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कलम वाले हाथों ने क्यों उठाया हथियार? - श्रीनारद मीडिया

कलम वाले हाथों ने क्यों उठाया हथियार?

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रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती पर नमन.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अपनी सोच से अंग्रेजी हुकूमत को हिला देने वाले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की आज जयंती है। भारत की आजादी में उनका काफ़ी योगदान रहा है और क्रांतिकारियों के बीच अहम भूमिका निभाते हुए वह एक प्रमुख चहरा बनकर उभरे थे। वह एक अव्वल लेखक, साहित्यकार, इतिहासकार और बहुभाषी अनुवादक थे। इन सब में कुशल होने के बावजूद इन्होंने युवाओं को क्रांति के प्रेरित करने पर ज्यादा ध्यान दिया और इसमें सफल भी हुए।

राम प्रसाद बिस्मिल कब बने स्वतंत्रता सेनानी
राम प्रसाद बिस्मिल अपनी प्रभावशाली देशभक्ति कविताएं हिन्दी और उर्दू भाषा में लिखते थे। वह अपनी कविताएं ‘बिस्मिल’, ‘राम’ और ‘अज्ञात’ के नाम से लिखा करते थे। इनके लिखे हुए गीत ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ और ‘सरफरोशी की तमन्ना’ क्रांतिकारियों के लिए आजादी का गाना बन गया। इनका जन्म शाहजहांपुर जिले में हुआ था और बचपन से ही आर्य समाज से जुडे हुए थे। आजादी की आग और क्रांति की ज्वाला राम प्रसाद बिस्मिल के अंदर तब जगी जब उन्होंने भाई परमानंद (एक देशभक्त और आर्य समाज के सदस्य) की मृत्यु की खबर सुनी। वह उस समय सिर्फ 18 साल के थे और गुस्से में उन्होंने एक कविता लिखी ‘मेरा जन्म’।

क्या था मैनपुरी षड्यंत्र?
उनकी आजादी के लिए लड़ाई और स्वतंत्रता सेनानी बनने का सफर सबसे पहले मैनपुरी षड्यंत्र के दौरान शुरू हुआ। उन्होंने युवाओं को इस लडाई के लिए इकट्ठा किया। क्या आपको पता है कि बिस्मिल ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने अपनी पुस्तकों की बिक्री से आए पैसों को खुद के खर्चों के इस्तेमाल न करके उसे क्रांतिकारी कार्यों में लगा दिया।

क्यों थे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ?

कांग्रस पार्टी के विचारों के खिलाफ खड़े रहकर उन्होंने हिंदुस्तान असोसिएशन का गठन किया जिसमें स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे नेता शामिल हुए। इनके विचार देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से बिल्कुल विपरीत थे। स्वतंत्रता सेनानी बिस्मिल का कहना था कि आजादी किसी भी हालत में अहिंसा के मार्ग पर चलकर प्राप्त नहीं की जा सकती है।

काकोरी कांड और फांसी की सजा
काकोरी कांड तो आपको याद होगा। लखनऊ के पास मौजूद काकोरी की ट्रेन को राम प्रसाद और उनके तीन साथियों ने लूटा और ब्रिटिश साम्राज्य के गार्ड्स को चकमा देकर ट्रेजरी में मौजूद पैसों को भी लूटा लिया। इस घटना के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने राम प्रसाद बिस्मिल और उनके 3 साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।

लखनऊ सेंट्रल जेल में लिखा था- ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’
लखनऊ सेंट्रल जेल में उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी जिसे साहित्य के इतिहास में एक स्थान दिया गया है। वहीं, जेल में ही उन्होंने मशहूर गीत ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ लिखा था। तीस साल के पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी देने से पहले उनके आखिरी शब्द जय हिंद थे। 19 दिस्मबंर, 1927 को उन्हें फांसी दी गई और रपती नदी के पास उनका अंतिम संस्कार किया गया। बाद में वह जगह राज घाट के नाम से जाना जाने लगा।

अपनी बहादुरी और सूझबूझ से अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ाने वाले महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म आज ही के दिन साल 1897 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। वह उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक और साहित्कार भी थे। उनकी प्रसिद्ध रचना सरफरोशी की तमन्ना…गाते हुए न जाने कितने क्रांतिकारी देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए। अंग्रेजों ने ऐतिहासिक काकोरी कांड में मुकदमे के नाटके के बाद 19 दिसंबर 1927 को उन्हें गोरखपुर की जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था।

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को उनकी 124वीं जयंती पर पूरा देश नमन कर रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत अन्य नेताओं इस अवसर पर उऩ्हें श्रंद्धाजलि दी। उन्होंने ट्वीट करके कहा कि मां भारती के अमर सपूत, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की क्रांतिकारी धारा के प्रमुख सेनानी अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जी को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन। आपका बलिदानी जीवन हमें राष्ट्र सेवा के लिए युगों-युगों तक प्रेरित करता रहेगा।

अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन..! जय हिंद…..वंदे मातरम…!

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