अन्नदाता का बेटा किसान क्यों नहीं बनना चाहता?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अन्नदाता का बेटा किसान नहीं बनना चाहता। ये आज की हकीकत है। ना इज्जत है, ना कमाई, उसे जाना है बड़े शहर में बड़ा आदमी बनने के लिए। अपने घर-परिवार-हरियाली-खुशहाली छोड़कर, एक दस बाय दस के कमरे में वो रहने के लिए तैयार है। क्योंकि तकदीर का इंद्रधनुष गांव के मीलों पार है।
ऐसे माहौल में सोचिए, दो पढ़े-लिखे नौजवान एक अजीब-सा पथ चुनते हैं। देश के सबसे वरिष्ठ एमबीए इंस्टीट्यूट से पढ़ने के बाद उन्हें एमएनसी में उम्दा नौकरी मिल सकती थी। लेकिन आईआईएम अहमदाबाद के इन स्नातकों ने अपनी डिग्री खत्म करने के बाद एक एग्रीबिजनेस शुरू किया। ये आइडिया उन्हें मिला प्रो. अनिल गुप्ता के कोर्स के दौरान, एक अनोखा कोर्स जिसका नाम है ‘शोध यात्रा’।
एमबीए की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी कॉर्पोरेट दुनिया में विलीन रहते हैं। असली भारत, ग्रामीण भारत की झलक उन्हें हफ्ते भर की शोध यात्रा में मिलती है। जो एक यादगार अहसास के अलावा मन में कई सवाल भी पैदा करती है।
दिन के पहले हिस्से में एक गांव से दूसरे तक पदयात्रा होती है। फिर थोड़ा आराम, गांववालों से बातचीत, उनकी समस्याओं को समझना। स्कूल के कंपाउंड में रात बिताने के बाद अगली सुबह फिर यात्रा शुरू। ऐसे ही एक साल शोध यात्रा पहुंची सिक्किम। और 2012 की उस यात्रा में शामिल थीं सिद्धि करनानी और अनुराग अग्रवाल।
सिक्किम हमारा एक मात्र ऐसा प्रदेश है जहां 100 प्रतिशत खेती प्राकृतिक खाद से होती है। जिसे ऑर्गेनिक फार्मिंग कहा जाता है। ऑर्गेनिक सब्जी-फल बड़े शहरों में ज्यादा दाम पर बिकते हैं। लेकिन इसके बावजूद उस वक्त सिक्किम के किसानों को कोई फायदा नहीं हो रहा था। इस गुत्थी को सुलझाने के लिए सिद्धि और अनुराग ने प्लेसमेंट नकारा और मैदान में कूद पड़े।
चूंकि सिक्किम बड़ी इलायची के लिए प्रसिद्ध है, उन्होंने इसका बिजनेस शुरू करने की ठानी। मगर उस साल इलायची की फसल पूरी तरह नष्ट हो गई। फिर अदरक की तरफ उनका ध्यान गया। किसी तरह मदर डेयरी को पटाया कि दिल्ली में आप सिक्किम की अदरक बेचो। मगर कुछ ही दिन में शिकायत आई कि आपका माल तो बिकता ही नहीं।
बात ये है कि अदरक में काफी मिट्टी जमी होती है। उसे उतारने के लिए साधारणतया विक्रेता एसिड से धोकर चमका देते हैं। सिक्किम वाली अदरक एकदम शुद्ध थी, सिर्फ पानी से धुली हुई। इसलिए देखने में इतनी खास नहीं। तो फिर क्या किया जाए? क्योंकि हमें तो रासायनिक धुलाई मंजूर नहीं।
इस मोड़ पर सिद्धि ने मदर डेयरी के उच्च अधिकारी से एक विनती की। एक कप चाय आम अदरक की बनी हुई और एक कप मेरी अदरक की बनी हुई। आप दोनों पीकर देखो। जब मैनेजर साहब ने उनकी चाय पी तो बोले, ‘मुझे घर की याद आ गई।’ क्योंकि वो खुद पहाड़ों में पले-बढ़े थे, वहां की ताजी हवा-पानी का अहसास उनके जेहन में था।
खैर उसके बाद सिद्धि और अनुराग की कंपनी ‘पर्वत फूड्स’ कहां से कहां पहुंच गई है। आज उनकी अदरक यूरोप के नामी बाजारों में बिकती है, जहां उत्तम क्वालिटी की खास डिमांड है। आम तौर पर अदरक धूप में सुखाई जाती है, मगर इस कंपनी ने एक नई मशीन ईजाद की, जिसमें प्रोसेस होकर बेहतरीन सोंठ तैयार होती है।
सरकार की मदद से उन्होंने ये मशीन किसानों तक पहुंचाई हैं, ताकि वे अपनी अदरक की उपज खुद प्रोसेस कर सकते हैं। फिर एक फाइनल क्वालिटी चेक और पैकेजिंग के लिए माल हेडऑफिस में जाता है। अब किसान सिर्फ किसान नहीं, अपनी खुद की फैक्ट्री भी चला रहे हैं। उन्हें उसी काम के पैसे भी ज्यादा मिल रहे हैं और आत्मसम्मान भी।
2016 में जब मोदी जी सिक्किम के टूर पर थे, उनकी मुलाकात सिद्धि और अनुराग से हुई। वो काफी इंप्रेस हुए और ‘मन की बात’ में उनका जिक्र किया। तब जाकर रिश्तेदारों को चैन पड़ी कि बच्चे कोई अच्छा काम कर रहे हैं। लेकिन सबसे ज्यादा सेटिस्फेक्शन मिलता है जब कोई बूढ़ी मां आकर कहती है, ‘आपकी वजह से मेरा बेटा अब शहर नहीं जाना चाहता।’
जी हां, खेती में भी कमाई हो सकती है। अगर हम उसमें कुछ इनोवेशन लाएं, सही तरह से मार्केटिंग करें। बिचौलियों को हटाकर मेहनत का फल मेहनत करने वाले तक पहुंचाएं। हमारे नौजवान व किसान। मिलकर देश की शान।
अगर हम खेती में कुछ इनोवेशन लाएं, सही तरह से मार्केटिंग करें और बिचौलियों को हटाकर मेहनत का फल मेहनत करने वाले तक पहुंचाएं तो खेती से अच्छी-खासी कमाई हो सकती है।
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