बिहार के सुशील मोदी व ललन सिंह को क्यों नहीं मिली जगह?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
नरेंद्र मोदी का कैबिनेट विस्तार हो चुका है। बिहार की बात करें तो मोदी कैबिनेट में भारतीय जनता पार्टी से सुशील मोदी तथा जनता दल यूनाइटेड से ललन सिंह को मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी। सवाल यह है कि सशक्त दावेदरी के बावजूद दोनों मंत्री क्यों नहीं बनाए जा सके? एक सवाल यह भी खड़ा है कि चार सीटों की मांग कर रहे जेडीयू ने केवल एक कैबिनेट सीट से संतोष क्यों कर लिया?
बड़े कद के बावजूद मंत्री बनने से चूके ललन व सुशील मोदी
सुशील मोदी बिहार बीजेपी के कद्दावर नेता रहे हैं। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के घोटालों को उजागर कर उन्हें जेल तक पहुंचाने तथा महागठबंधन (Mahagathbandhan) की सरकार गिराने में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है। बीते बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) के बाद जब बीजेपी ने उन्हें बिहार के उपमुख्यमंत्री (Dy.CM) पद से हटा केंद्र की राजनीति में भेजने का फैसला किया, तब उन्हें केंद्र में अहम जिम्मेदारी देने का वादा किया था। उधर, जेडीयू सांसद ललन सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के बड़े रणनीतिकार माने जाते हैं। हाल ही में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को तोड़ने में भी उनकी भूमिका रही है। वे आरसीपी सिंह (RCP Singh) के साथ नीतीश कुमार की कोर टीम के शामिल हैं। अपनी-अपनी पार्टी में बड़ा कद होने के बावजूद ये दोनों नेता मंत्री पद पाने से चूक गए हैं।
सहयोगी दलों से मंत्री बनाए, अपने नेताओं को वेटिंग में डाला
बिहार की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एनडीए सरकार में लंबे समय तक उपमुख्यमंत्री रहे सुशील मोदी को बीजेपी ने केंद्र में अहम जिम्मेदारी देने का वादा कर राज्यसभा सांसद बनाया था। माना जा रहा था कि ये ‘अहम जिम्मेदारी’ उन्हे कैबिनेट मंत्री बनाकर दी जानी थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इसकर एक बड़ी वजह तो उत्तर प्रदेश (UP Assembly Election) व गुजरात सहित पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव नजर आ रहे हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में हर बार चुनावी राज्यों को प्राथमिकता मिलती रही है। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि चुनावी राज्यों से अधिक मंत्री बनाए गए हैं। उत्तर प्रदेश से सात तो गुजरात से पांच मंत्री बनाए गए हैं। माना जा रहा है कि पांच राज्यों में चुनाव की परिस्थिति को देखते हुए बिहार में बीजेपी ने सहयोगी दलों से मंत्री बनाए तथा अपने नेताओं को फिलहाल वेटिंग में डाल दिया।
संजय जायसवाल की दावेदारी ने रोक दी सुशील मोदी कर राह
बीजेपी नहीं मानती, लेकिन माना जा रहा है कि सुशील मोदी के मंत्री नहीं बन पाने के पीछे पार्टी की अंदरूनी खींचतान भी रही। बिहार बीजेपी कोटे से एक केंद्रीय मंत्री से त्यागपत्र लेकर किसी एक को मंत्री बनाया जा सकता था। बीजेपी कोटे के मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस्तीफा भी दिया। लेकिन सुशील मोदी मंत्री नहीं बन सके। बताया जाता है कि बिहार बीजेपी के अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल भी मंत्री बनने की कोशिश में थे। उन्हें तो मंत्री पद नहीं दिया गया, लेकिन उनकी दावेदारी ने सुशील मोदी की राह भी रोक दी।
जेडीयू के ललन सिंह की राह मे उनका बड़ा कद ही बना रोड़ा
जेडीयू में ललन सिंह का कद ही उनकी राह में बाधा बन गया। नरेंद्र मोदी की सरकार में जेडीयू कोटे से कैबिनेट मंत्री केवल एक बनाया जाना था और बराबर कद के दो दावेदार थे। ललन सिंह राज्यमंत्री नहीं बनाए जा सकते थे, इसलिए उनमें व आरसीपी सिंह में किसीएक को तो पिछड़ना ही था। ललन सिह के साथ साल 2019 में भी ऐसा ही हुआ था, जब बीजेपी ने जेडीयू को एक कैबिनेट और एक राज्य मंत्री का प्रस्ताव दिया था। उस वक्त भी आरसीपी सिंह व ललन सिंह के बराबर कद को देखते हुए पार्टी ने मोदी कैबिनेट से बाहर रहने का फैसला किया था।
जेडीयू ने क्यों किया एक सीट से संतोष, तलाशे जा रहे मायने
जेडीयू की बात करें तो साल 2019 में मंत्रिमंडल के गठन के वक्त उसने एक सीट का प्रस्ताव अस्वीकार करते हुए सरकार काे बाहर से समर्थन देने का फैसला किया था। तब की तहर उनकी इस बार भी चार सीटों की मांग थी। लेकिन इस बार उसने सरकार में शामिल होने का फैसला किया। इसके सियासी मायने भी तलाशे जा रहे हैं।
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