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जलवायु परिवर्तन से महासागरों का रंग परिवर्तन क्यों होता है? - श्रीनारद मीडिया

जलवायु परिवर्तन से महासागरों का रंग परिवर्तन क्यों होता है?

जलवायु परिवर्तन से महासागरों का रंग परिवर्तन क्यों होता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक नए अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व के 56% महासागरों का रंग परिवर्तित हुआ है।

  • उष्णकटिबंधीय जल, विशेष रूप से दक्षिणी हिंद महासागर, हरे रंग का हो गया है, जो फाइटोप्लांकटन( phytoplankton) और समुद्री जीवन में वृद्धि का संकेत देता है।
  • अध्ययन के मुख्य बिंदु:
  • दीर्घकालिक रुझान और डेटा विश्लेषण:
    • एक्वा सैटेलाइट डेटा (Aqua Satellite Data): 
      • शोधकर्त्ताओं ने दो दशकों (2002-2022) तक महासागरों के रंग की निगरानी करने वाले एक्वा उपग्रह (नासा के पृथ्वी विज्ञान उपग्रह मिशन) पर मॉडरेट रेज़ोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर (MODIS) के डेटा का विश्लेषण किया।
      • MODIS सात दृश्य तरंग दैर्ध्य (विभिन्न तरंग दैर्ध्य का प्रकाश रंग की विभिन्न धारणाएँ उत्पन्न करता है) में मापन करता है।
    • सूक्ष्म रंग परिवर्तन: 
      • मानव आँख, महासागरों में सूक्ष्म रंग परिवर्तन का पता नहीं लगा सकती हैं, जिसमें नीले से लेकर हरे और यहाँ तक कि लाल रंग की तरंग दैर्ध्य का मिश्रण भी हो सकता है।
    • हरित जल और फाइटोप्लांकटन:
      • अध्ययन में पाया गया है कि हरे रंग का जल फाइटोप्लांकटन और आवश्यक सूक्ष्म पादप सदृश जीवों की उपस्थिति का संकेत देता है।
        • फाइटोप्लांकटन, स्थल पर पौधों के खाद्य जाल की भांति ही समुद्री खाद्य जाल के आधार के रूप में कार्य करता है और समुद्री जीवन का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • महासागर का रंग महासागरों द्वारा अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को प्रभावित करता है, वर्तमान अनुमान से पता चलता है कि महासागर वैश्विक CO2 उत्सर्जन का 25% अवशोषित करते हैं।
    • जलवायु परिवर्तन की भूमिका:
      • दो दशकों में वार्षिक स्तर पर समुद्र के रंग में भिन्नताओं की तुलना करके पाया गया कि जलवायु परिवर्तन ही रंगों में परिवर्तनों का प्राथमिक कारक है।
      • एक मॉडल का उपयोग करते हुए शोधकर्त्ताओं ने दो परिदृश्यों का अनुकरण, एक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को ध्यान में रखते हुए और दूसरी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बिना किया
      • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन परिदृश्य के अनुसार, अनुमान है कि विश्व के लगभग 50% सतही महासागरों के रंग में परिवर्तन हो सकता है, यह उपग्रह डेटा के अनुरूप है जो हरे अथवा नीले जल में 56% बदलाव का संकेत देता है।
    • समुद्री जीवन और संरक्षण पर प्रभाव:
      • जीवों पर प्रभाव: 
        • हरे रंग का प्रमुख कारक क्लोरोफिल है, यह एक रंगद्रव्य है जो पादप प्लवक/फाइटोप्लांकटन को भोजन बनाने में मदद करता है। प्लवक खाने वाले जीव जनसंख्या में बदलाव के कारण होने वाले रंग परिवर्तन से प्रभावित होंगे।
      • कार्बन पृथक्करण:
        • विभिन्न प्रकार के प्लवक में कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता अलग-अलग होती है, यह संभावित रूप से समुद्र की कार्बन ग्रहण करने की क्षमता को प्रभावित करता है।
    • क्षेत्रीय विविधता और आगे के अध्ययन की आवश्यकता:
      • दक्षिणी हिंद महासागर के रंग में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई देते हैं, जबकि भारत के निकट का जल संभवतः प्राकृतिक परिवर्तनशीलता के कारण समान प्रवृत्ति का पालन नहीं करता है।
  • अनुशंसाएँ:
    • शोधकर्त्ता व्यक्तियों एवं नीति निर्माताओं को इन परिवर्तनों के महत्त्व को पहचानने और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा के लिये उचित कार्रवाई करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।
    • क्षेत्रीय विविधताओं एवं समुद्र के रंग पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की पूरी सीमा को समझने के लिये निरंतर निगरानी तथा आगे का शोध महत्त्वपूर्ण है।

भारत की जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण पहल:

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