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बिहार पुलिस ने अवैध रेत खनन पर कार्रवाई क्यों की ? - श्रीनारद मीडिया

बिहार पुलिस ने अवैध रेत खनन पर कार्रवाई क्यों की ?

बिहार पुलिस ने अवैध रेत खनन पर कार्रवाई क्यों की ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार पुलिस ने अवैध रेत खनन के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए रेत तस्करों को गिरफ्तार किया था।

  • सोन नदी के पास यह ऑपरेशन अवैध रेत खनन गतिविधियों में शामिल शक्तिशाली आपराधिक सिंडिकेट के खिलाफ चल रही लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण कदम का प्रतीक है।

रेत खनन क्या है?

  • परिचय:
    • रेत खनन को बाद के प्रसंस्करण के लिये मूल्यवान खनिजों, धातुओं, पत्थर, रेत और बजरी को निकालने के लिये प्राकृतिक पर्यावरण (स्थलीय, नदी, तटीय या समुद्री) से प्राथमिक प्राकृतिक रेत और रेत संसाधनों (खनिज रेत और समुच्चय) को हटाने के रूप में परिभाषित किया गया है। विभिन्न कारकों से प्रेरित यह गतिविधि पारिस्थितिक तंत्र और समुदायों के लिये गंभीर खतरा पैदा करती है।
  • भारत में रेत का स्रोत::
    • सतत रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश (SSMMG) 2016 सुझाव देते हैं कि भारत में रेत के स्रोत हैं
      • नदी (नदी तटवर्ती और बाढ़ का मैदान),
      • झीलें और जलाशय,
      • कृषि क्षेत्र,
      • तटीय/समुद्री रेत,
      • पैलियो-चैनल,
      • निर्मित रेत (एम-सैंड)।
  • अवैध रेत खनन में योगदान देने वाले कारक:
    • विनियमन और प्रवर्तन का अभाव:
      • अपर्याप्त नियामक ढाँचे और कमज़ोर प्रवर्तन तंत्र अवैध रेत खनन के प्रसार में योगदान करते हैं।
    • निर्माण सामग्री की उच्च मांग:
      • निर्माण उद्योग में रेत ईंधन की भारी मांग के कारण अवैध उत्खनन हो रहा है, जिससे निर्माण परियोजनाओं में रेत की बढ़ती आवश्यकता के कारण नदी तलों और तटीय क्षेत्रों पर दबाव बढ़ रहा है।
      • तेज़ी से जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण के कारण निर्माण की आवश्यकता बढ़ गई है, जिससे रेत की मांग बढ़ गई है।
  • भ्रष्टाचार और माफिया प्रभाव:
    • भ्रष्ट आचरण और संगठित रेत माफियाओं का प्रभाव अवैध खनन को जारी रखने में योगदान देता है।
      • अधिकारियों और अवैध ऑपरेटरों के बीच मिलीभगत रेत खनन उद्योग को नियंत्रित तथा विनियमित करने के प्रयासों को कमज़ोर करती है।
  • स्थायी विकल्पों का अभाव:
    • विनिर्मित रेत (M-sand) जैसे टिकाऊ विकल्पों को सीमित रूप से अपनाने से नदी तल की रेत पर अत्यधिक निर्भरता में योगदान होता है।
    • पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों का अपर्याप्त प्रचार प्राकृतिक रेत की मांग को बनाए रखता है, जिससे पर्यावरणीय परिणाम बिगड़ते हैं।
  • कमजोर पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) कार्यान्वयन:
    • रेत खनन गतिविधियों के लिये EIA का अप्रभावी कार्यान्वयन अनधिकृत निष्कर्षण की अनुमति देता है।
    • अपर्याप्त जन जागरूकता और निगरानी तंत्र अवैध खनन गतिविधियों पर ध्यान नहीं दिये जाने में योगदान करते हैं।
  • रेत खनन के परिणाम:
    • कटाव और आवास विघटन:
      • भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) का कहना है कि अनियमित रेत खनन से नदी तल बदल जाता है, जिससे कटाव बढ़ जाता है, चैनल आकारिकी में बदलाव होता है और जलीय आवासों में व्यवधान होता है।
      • रेत खनन से धारा चैनलों में स्थिरता का नुकसान होता है, जिससे खनन पूर्व आवास स्थितियों के लिये अनुकूलित देशी प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा होता है
    • बाढ़ और बढ़ा हुआ अवसादन:
      • नदी तल से रेत की कमी नदियों और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ तथा अवसादन में वृद्धि में योगदान करती है।
      • परिवर्तित प्रवाह पैटर्न और तलछट भार जलीय पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिससे वनस्पति तथा जीव दोनों प्रभावित होते हैं।
    • भूजल का ह्रास:
      • रेत खनन के कारण बने गहरे गड्ढे भूजल स्तर में गिरावट का कारण बन सकते हैं।
        • यह स्थानीय पेयजल कुओं को प्रभावित करता है, जिससे आसपास के क्षेत्रों में जल की कमी हो जाती है।
    • जैव-विविधता हानि:
      • रेत खनन जैसी गतिविधियों से उत्पन्न आवास व्यवधान तथा क्षरण से जैवविविधता को गंभीर क्षति होती है, जिससे जलीय एवं तटवर्ती दोनों प्रजातियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके विनाशकारी प्रभाव मैंग्रोव वनों तक व्याप्त हैं।

भारत में रेत खनन को रोकने के लिये क्या पहल की गई हैं?

  • खान और खनिज विकास तथा विनियमन अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम):
    • खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) के तहत रेत को “लघु खनिज” के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा लघु खनिजों पर प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकारों के अधीन है।
    • MMDR अधिनियम की धारा 3(e) का उद्देश्य सरकार द्वारा अवैध प्रथाओं पर अंकुश लगाने के साथ अवैध खनन को रोकना है।
    • MMDR अधिनियम, 1957 में संशोधन के लिये खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 हाल ही में संसद द्वारा पारित किया गया था।
  • 2006 पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA):
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी रेत खनन संग्रहण गतिविधियों (5 हेक्टेयर से कम क्षेत्रों में भी) के लिये अनुमोदन आवश्यक है।
      • इस निर्णय का उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र पर रेत खनन के गंभीर प्रभाव का समाधान करना है, जो पौधों, पशुओं तथा नदियों को प्रभावित करता है।
  • सतत रेत खनन प्रबंधन दिशानिर्देश (SSMG) 2016:
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी, इन दिशानिर्देशों के मुख्य उद्देश्यों में पर्यावरण की दृष्टि से सतत् तथा सामाजिक रूप से ज़िम्मेदारीपूर्ण खनन, पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा व बहाली द्वारा नदी संतुलन एवं उसके प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण, प्रदूषण से सुरक्षा तथा नदी जल की कमी व भूजल भंडार की कमी को रोकना शामिल है।
  • रेत खनन हेतु प्रवर्तन और निगरानी दिशानिर्देश 2020:
    • ये दिशानिर्देश पूरे भारत में रेत खनन की निगरानी के लिये एक समान प्रोटोकॉल प्रदान करते हैं।
      • दिशानिर्देशों में रेत खनिज स्रोतों की पहचान, उनके प्रेषण और उनके अंतिम उपयोग को शामिल किया गया है।
      • दिशानिर्देश रेत खनन प्रक्रिया की निगरानी के लिये ड्रोन और नाइट विज़न जैसी नई निगरानी प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर भी विचार करते हैं।

सोन नदी

 

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