सिब्बल की दलील पर क्यों भड़क गए जज- सुप्रीम कोर्ट

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हेमंत सोरेन नहीं कर पाएंगे चुनाव प्रचार

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जमीन घोटाला से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल में बंद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सुप्रीम कोर्ट से आज (22 मई) झटका लगा। कोर्ट ने अंतरिम जमानत देने की उनकी याचिका खारिज कर दी। हेमंत सोरेन की तरफ से पेश हुए वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता कपिल सिब्बल ने याचिका वापस ले ली। इस मामले पर सुनवाई के दौरान अदालत ने कपिल सिब्बल के कामकाज पर भी सवाल उठाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कपिल सिब्बल को लगाई फटकार

कोर्ट ने कपिल सिब्बल से कहा,”अगर कोर्ट ने इस मामले को अधिक विस्तार से देखने लगी तो फिर ये पूर्व मुख्यमंत्री के लिए नुकसानदेह होगा। आपका आचरण काफी कुछ बयां कर रहा है। हमें उम्मीद थी कि आपका मुवक्किल स्पष्टवादिता के साथ आएगा लेकिन आपने महत्वपूर्ण तथ्यों को दबा दिया।”

आपका आचरण बेदाग नहीं है: कोर्ट

जब कपिल सिब्बल ने कोर्ट में सोरेन के बचाव करने की कोशिश की और कहा कि वह हिरासत में हैं और उन्हें अदालतों में दायर की जा रही याचिकाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसपर कोर्ट ने कपिल सिब्बल से कहा,”आपका आचरण बेदाग नहीं है। पूर्व सीएम कोई आम आदमी नहीं हैं। कोर्ट ने आगे मामले की योग्यता पर गौर किए बिना गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका खारिज करने की बात कही। इसके बाद सिब्बल याचिका वापस लेने पर सहमत हो गए, जिसे पीठ ने अनुमति दे दी।

ईडी ने पहले शीर्ष अदालत को बताया था कि 31 जनवरी को सोरेन की गिरफ्तारी को झारखंड उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था और उनकी नियमित जमानत याचिका 13 मई को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दी थी।

31 जनवरी को गिरफ्तार हुए थे सोरेन

बताते चलें कि जमीन घोटाला मामले में ईडी ने हेमंत सोरेन को 31 जनवरी की रात को गिरफ्तार किया था। इसके बाद हाई कोर्ट ने सोरेन की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए चुनाव के मद्देनजर अंतरिम जमानत की मांग की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट से क्या तथ्य छिपाया गया?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप (हेमंत सोरेन) राहत के लिए एक साथ दो अदालतों में पहुंचे. यह उचित नहीं है. एक में आपने जमानत मांगी और दूसरी में अंतरिम जमानत. आप समानांतर उपाय अपनाते रहे. आपने हमें कभी नहीं बताया कि आपने निचली अदालत में जमानत याचिका दाखिल की है. आपने हमसे यह तथ्य छिपाया है. हमें गुमराह किया गया. सोरेन के वकील कपिल सिब्बल ने क्षमा याचना के साथ अपनी चूक स्वीकार की. लेकिन अदालत पर उसका कोई असर नहीं दिखा.

चुनाव प्रचार मौलिक अधिकार नहीं: SC

सुप्रीम कोर्ट में मामले की दूसरे दिन की सुनवाई के दौरान ईडी ने हलफनामे के जरिए झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की अंतरिम जमानत याचिका का विरोध किया. जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच के समक्ष सोरेन ने मांग की थी कि उन्हें भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी जाए. ईडी ने अपनी दलील में कहा कि चुनाव प्रचार करना न तो मौलिक अधिकार है, न संवैधानिक और न ही कानूनी अधिकार.

पहले दिन की सुनवाई में क्या हुआ था?

पहले दिन की सुनवाई के दौरान हेमंत सोरेन के वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि जिस जमीन की बात कही जा रही है उस पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री का कभी कब्जा ही नहीं रहा. ईडी की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी  राजू ने कहा, ‘केजरीवाल को मिली राहत का हवाला देकर सोरेन जमानत की मांग नहीं कर सकते. दोनों केस में तथ्य अलग अलग हैं. सोरेन की गिरफ्तारी चुनाव से पहले हो गई थी. फिर इस केस में तो उनके खिलाफ दायर चार्जशीट पर कोर्ट संज्ञान ले चुका है. निचली अदालत ने पहली नजर में उनके खिलाफ केस को जायज माना था. इस आदेश को उन्होंने कहीं चुनौती नहीं दी. स्पेशल कोर्ट से सोरेन की जमानत अर्जी भी खारिज हो चुकी है.’

कपिल सिब्बल ने स्वीकारी अपनी गलती

दूसरे दिन की सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए कहा, ‘यह मेरी व्यक्तिगत गलती है, मेरे मुवक्किल की नहीं. मुवक्किल जेल में है और हम वकील हैं और उसकी पैरवी कर रहे हैं. हमारा इरादा कोर्ट को गुमराह करना नहीं था. हमने ऐसा कभी नहीं किया है.’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम मेरिट पर गौर किए बिना आपकी याचिका को खारिज कर सकते हैं. लेकिन अगर आप बहस करेंगे तो हमें मेरिट पर गौर करना होगा. यह आपके लिए नुकसानदेह हो सकता है. इसे अपने ऊपर मत लीजिए, आप इतने वरिष्ठ वकील हैं.

कपिल सिब्बल ने कहा कि जब हमने अंतरिम रिहाई के लिए आवेदन दायर किया तो यह इस तथ्य पर आधारित था कि हम पीएमएलए की धारा 19 के तहत अपने मुवक्किल की गिरफ्तारी से संतुष्ट नहीं थे. जमानत का उपाय रिहाई के उपाय से भिन्न है. मैं अपनी धारणा में गलत हो सकता हूं, लेकिन यह दलील अदालत को गुमराह करने के लिए नहीं थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें इसकी जानकारी क्यों नहीं दी गई? जब हमें पता होता है कि किसी अन्य मंच पर पहले ही संपर्क किया जा चुका है तो हम रिट याचिकाओं पर विचार नहीं करते हैं.

जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कपिल सिब्बल से पूछा- हमें पहले कुछ स्पष्टीकरण चाहिए. आपको संज्ञान लेने के आदेश के बारे में पहली बार कब पता चला? सिब्बल ने कहा- 4 अप्रैल को. जस्टिस दत्ता ने कहा- 18 अप्रैल को हेमंत सोरेन का मामला हमारे पास आया. हमने 29 अप्रैल को नोटिस जारी किया. आपने हाईकोर्ट द्वारा फैसला न सुनाए जाने पर असंतोष जताया. मैंने पूछा कि आप किस पर राहत की मांग कर रहे हैं. आपने कहा था जमानत पर. सिब्बल ने कहा कि उस समय मुझे कहना चाहिए था कि रिहाई पर.

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