तब वो राष्ट्रीय जनता पार्टी के उम्मीदवार थे. 1999 में आनंद मोहन ने राजद का साथ छोड़ा और उनकी पार्टी ने भाजपा का साथ दिया. राजद उम्मीदवार से हार मिलने पर आनंद मोहन की बीपीपी पार्टी ने तब कांग्रेस से भी हाथ मिलाया. आंनद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी अब अस्तित्व में नहीं है.

आनंद मोहन की मुश्किलें जब बढ़ीं, फांसी की मिली सजा..

  • बिहार के गोपालगंज में डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन बुरी तरह फंसे. दरअसल,दिसंबर 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया गोपालगंज जा रहे थे. आनंद मोहन के सहयोगी छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के दौरान भीड़ ने तत्कालीन डीएम के काफिले को रोका था और पीट-पीटकर डीएम की हत्या कर दी थी.
  • गोपालगंज में डीएम हत्याकांड मामले में आनंद मोहन को दोषी पाते हुए अदालत ने दोषी करार दिया और निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई. आनंद मोहन आजाद भारत के पहले ऐसे विधायक थे जिन्हें मौत की सजा मिली थी. हालांकि हाईकोर्ट ने उनकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. जिसके बाद करीब 15 साल से वो सलाखों के पीछे थे.

राजनीति में परिवार..

  • आनंद मोहन जेल गए तो उनकी पत्नी लवली आनंद ने राजनीति की बागड़ोर थामी. कई दल उन्होंने भी बदले. कई बार हार का भी सामना करना पड़ा. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरी लवली आनंद को जीत नसीब नहीं हुई. वहीं उनके पुत्र चेतन आनंद को राजद ने विधानसभा का टिकट थमाया और आरजेडी की ओर से जीतकर वो विधानसभा पहुंचे थे.

आनंद मोहन की रिहाई..

  • आनंद मोहन की रिहाई तब हुई जब राजद और जदयू वाली महागठबंधन सरकार ने जेल मैनुअल में बदलाव किया. नियम बदले जाने का लाभ आनंद मोहन को भी मिला और वो अब बाहर आए हैं. उनकी रिहाई के दौरान आनंद मोहन समर्थकों में जश्न का माहौल देखा गया था. वहीं दिवंगत डीएम की पत्नी ने उनकी रिहाई के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में अब चैलेंज किया है जिसका सुनवाई निरंतर हो रही है.

राजनीति में फिर से सक्रिय हुए आनंद मोहन..

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