कतर ने क्यों सुनाया फांसी का फरमान?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चाहे कश्मीर का मुद्दा हो या नुपूर शर्मा का मुद्दा, भारत में हिजाब को लेकर आग भड़कानी हो या नागरिकता कानून का विरोध करवाने के लिए पत्थरबाजी करवानी हो। कतर सिर्फ कट्टरता ही फैलाता है। कतर में 8 पूर्व भारतीय नौसैनिकों को फांसी की सजा की खबर ने भारत को मुश्किल में डाल दिया है। विपक्षी दल कांग्रेस ने कतर के इस फैसले के बाद केंद्र सरकार को निशाने पल लिया है। पूर्व नौ सेना अधिकारियों की गिरफ्तारी और मौत की सजा देने के कारण को कतर ने सार्वजनितक नहीं किया है। इसके साथ ही पूर्व सैनिकों के परिवारों को भी आरोपों की जानकारी नहीं दी गई है।
जिनके तहत मुकदमा चलाया गया और मौत की सजा दी गई। अब ये मामला भारत सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक चुनौती बन गया है। कतर ने गैरकानूनी तरीके से भारत के आठ पूर्व नौसैनिकों को मौत की सजा सुना दी है। वैसे ये वही कतर है जिसने कुछ महीने पहले फुटबॉल वर्ल्ड कप कराया। इसी दौरान ज्ञान देने के लिए भारत के भगोड़े जाकिर नाइक को भी बुलाया था। कतर वो देश है जिस पर खाड़ी देश ही कट्टरता को फैलाने का आरोप लगा चुके हैं।
2017 में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और इजिप्ट जैसे देशों ने कतर से अपने राजनीतिक संबंधों को तोड़ लिया था। साउदी अरब ने आरोप लगाया था कि कतर कई आतंकी संगठनों का समर्थन करता है। उस समय इन सभी देशों ने कतर जाने वाली फ्लाइट्स पर रोक लगा दी थी। यहां तक की दुनिया में जहर फैलाने वाली कतर की मीडिया कंपनी अल जजीरा को भी बैन कर दिया गया था। अब भारत की तरफ से भी कुछ ऐसे ही कदम उठाने की जरूरत है। कतर के साथ भी वैसे ही सलूक की दरकार है जैसा कि पाकिस्तान के साथ किया गया और फिर अब कनाडा के साथ किया जा रहा है।
कौन हैं ये 8 अधिकारी
कैप्टन नवतेज सिंह गिल
कैप्टन सौरभ वशिष्ठ
कमांडर पूर्णेंदु तिवारी
कमांडर संजीव गुप्ता
कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा
कमांडर सुगुनाकर पकाला
कमांडर अमित नागपाल
नाविक रागेश
कहां काम करते थे
ये आठों पूर्व नौसेना के अधिकारी कतर की अल दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजी एंड कंसल्टेंसी सर्विस में काम करते थे। ये एक डिफेंस सर्विस प्रोवाइडर कंपनी है। इसका काम सैनिकों को ट्रेनिंग मुहैया कराना है। इस कंपनी का मालिकाना हक ओमान के एक व्यक्ति के पास है। कंपनी के मालिक का नाम खामिस अल अजमी है, जो रॉयल ओमान एयरफोर्स का रिटायर्ड स्कवाड्रन लीडर है। दहरा वेबसाइट पर कुमारन और दोहा में भारतीय दूतावास में कार्यरत राजदूत दीपक मित्तल के प्रमाण पत्र थे, जिसमें दोनों देशों के बीच अच्छे संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए कंपनी के काम की तारीफ की गई थी। बता दें कि गिरफ्तार किए गए अधिकांश लोग कंपनी में चार से छह साल से काम कर रहे थे।
क्या हैं आरोप और गिरफ्तारी कब गुई?
