गुवाहाटी में 28 वर्ष तक किराया पर क्यों रहे मनमोहन सिंह?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 

 देश के इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो कभी लोकसभा के सदस्य नहीं रहे। वह छह बार राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए थे। वो साल 1991 में वह कांग्रेस के टिकट पर असम से पहली बार राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे। पूर्व प्रधानमंत्री लगातार पांच बार असम से राज्यसभा सांसद रहे। इसी वजह से असम को डॉ मनमोहन सिंह का दूसरा घर कहा जाने लगा। जब तक वो असम से राज्यसभा सांसद निर्वाचित रहे उनका पता, गुवाहाटी के नंदन नगर स्थित हाउस नंबर 3989 रहा।

राज्यसभा सांसद बनने के लिए किराया पर लिया था मकान

हालांकि, डॉ मनमोहन सिंह के लिए असम से राज्यसभा सदस्य बनना इतना आसान नहीं रहा। 2 BHK का यह अपार्टमेंट, असम के पूर्व मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया का निजी आवास था।

हितेश्वर सैकिया की पत्नी और मनमोहन सिंह की मकान मालकिन हेमोप्रवा सैकिया ने बताया था,” तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह को अपना वित्त मंत्री बनाना चाहते थे। उन्होंने मेरे पति से इस बात पर विचार किया। उन्होंने सुझाव दिया कि उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया जाए। हालांकि, कुछ लोग नहीं चाहते थे कि मनमोहन सिंह असम से राज्यसभा सांसद बने। उन लोगों ने अदालत में चुनौती दी कि डॉ मनमोहन सिंह के पास असम में कोई संपत्ति नहीं है। इस लिहाज से उन्हें असम से राज्यसभा सांसद न बनाया जाए। हालांकि, कोर्ट ने फैसला दिया है कि राज्य से राज्यसभा में मनोनीत होने के लिए किसी व्यक्ति के पास असम में संपत्ति होना जरूरी नहीं है।”

चेक के जरिए किराया चुकाते थे मनमोहन सिंह

हेमोप्रवा सैकिया ने कहा,”इसके बाद हमने अपार्टमेंट किराए पर देने की पेशकश की। इसके बाद 700 रुपये के किराए पर उन्हें मकान दिया गया। वे हमेशा समय पर और चेक के माध्यम से किराया चुकाते थे।” हेमोप्रवा सैकिया ने बताया कि डॉ मनमोहन सिंह की सादगी को याद करते हुए कहा कि वो बहुत ईमानदार व्यक्ति थे। जब भी वो असम आते सिर्फ पारिवारिक बातचीत करते।

जब वो प्रधानमंत्री बने तो उन्हें कई लोगों ने कहा कि वो अपना असम में अपना आवास बदल लें, लेकिन उन्होंने कहा कि इस अपार्टमेंट से उनकी कई यादें जुड़ी है। यह मकान हमेशा अब डॉ मनमोहन सिंह की यादें समेटकर रखेगा।

राष्ट्र के नाम दिया था संबोधन

  • दरअसल, मनमोहन सिंह अर्थव्यवस्था की समस्याओं को सुलझाने के लिए कड़े कदम उठाने के चलते विपक्ष के निशाने पर थे। मनमोहन ने कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था में लोगों का विश्वास खत्म न हो इसलिए उन्होंने सख्त कदम उठाए।
  • तृणमूल कांग्रेस ने उस समय यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा की थी, जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए ये बात रखी थी। तृणमूल कांग्रेस ने विदेशी पूंजी निवेश में 51 प्रतिशत की इजाजत देने और डीजल के दामों में वृद्धि के फैसले का विरोध किया था।
  • राष्ट्र के नाम संबोधन में मनमोहन सिंह ने कहा कि हम वैश्विक अर्थव्यस्था में आई मुश्किलों का सामना करने में काफी हद तक कामयाब रहे। हमें काफी सख्त कदम उठाने ही थे, जिससे हमारे विकास में आई मंदी को खत्म किया जा सके।
  • उन्होंने कहा कि  अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ी तेल की कीमतों के कारण ही डीजल की कीमत में वृद्धि की गई और एलपीजी के दाम बढ़ाए गए।मनमोहन ने इसके बाद जोर देते हुए कहा, ”पैसा पेड़ पर नहीं लगते हैं.. यदि कड़े कदम न उठाए गए होते तो देश का वित्तीय घाटा और सरकारी खर्च काफी बढ़ जाता। निवेशकों का भारत की अर्थव्यवस्था से विश्वास उठ जाता। इससे ब्याज दरें बढ़ती और रोजगार भी प्रभावित होता।
  • अपने सरल स्वभाव और ज्ञान के कारण डॉ. मनमोहन सिंह को राजनीतिक सीमाओं से परे भी सम्मान प्राप्त था। लेकिन राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें ‘साइलेंट पीएम’ का तमगा दे दिया था। इस पर उन्होंने दिसंबर 2018 में जाकर चुप्पी तोड़ी थी और विरोधियों को जवाब दिया था।

    विरोधियों को दिया था जवाब

    डॉ. मनमोहन सिंह ने 2018 में ‘चेंजिंग इंडिया’ नाम से एक किताब लिखी थी। इसके विमोचन के दौरान उन्होंने कहा था, ‘लोग कहते हैं कि मैं साइलेंट प्राइम मिनिस्टर हूं। मुझे लगता है कि ये किताब खुद ही बोलेगी। मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि मैं वह प्रधानमंत्री नहीं हूं, जो प्रेस से बात करने में डरता है।

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