पेरिस ओलंपिक में भारत को एक भी स्वर्ण पदक क्यों नहीं आया?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पेरिस में ओलंपिक खेलों का समापन हो गया है। भारत के लिहाज से 2024 का यह ओलंपिक खट्टी मीठी यादों वाला कहा जाएगा। देशवासी उम्मीद जता रहे थे कि भारत इस बार दहाई के अंक तक पदक हासिल करेगा। यानी पिछले टोक्यो ओलंपिक में सात पदक से ज्यादा हम पेरिस में जीतेंगे। मगर, अनुमान और भविष्यवाणी हमेशा सही साबित नहीं होते हैं।
सबसे बड़ी निराशा तो यह कि हमारे किसी खिलाड़ी अथवा एथलीट ने स्वर्ण पदक नहीं जीता। यह किसी दुर्भाग्य से कम नहीं है। इस कारण पदक तालिका में भारत काफी नीचे 69 वें स्थान पर रहा। एक भी स्वर्ण पदक मिल जाता तो हम थोड़ा ऊपर दिख जाते। भाला फेंक में नीरज चोपड़ा से स्वर्ण की पूरी उम्मीद थी लेकिन वह भी रजत पदक ही ला सके। इस प्रतियांगिता का स्वर्ण पदक पाकिस्तान के अरशद नदीम के नाम रहा। इस वजह से पाकिस्तान एक स्वर्ण पदक लेकर पदक तालिका में भारत से ऊपर हो गया।
भारत को कुल छह पदक मिले जिनमें से एक रजत और पांच कांस्य पदक शामिल हैं। इसमें हॉकी टीम को मिला कांस्य पदक भी है। हालांकि, पेरिस में भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण के लिए पूरा जोर लगाया। पर, सेमीफाइनल मुकाबले में जर्मनी से पराजित होने के बाद यह आस भी टूट गई। वर्ष 1980 के मास्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद भारत अभी तक इससे वंचित है। संतोष इसी बात का है कि लगातार दो ओलंपिक टोक्यो और पेरिस में हमारी टीम ने तीसरे स्थान पर रह कर कांस्य पदक हासिल कर लिया।
खाली हाथ लौटने से बेहतर है कि कुछ मिल गया। इसमें कोई शक नहीं कि पूरी भारतीय टीम ने बहुत अच्छी हॉकी खेली। ओलंपिक में 52 साल के बाद ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम को हराया। इससे देश भर को सोने की उम्मीद बन गई थी। गोलकीपर पीआर श्रीजेश की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। इस खिलाड़ी ने न जाने कितने गोल बचा कर भारत की जीत में योगदान दिया। यह उनका आखिरी टूर्नामेंट था। चार ओलंपिक खेल चुके श्रीजेश ने अब संन्यास ले लिया है। कसक यह रह गई कि स्वर्ण पदक से उनकी विदाई नहीं हो सकी।
निशानेबाजी में मनु भाकर ने दो पदक जीत कर इतिहास रच दिया। तीसरे पदक से वह चूक गई वर्ना भारत के खाते में एक और पदक जुड़ जाता। पूरा देश आज हरियाणा की इस लड़की पर नाज कर रहा है। भाकर ने शूटिंग में व्यक्तिगत रूप से तो कांस्य जीता ही, सरबजोत के साथ 10 मीटर एयर पिस्टल की मिक्स्ड स्पर्धा में भी यही सफलता दोहरा दिया। इस स्पर्धा में एक और कांस्य पदक महाराष्ट्र के स्वप्निल कुसाले ने दिलाया। इस तरह भारत को तीन कांस्य पदक तो शूटिंग में ही प्राप्त हो गए।
महिला पहलवान विनेश फोगाट के साथ हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने इस ओलंपिक में भारत को बड़ा सदमा दे दिया। पूरा देश इस घटना से हैरान−परेशान है। वह फाइनल मुकाबले से पहले अधिक वजन होने के कारण अयोग्य ठहरा दी गई वर्ना एक पदक तो मिलना तय ही था। विनेश ने बड़ी बहादुरी से फाइनल तक का सफर पूरा किया था। मगर, भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया। अब उसका मामला खेल पंचाट के सामने है। जिसका निर्णय अब 13 अगस्त को आएगा। विनेश का दावा है कि उसे रजत पदक दिया जाना चाहिए। देश के जाने माने अधिवक्ता हरीश साल्वे ने भी उसकी तरफ से केस लड़ा है। देखना है कि निर्णय क्या आता है। इस बीच विनेश ने कुश्ती से संन्यास का ऐलान भी कर दिया है।
कुश्ती में एकमात्र पुरुष पहलवान अमन सेहरावत ने पहली बार ओलंपिक में भाग लिया और उसने कांस्य पदक जीत कर देश की लाज रख ली। 21 साल के अमन ओलंपिक में पदक जीतने वाले सबसे युवा खिलाड़ी रहे। अन्य महिला पहलवानो को कोई पदक नहीं मिला। आखिरी दिन रितिका हुड्डा ने थोड़ी आस जगाई लेकिन क्वार्टर फाइनल में दमखम दिखाने के बाद वह शीर्ष वरीयता प्राप्त किर्गिस्तान की पहलवान से हार गई। उधर, निशा दहिया 68 किलोग्राम वर्ग में चोट के कारण जीता हुआ क्वार्टर फाइनल मैच अंतिम 33 सेकंड में 10−8 से हार गईं। हार के बाद निशा की आंखों से आंसू निकल आए।
भारत के कई खिलाड़ी पदक से इसलिए भी चूक गए क्योंकि वे चौथे स्थान पर रहे। आठ खिलाडि़यों ने मामूली अंकों के साथ तीसरे पर न आकर चौथा स्थान हासिल किया। यदि ये तीसरे नंबर पर आ जाते तो कम से कम कांस्य पदक तो मिल ही जाता। इनमें मनु भाकर, मीरा बाई चानू, दीपिका कुमारी, पीवी सिंधू आदि कुछ नाम शामिल हैं। मुक्केबाजी में देश को कोई पदक नहीं मिला। निकहत जरीन से निराश किया। वहीं, टोक्यो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता लवलीना बारेगेहान सेमीफाइनल में पराजित हो गई।
यही हाल बैडमिंटन स्टार लक्ष्य सेन का रहा। वह निश्चित रूप से पदक जीतने के करीब थे। मगर, दुर्भाग्य से इससे वंचित रह गए। सेमीफाइनल तक पहुंचने के बाद पदक की उम्मीद बन जाती है। कांस्य पदक के लिए प्ले ऑफ के मैच में दुनिया के 22वें नंबर के शटलर लक्ष्य ने बढ़त गंवा दी। मलेशिया के ली जिया ने उन्हें हरा दिया। पीवी सिंधू दो ओलंपिक रियो और टोक्यो में पदक जीत चुकी हैं। लेकिन पेरिस से उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा।
भारतीय एथलीट अविनाश साबले ने पुरुष 3000 मीटर के स्टीपलचेज स्पर्धा में फाइनल के लिए क्वालिफाई कर लिया। उनसे भी पदक की उम्मीद बन गई थी। मगर, बाद में उन्होंने भी निराश किया।
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