जातिगत जनगणना से मोदी सरकार बचती क्यों दिख रही है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मंडल कमीशन के बाद की राजनीति में बड़ी संख्या में बहुत ही मजबूत क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में। RJD व JDU ने बिहार में और सपा ने उत्तर प्रदेश में OBC के मसले को उठाया और OBC वोटरों का जबर्दस्त समर्थन पाने में सफल रहे। हकीकत में OBC वोटर ही बड़ी संख्या में क्षेत्रीय दलों के प्रमुख समर्थक बन गए।
पिछले कुछ चुनावों से OBC वोटरों में बीजेपी की लोकप्रियता बढ़ी है। बीजेपी उत्तर भारत के अनेक राज्यों में प्रभावी OBC की तुलना में निचले OBC को लुभाने में अधिक सफल रही। इसलिए बीजेपी ने भले ही OBC पर अपनी पहुंच बनाकर चुनावी लाभ ले लिया हो, लेकिन इनके बीच उसका समर्थन उतना मजबूत नहीं है, जितना कि उच्च वर्ग और उच्च जातियों के बीच है।
सीएसडीएस के संजय कुमार के मुताबिक बीजेपी का जातिगत गणना से कतराने का मुख्य कारण यह डर है कि अगर जातिगत गणना हो जाती है, तो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को केंद्र सरकार की नौकरियां और शिक्षण संस्थाओं में OBC कोटे में बदलाव के लिए सरकार पर दबाव बनाने का मुद्दा मिल जाएगा। बहुत हद तक संभव है कि OBC की संख्या उन्हें केंद्र की नौकरियों में मिल रहे मौजूदा आरक्षण से कहीं अधिक हो सकती है।
यह मंडल-2 जैसी स्थिति उत्पन्न कर सकती है और बीजेपी को चुनौती देने का एजेंडा तलाश रहीं क्षेत्रीय पार्टियों को नया जीवन भी। यह डर भी है कि OBC की संख्या भानुमती का पिटारा खोल सकती है, जिसे संभालना मुश्किल हो जाएगा।माना जाता है कि बीजेपी को इस तरह की जनगणना से डर यह है कि इससे अगड़ी जातियों के उसके वोटर नाराज हो सकते हैं, इसके अलावा बीजेपी का परंपरागत हिन्दू वोट बैंक इससे बिखर सकता है।मौजूदा सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए OBC वोट को नाराज होने से बचाना बड़ी चुनौती है। कई सर्वे इशारा करते हैं कि बीजेपी ने ओबीसी जातियों में तेजी से पैठ बढ़ाई है।
2009 के आम चुनाव में बीजेपी को 22% OBC वोट मिले थे, जो 10 साल में दोगुने हो गए। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 44% वोट मिले। वहीं क्षेत्रीय पार्टियों का हिस्सा 2009 के 42% वोटों से घटकर 27% रह गया।
जाति के अधार पर जनगणना की बात संवेदनशील मामला है। हमारे देश में अभी तक का इतिहास रहा है कि अगर इस तरह की जनगणना होती है तो उसी आधार पर आरक्षण की और दूसरी चीजों की मांग होने लगेगी। ये संख्या के आधार पर होगा तो प्रेशर पॉलिटिक्स काम करने लगेगी।
कांग्रेस और बीजेपी जैसे मुख्य राजनीति दलों की एक दुविधा है। वो पिछड़े, अल्पसंख्यकों और वंचित समाज के वोट तो चाहते हैं, लेकिन उसके साथ-साथ वो फॉरवर्ड क्लास का समर्थन भी नहीं खोना चाहते हैं। इसी वजह से बीजेपी भी इससे बचना चाहती है।
जातिगत जनगणना से विपक्ष क्या हासिल करना चाहता है?
OBC का आखिरी ऑथेंटिक डेटा 1931 की जनगणना का है। इसके बाद 2011 की सामाजिक आर्थिक जनगणना के डेटा सार्वजनिक नहीं किए गए। ऐसे में जाति जनगणना की मांग से सियासी बवाल मच सकता है। 100 साल पुराने आंकड़ों के अनुसार देश में 52% OBC आबादी है। किसी भी राज्य में उनकी आबादी 45% से कम नहीं है। कुछ राज्यों में यह 60% से भी अधिक है।
जातीय जनगणना होती है तो असली आंकड़ा सामने आएगा। इसके आधार पर OBC की केंद्रीय सूची को भी संशोधित करना होगा। साथ ही पिछड़ी जातियों को मिलने वाले 27% आरक्षण को उनकी आबादी के हिसाब से बढ़ाने की मांग भी तेज होगी।विपक्ष सामाजिक न्याय के नाम पर साल 2024 के चुनावों में जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाकर बीजेपी पर दबाव बनाने और पिछड़े वोट को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहा है।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई कहते हैं कि दिलचस्प बात ये है कि पुराने समय से ये माना जाता था कि कांग्रेस जाति को सम्मान के भाव से नहीं देखती है। कांग्रेस को लगता था कि जाति से समाज बिखरता है जुड़ता नहीं है। 2008 से 2010 के बीच जब महिला आरक्षण का बिल आया था तो कांग्रेस इसके समर्थन में थी, लेकिन इसमें OBC को अलग से आरक्षण देने के समर्थन में नहीं थी।
चूंकि अब सिर्फ कांग्रेस की बात नहीं रह गई है, अब INDIA अलायंस हो गया है और इस अलायंस में क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा हैं और ये पार्टियां OBC के आरक्षण को लेकर बहुत मुखर हैं। यानी कांग्रेस अब राजद, सपा, जेडीयू और डीएमके के स्वर में बोलने लगी है। यह एक बहुत बड़ा शिफ्ट है। मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस के अंदर इसे लेकर बहुत डिस्कशन हुआ है।
महिला आरक्षण में बहस के दौरान सोनिया गांधी और राहुल गांधी जो भाषा बोल रहे हैं वो सरकार के खिलाफ उकसाने वाली भाषा है। इसके राजनीतिक मायने हैं। महिला आरक्षण का गुणा भाग 2024 के लोकसभा चुनाव में नजर आएगा। कांग्रेस और विपक्ष का आकलन है कि पिछड़े वर्ग का 4 से 5% मतदाता भी शिफ्ट हो जाता है तो बड़ा उलटफेर हो सकता है।
महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन लगाई थी। इसमें केंद्र सरकार को बैकवर्ड क्लास ऑफ सिटीजंस यानी BCC यानी पिछड़े वर्गों का डेटा कलेक्ट करने के निर्देश देने की मांग की गई थी, ताकि 2021 की जनगणना में ही ग्रामीण भारत में पिछड़े वर्ग के नागरिकों की सही-सही स्थिति सामने आ सके।
इस याचिका में केंद्र सरकार से अदर बैकवर्ड क्लासेस यानी OBCs पर SECC-2011 के दौरान जुटाए गए डेटा को सार्वजनिक करने की मांग भी की गई है। केंद्र सरकार ने 23 सितंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह अब सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना नहीं कराएगी। उद्धव सरकार की पिटीशन पर केंद्र सरकार ने अपने एफिडेविट में 3 प्रमुख बातें कही थीं…
1. यह एक पॉलिसी डिसीजन है, इसलिए अदालतों को दखल नहीं देना चाहिए।
2. जाति आधारित जनगणना कराना व्यावहारिक नहीं है।
3. प्रशासनिक नजरिए से भी ऐसा करना बेहद मुश्किल है।
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