भारत को अपनी ताकत और क्यों बढ़ाने की जरूरत है ?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
एलएसी पर चीन की बढ़ती आक्रामकता के पीछे उसका यह डर है कि भारत की आर्थिक और सैन्य प्रगति एक जी-2 विश्व-व्यवस्था कायम करने की चीन की महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेर सकती है। जी-2 यानी ऐसी दुनिया, जिसमें अमेरिका और चीन ही दो ध्रुव हों। भारत इस स्थिति को चुनौती देकर इसे जी-3 त्रिकोण का रूप दे सकता है। कहना होगा, चीन का डर बेबुनियाद नहीं है।
किसी भी देश की भू-राजनीतिक ताकत का निर्धारण उसकी हार्ड पॉवर और सॉफ्ट पॉवर के मेल से होता है। ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की इकोनॉमी छोटी और सैन्य-ताकत कम है, लेकिन सॉफ्ट पॉवर बड़ी है। वहीं जापान दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी होने के बावजूद बड़ी भू-राजनीतिक ताकत नहीं है।
ब्रिटेन की इकोनॉमी अच्छी स्थिति में नहीं है और उसकी सैन्य-क्षमता भी अधिक नहीं है, इसके बावजूद लम्बे समय से वह दुनिया पर दबदबा कायम रखे है। इसका बड़ा कारण उसकी सॉफ्ट पॉवर है यानी अंग्रेजी, फिल्म, टीवी, साहित्य, संगीत, खेल, शैक्षणिक संस्थान। भारत में आज भी वांछित आत्मविश्वास नहीं आया है और वह विदेशियों से मान्यता की तलाश करता है।
इससे उसकी हार्ड पॉवर को बल नहीं मिलता, जबकि वह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी और चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है। न ही उसकी सॉफ्ट पॉवर को दुनिया में यथेष्ट स्थान मिल पाता है, जो सांस्कृतिक बहुलता के कारण बहुत समृद्ध है। जून 2022 में भारत ब्रिटेन को अपदस्थ करके दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बना था।
वैश्विक और भारतीय वित्तीय संस्थानों के बीच इस पर सर्वसम्मति बन चुकी है कि भारत की जीडीपी अगले साल 6 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी और उसके बाद वह 7 प्रतिशत हो जाएगी। रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामों और चीन में कोविड की स्थिति पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। 31 मार्च 2023 को भारत की नॉमिनल जीडीपी अनुमानित रूप से 3.60 ट्रिलियन डॉलर होने की सम्भावना विश्व बैंक के ताजा पूर्वानुमानों की रोशनी में जताई गई है।
इसके बाद भारत जर्मनी और जापान के निकट पहुंच जाएगा। वर्तमान में जर्मनी दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 31 मार्च 2023 को उसके 4.3 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने का पूर्वानुमान है। जापान तीसरे क्रम पर है और वह 5.1 ट्रिलियन के आंकड़े को पार कर सकता है। जर्मनी और जापान की सालाना विकास दर क्रमश: 1.4 प्रतिशत और 0.8 प्रतिशत रहने के अनुमान हैं।
मौजूदा विकास दर के मुताबिक भारत 2025-26 तक जर्मनी और 2027-28 तक जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। यह इतनी बड़ी उपलब्धि है कि उसे कम आंकना भूल होगी। 2010 तक भारत दुनिया की नौवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और इटली जैसे देश उससे आगे थे। 2014 में भारत एक पायदान फिसलकर 10वें क्रम पर आ गया।
तब हमारी जीडीपी 2.04 ट्रिलियन डॉलर थी। इसके बाद के दस वर्षों में भारत की जीडीपी बढ़कर लगभग दोगुनी हो गई है, जबकि इसी दौरान उसने कोविड और कमजोर रुपए की मार भी झेली। इसके बावजूद भारत अपने समक्ष मौजूद भू-रणनीतिक चुनौतियों के चलते दुनिया में प्रभावशाली स्थिति में नहीं आ पाया है। चीन-पाकिस्तान गठजोड़ उसके उदय में बाधा डालने में सक्षम है।
चीन के थिंक टैंक ऐसे फोरकास्टिंग-टूल्स का इस्तेमाल करते हैं, जिनकी मदद से विभिन्न देशों की आगामी अनेक दशकों की आर्थिक प्रगति का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। डाटा के मुताबिक आने वाले 20 सालों में भारत और चीन की जीडीपी का अंतर धीरे-धीरे कम होता जाएगा। 2030 के दशक में अमेरिका और भारत की सम्मिलित अर्थव्यवस्थाएं चीन से बहुत बड़ी हो जाएंगी और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में उनका सैन्य-गठजोड़ भी कम ताकतवर नहीं रहने वाला है।
भारत की बढ़त से चीन सशंकित हो जाता है। शी जिनपिंग भारत को ऐसी उभरती हुई ताकत के रूप में देखते हैं, जो क्षमता से आगे बढ़ चुका है। एलएसी पर चीन की आक्रामकता के मूल में यही है। लेकिन चीन की बुढ़ाती आबादी, अंदरूनी असहमतियों और गिरती इकोनॉमी के कारण जिनपिंग की महत्वाकांक्षाएं नाकाम हो सकती हैं। भारत के सामने तो ऐसे में एक ही लक्ष्य होना चाहिए- सेनाओं का आधुनिकीकरण करते हुए अपनी सॉफ्ट पॉवर को अगले कुछ सालों में पूरी दुनिया में फैला देना।
मौजूदा विकास दर के मुताबिक भारत 2025-26 तक जर्मनी और 2027-28 तक जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। इस उपलब्धि को कम आंकना भूल होगी।
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