मृत्यु के देवता ने क्यों दी बहन को अपने भाई को दीर्घायु करने की शक्ति
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
बहनों को एक वरदान मिला था जिससे वे अपने भाई को दीर्घायु कर सकती हैं. यह वरदान स्वयं मृत्यु के देवता ने अपनी बहन को प्रसन्न होकर दिया था. यम अपनी माता के एक शाप से पीड़ित थे. बहन यमुना ने उस शाप से शांति में उनकी सहायता की थी. भाई दूज की कथा उसी से जुड़ती है.
यमुना ने ऐसा क्या किया था? कैसे बहनें दे सकती हैं भाई को दीर्घायु होने का वरदान. भाई दूज पर यह कथा सबको जाननी चाहिए. बहनों को भाई दूज पर अपने भाइयों को यह कथा जरूर सुनानी चाहिए. भाई दूज की परंपरा अब धीरे-धीरे बहुत संकुचित होती जा रही है. यह लेन-देन पर सिमट रही है जो कि इस महान त्योहार की महिमा कम कर रही है. भाई दूज की यह कथा सभी भाई बहन को हमेशा याद रखनी चाहिए.
कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज या यम द्वितीया के नाम से मनाया जाता है. उत्तर और मध्य भारत में यह पर्व भातृ द्वितीया या भैया दूज के नाम से जाना जाता है. र्व भारत में इसे ‘भाई-कोटा’ और पश्चिम भारत में ‘भाईबीज’ और ‘भाऊबीज’ कहा जाता है. भाई-बहन के आपसी प्रेम का बहुत महान पर्व है भाई दूज. इस दिन विधिवत पूजन से बहने भाई को दीर्घायु कर सकती हैं. ऐसा वरदान स्वयं मृत्यु के देवता यम ने दिया है.
यम द्वितीया की तीन कथाएं प्रचलित हैं. पहली कथा जो शाप पीड़ित यम ने बहन यमुना से प्रसन्न होकर दी थी. भाई दूज या यम द्वितीया की यह कथा पुराणों में आती है:-
भगवान विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा देवी का विवाह भगवान सूर्य से हुआ था. उन दोनों की तीन संतानें थी- वैवस्वत, यम और यमुना. संज्ञा देवी अपने पति सूर्य के ताप को सहन नहीं कर पाती थीं इसलिए उन्होंने अपनी छाया को सूर्यदेव के पास छोड़ा और पिता के घर चली गईं.
पिता को जब यह बात पता चली तो उन्होने पुत्री को वापस जाने को कहा किंतु जब वह लौटकर गईं तो उन्होंने देखा कि छाया सूर्यदेव का अच्छे से ख्याल रख रही हैं. इसलिए वह ध्रुव प्रदेश में जाकर तप करने लगीं.
छाया से सूर्यदेव को तप्ती नदी तथा शनीचर ग्रह दो संतानों का जन्म हुआ. इधर छाया का यम तथा यमुना से सौतेली माता सा व्यवहार होने लगा. एक बार यम को छाया की वास्तविकता का पता चल गया.
विमाता के बर्ताव से खिन्न यम ने छाया को धमकाया कि वह पिता के सामने सारा राज खोल देंगे. क्रोधित छाया ने यम को शाप दे दिया कि तुम क्रूर स्वभाव के हो जाओ और कोई भी तुमसे मिलना भी पसंद न करे न ही कोई तुम्हें अतिथि बनाए.
यमुना को शाप दिया कि तुम नदी बन जाओ. यम ने भी छाया को शाप दे दिया कि आपका सूर्य की किरणों से मेल न हो सकेगा. सूर्यदेव को पता चला तो वह भागे-भागे आए और स्थिति संभाली.
उन्होंने यम को वरदान दिया कि पापात्माओं में तुमसे भय होगा और संत तुमसे पीड़ित न होंगे. खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसाई. यमुना को सूर्यदेव ने आशीष दिया कि तुम गंगा के समान पवित्र होगी और स्वयं नारायण तुमसे विवाह करेंगे.
यम अब यमलोक में बसने लगे. यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का कार्य सम्पादित करते भाई को देखकर यमुनाजी गोलोक चली आईं जो कि कृष्णावतार के समय भी थी. यमुना अपने भाई यमराज से बडा स्नेह करती थी.
वह उनसे बराबर निवेदन करती थीं कि कभी वह उनके घर आकर भोजन स्वीकार करें लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को सदैव टाल जाते थे.
बहुत समय व्यतीत हो जाने पर एक दिन सहसा यम को अपनी बहन की याद आई. उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना की खोज करवाई मगर वह मिल न सकीं. फिर यमराज स्वयं ही गोलोक गए जहां विश्राम घाट पर यमुनाजी से भेंट हुई.
भाई को देखते ही यमुनाजी ने हर्ष में भरकर उनका स्वागत सत्कार किया तथा उन्हें भोजन करवाया. यमराज अपने बहन द्वारा किए इस आदर-सत्कार से बड़े प्रसन्न हुए और यमुना से वरदान मांगने को कहा.
यमुना ने कहा– हे भइया मैं आपसे यह वरदान मांगना चाहती हूँ कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नार यमपुरी न जाएं. वहां के त्रास न भोगें. प्रश्न बड़ा कठिन था. यम यदि ऐसा वर दे देते तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता.
भाई को असमंजस में देखकर यमुना बोलीं– आप चिंता न करें मुझे यह वरदान दें कि जो लोग कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन बहन के यहां भोजन करके इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर स्नान करें वे यमलोक को न जाएं.
यमराज ने बहन यमुना की बात को स्वीकार कर लिया. उन्होंने यमुनाजी को आश्वासन दिया– इस तिथि को जो सज्जन अपनी बहन के घर भोजन करेंगे वे यमपाश में बंधकर यमपुरी जाने के त्रास से मुक्त रहेंगे. तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग प्राप्त होगा.
यमराज ने बहन यमुना को इतना बड़ा वरदान दिया. इसी कारण कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यम द्वितीया के नाम से जाना जाता है. बहन और भाई के बीच प्रेम का यह त्योहार भाई दूज के नाम से मनाया जाता है.
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