सीएनबीसी वर्ल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, कतर के अधिकारियों ने आरोप लगाया कि ये पूर्व नौसैनिक अधिकारी इजरायल के लिए कतर के गुप्त पनडुब्बी कार्यक्रम की जासूसी कर रहे थे। वहीं कतर के स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय पूर्व नौसैनिक की गिरफ्तारी इजरायल को संवेदनशील और गोपनीय जानकारी लीक करने के शक में की गई थी। सभी पूर्व अधिकारियों को कतर की खुफिया एजेंसी ने हिरासत में लिया था। भारतीय दूतावास को पिछले साल सितंबर के मध्य में पूर्व नौसेना अधिकारियों की गिरफ्तारी के बारे में पता चला।
खड़े होते हैं कई सवाल
शायद इस मामले का सबसे हैरान करने वाला पहलू इन आठ लोगों के ख़िलाफ़ आरोपों के संबंध में जानकारी का अभाव है। कतर में भारत के राजदूत और मिशन के उपप्रमुख ने उनसे जेल में मुलाकात की और अदालत में उनका कानूनी प्रतिनिधित्व था जिससे संकेत मिलता है कि भारत सरकार आरोपों को जानती है। हालाँकि, यह जानकारी दोनों परिवारों और आम जनता को अंधेरे में छोड़कर जनता के साथ साझा नहीं की गई है।
मोदी-जयशंकर के सामने बड़ा चैलेंज
अपनी हाजिरजवाबी और कूटनीति के सहारे पूरी दुनिया में नए भारत की नई पहचान स्थापित करने वाले पीएम मोदी के गो टू मैन एस जयशंकर के लिए खाड़ी देश कतर ने एक ऐसी चुनौती दे दी है, जिसका समाधान निकालना थोड़ा चैलेंजिंग है। कतर शरिया कानून के तहत शासित होता है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में इस मामले को एक संवेदनशील मुद्दा बताया जिससे इसकी प्रकृति को लेकर अटकलें लगने लगीं। इसमें आठ पूर्व सैन्यकर्मियों के शामिल होने, एक संदिग्ध रक्षा फर्म, एक गुप्त गिरफ्तारी और त्वरित न्याय के साथ एक गुप्त मुकदमे में जासूसी के आरोप सामने आए हैं। कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि ये दिग्गज इज़राइल के लिए जासूसी कर रहे थे, लेकिन यह अपुष्ट है। अटकलें इस मामले की वास्तविक प्रकृति को समझने में मदद नहीं करती हैं।
कूटनीतिक चुनौती
सऊदी अरब और यूएई के संग भारत के रिश्ते तो बेहतर हैं लेकिन कतर के साथ भारत के रिश्ते गर्मजोशी वाले नहीं हैं। पीएम मोदी देश को इस मुश्किल घड़ी से निकालने के लिए कौन सा कूटनीतिक रुख अपनाएंगे इस पर सभी की निगाहें होंगी। भारत और कतर के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंध रहे हैं। कतर में भारतीय प्रवासी पर्याप्त संख्या में हैं। द्विपक्षीय व्यापार महत्वपूर्ण है और रक्षा सहयोग 2008 से जारी है। भारतीय युद्धपोतों को कतर में तैनात किया गया है और संयुक्त सैन्य अभ्यास हुए हैं। इस मजबूत रिश्ते के बावजूद इन आठ दिग्गजों का मामला अनसुलझा है।
कतर के पर कतरेगा भारत
कतर को झुकाने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा क्योंकि खुद खाड़ी देश ही कतर से नफरत करते हैं। आपको बता दें कि कतर ने भारत और इजरायल का एक साथ गिरेबान पकड़ने की कोशिश की है। पाकिस्तान को अपना छोटा भाई मानने वाला कतर नहीं चाहता कि भारत और इजरायल नजदीक आए। कतर उसी दिन से छाती पीट रहा है जिस दिन से भारत, अमेरिका, इजरायल, सऊदी अरब और यूएई ने आईमैक कॉरिडोर बनाने की घोषणा की थी। ये कॉरिडोर भारत को यूरोप से जोड़ेगा।
कतर नहीं चाहता कि इस कॉरिडोर की वजह से भारत ग्लोबल पावर बने। कतर ये भी नहीं चाहता कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश इस कॉरिडोर से पैसा कमाए और कतर ये भी नहीं चाहता कि इस कॉरिडोर की वजह से इजरायल और मुस्लिम देशों के बीच की लड़ाई खत्म हो जाए। अगर ऐसा कुछ भी हुआ तो कतर की कट्टरता की दुकान बंद हो जाएगी। इसीलिए कतर हमास का भी समर्थन करता है और पाकिस्तान का भी ताकी इजरायल और भारत में स्थिरता पैदा की जा सके। कतर ने पहले भी भारत को उकसाया है।
अमीर को दोषियों को माफ करने का पावर
जैसा कि रिपोर्टों से संकेत मिलता है, भारत ने पिछले साल कतर के अमीर को यात्रा के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन कतर ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह स्थिति नई दिल्ली के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती है जिसके लिए सद्भावना, राजनीतिक पूंजी और विवेकपूर्ण कूटनीति की आवश्यकता है। कतर का कानून अमीर को आम तौर पर कतर के राष्ट्रीय दिवस 18 दिसंबर को पड़ता है, पर दोषियों को माफ करने की अनुमति देता है। उम्मीद है कि उच्चतम राजनयिक स्तर पर कोई समाधान आ सकता है।
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