एक बार फिर क्यों याद आई अरुणा शानबाग?

एक बार फिर क्यों याद आई अरुणा शानबाग?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

दुष्कर्म मामले पर CJI ने कोर्ट में क्यों किया याद

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बंगाल में डॉक्टर से दु्ष्कर्म के बाद हत्या मामले को लेकर पूरे देश में आक्रोश है। इस मामले को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सालों से महिला डॉक्टरों पर क्रूर हमलों को उजागर करने के लिए 1973 की अरुणा शानबाग घटना का संदर्भ दिया।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, आज के युग में महिला डॉक्टरों को अधिक निशाना बनाया जाता है, उन्होंने आगे कहा, जैसे-जैसे महिलाएं कार्यबल में शामिल होती हैं, तभी एक और रेप की घटना सामने आ जाती है। उन्होंने आगे कहा, अरुणा शानबाग के साथ अस्पतालों के अंदर ही दरिंदगी हुई गई थी, जो एक परीक्षण या इच्छामृत्यु का मामला बन गया।

रात में बेहरमी से हुआ था हमला

अरुणा केईएम अस्पताल में 25 साल की नर्स थीं, जिस चिकित्सा संस्थान में वह 1967 में सर्जरी विभाग में शामिल हुई थीं। उनकी सगाई उसी अस्पताल में डॉक्टर संदीप सरदेसाई से हुई थी और 1974 की शुरुआत में उनकी शादी होने वाली थी। हालांकि, 27 नवंबर, 1973 की रात को, एक वार्ड अटेंडेंट सोहनलाल भरत वाल्मिकी ने उन पर बेरहमी से हमला किया था। उसके साथ दुष्कर्म किया और फिर कुत्ते की जंजीर से उसका गला घोंट दिया। हमले ने अरुणा के मस्तिष्क को गंभीर क्षति पहुंचाई, जिससे वह लगातार अपंग की अवस्था (पीवीएस) में चली गई, इसके बाद वह करीब 42 सालों तक अस्पताल के वार्ड में एक बिस्तर पर लाश बनकर पड़ी रही।

सुप्रीम कोर्ट से की इच्छामृत्यु की मांग

अरुणा उस वक्त राष्ट्रीय बहस का केंद्र बन गईं जब पत्रकार पिंकी विरानी ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इच्छामृत्यु की इजाजत मांगी। पत्रकार पिंकी विरानी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर अरुणा के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति मांगी थी। पिंकी ने अरुणा की इस दर्दनाक कहानी को एक किताब का शक्ल दिया है।

अरुणा पर लिखी गई थी किताब

उन्होंने अरुणा के बारे में पिंकी विरानी की किताब, जिसका शीर्षक ‘अरुणाज़ स्टोरी’ है में जिक्र किया। सुप्रीम कोर्ट ने 7 मार्च, 2011 को दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले में, सक्रिय इच्छामृत्यु की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अरुणा ब्रेन डेड नहीं थी और वह कुछ चीजों पर रिस्पॉन्स करती थी, जैसा कि अस्पताल के कर्मचारियों ने देखा था।

कौन थीं अरुणा शानबाग?
– मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) हॉस्पिटल में दवाई का कुत्तों पर एक्सपेरिमेंट करने का डिपार्टमेंट था। इसमें नर्स कुत्तों को दवाई देती थीं। उन्हीं में एक थीं अरुणा शानबाग। 27 नवंबर 1973 को अरुणा ने ड्यूटी पूरी की और घर जाने से पहले कपड़े बदलने के लिए बेसमेंट में गईं। वार्ड ब्वॉय सोहनलाल पहले से वहां छिपा बैठा था। उसने अरुणा के गले में कुत्ते बांधने वाली चेन लपेटकर दबाने लगा। छूटने के लिए अरुणा ने खूब ताकत लगाई। पर गले की नसें दबने से बेहोश हो गईं। अरुणा कोमा में चली गईं और कभी ठीक नहीं हो सकीं।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों ठुकरा दी थी पिटीशन?
– 8 मार्च 2011 को अरुणा को दया मृत्यु देने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी। वह पूरी तरह कोमा में न होते हुए दवाई, भोजन ले रही थीं। डॉक्टरों की रिपोर्ट के आधार पर अरुणा को इच्छा मृत्यु देने की इजाजत नहीं मिली।
– सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पिटीशनर पिंकी वीरानी का इस मामले से कुछ लेना-देना नहीं है, क्‍योंकि अरुणा की देखरेख केईएम हॉस्पिटल कर रहा है।
– बेंच ने कहा था कि अरुणा शानबाग के माता-पिता नहीं हैं। उनके रिश्तेदारों काे उनमें कभी दिलचस्पी नहीं रही। लेकिन केईएम हॉस्पिटल ने कई सालों तक दिन-रात अरुणा की बेहतरीन सेवा की है। लिहाजा, अरुणा के बारे में फैसले करने का हक केईएम हॉस्पिटल को है।

– बेंच ने यह भी कहा था कि अगर हम किसी भी मरीज से लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा लेने का हक उसके रिश्तेदारों या दोस्तों को दे देंगे तो इस देश में हमेशा यह जोखिम रहेगा कि इस हक का गलत इस्तेमाल हो जाए। मरीज की प्रॉपर्टी हथियाने के मकसद से लोग ऐसा कर सकते हैं।

भारत में कितने मामले आए?
– 1994 में पी. रथिनम के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी व्यक्ति को ‘मरने का अधिकार’ भी होता है। हालांकि, 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पुराना फैसला पलट दिया। कहा- मरने का अधिकार देना तो संविधान के अनुच्छेद 21 यानी जीने के अधिकार का उल्लंघन है। 2000 में केरल हाईकोर्ट ने कहा कि इच्छामृत्यु की इजाजत देना आत्महत्या को स्वीकार करने के बराबर होगा।

Leave a Reply

error: Content is protected !!