अकबर महान कहलाने योग्य नहीं क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

Truth in History: जब हम मध्यकालीन भारत का इतिहास पढ़ते हैं तो इतिहासकारों द्वारा बताया जाता है कि अकबर, जिसने हिन्दुस्तान में भव्य मुगल शासन की नींव रखी, वह एक महान शासक था। इन ‘‘प्रतिष्ठित’’इतिहासकारों द्वारा उसे ‘‘द ग्रेट’’ यानी ‘‘महान’’ उपनाम दिया गया। उनके मुताबिक वह सभी मुगल शासकों में सबसे महान था। वह अद्भुत व्यक्तित्व का धनी था और उसके राजनीतिक व सैन्य ताकत की कोई सानी नहीं थी। उसने अपने साम्राज्य में अन्य धर्मों, विशेषकर हिन्दुओं के लिए जो धार्मिक नीति अपनाई, वह उदार, सबको समाहित करने वाला और सहिष्णुता से भरा था और इस वजह से उन्होंने उसे ‘‘महान’’ कहलाने के योग्य ठहरा दिया।

इतिहासकारों के मुताबिक अकबर इसलिए भी ‘‘महान’’ है क्योंकि उसके खाते में अजेय सैन्य अभियान, भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल शासन की स्थापना और उसे मजबूती प्रदान कर उसका ऐतिहासिक विस्तार व प्रसार करने, अपेक्षाकृत समृद्ध शासन देने और 19वीं शताब्दी तक अनुसरण किए गए उसके द्वारा स्थापित प्रशासनिक उपायों इत्यादि जैसी कई उपलब्धियां हैं। उसका व्यक्तित्व महान था क्योंकि उसमें कई सारी विशेषताएं थीं। भले ही वह मुसलमान था, लेकिन उसका साम्राज्य कभी इस्लामिक नहीं रहा।

उसने कई हिन्दू राजकुमारियों से विवाह किया और वह बहुत ही सहिष्णु व्यक्ति था। सहिष्णु, उदार, धर्मनरिपेक्ष और उदारवादी राज्य नीति के आधार पर ही उसे ‘‘महान’’ की उपाधि से विभूषित किया गया था, इसलिए वह राष्ट्रीय राजा के उत्तम उदाहरण है।

उसने भारतीय संस्कृति को आत्मसात किया और ‘‘सुलहकुल’’ के विचार को प्रोत्साहित किया। यद्यपि कि वह बाबर का वंशज था, उसने हिंदुस्तान को अपनी गृह भूमि बनाई और इस प्रकार से उसने अपना हिंदुस्तानीकरण किया। अकबर की सफलता को चौंकाने वाला करार देते हुए इतिहासकार जवाहरलाल नेहरू ने निष्कर्ष निकाला था कि अकबर ने उत्तर और मध्य भारत के अलग-अलग तत्वों में एकता की भावना निर्मित की थी।

यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि मुगल शासक अकबर के इर्दगिर्द महानता का एक ऐसा जाल बिछाया गया गया था कि उसे बाद में बाद में कुछ फिल्मों में कहानी के रूप में प्रस्तुत किया गया और उनमें अकबर को एक निपुण राजा के रूप में महिमामंडन किया गया। इन्हीं सब वजहों से अकबर को लेकर एक लोकप्रिय मिथक का निर्माण हुआ।

कुल मिलाकर कहा जाए तो इन इतिहासकारों ने निम्नलिखित तीन व्यापक पैमानों के कारण अकबर को एक ‘‘महान’’ शासक के रूप में सराहा। ये हैं- क) उसकी विलक्षणताएं, ख) एक शासक के रूप में उसकी निपुणता और ग) उसकी उदार, धर्मनिरपेक्ष और सबको समाहित करने वाली धार्मिक नीति, खासकर हिन्दुओं के प्रति। कुछ इतिहासकारों ने एक ऐसी धारणा स्थापित करने की कोशिश की है कि अकबर एक निपुण शासक था जिसने धर्म के आधार पर अन्य धर्म के लोगों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया और इसका अनुसरण उसने राज्य की नीति के रूप में भी किया। इसलिए अकबर की धार्मिक नीति को अत्यधिक बल देकर यह स्थापित करने की कोशिश की गई वह एक ‘‘महान’’ शासक था।

हम ऐतिहासिक सबूतों, तथ्यों और इस मुगल शासक की ‘‘महानता’’ के संदर्भ में निष्कर्ष निकालने वाले इन इतिहासकारों द्वारा पढ़ाई गई धारणा के निमित्त निष्पक्षता से इन तीनों पहलुओं पर चर्चा करेंगे। अकबर ‘‘महान’’ की धारणा का बीज एंग्लिकन समुदाय (पश्चिमी ईसाई रुढ़ीवादी परंपरा के अनुयायी) के इतिहासकारों द्वारा बोया गया, जिसे बाद में नुहरूयुगीन और वामपंथी इतिहासकारों ने आगे बढ़ाया।

अपनी अंग्रेजी हुकूमत की शक्तियों से आत्ममुग्ध इन अंग्रेज इतिहासकारों ने अकबर की भव्यता, उसके वैभव और उसके साम्राज्य के राजनीतिक-क्षेत्रीय विस्तार पर अत्यधिक बल दिया। इसमें यह तथ्य भी शामिल था कि उसने मुगल शान की नींव रखी थी।

एक बाहरी आक्रमणकारी, जिसने धर्म के नाम पर निर्दयतापूर्वक बल प्रयोग करते हुए भारत पर विजय हासिल की और मुगल साम्राज्य की स्थापना की तथा उसे मजबूत बनाया। ऐसे शासक के महान होने की धारणा अंग्रेज इतिहासकारों ने इसलिए गढ़ी क्योंकि अंग्रेजों ने भी अपनी हुकूमत इसी प्रकार स्थापित की थी। अपने उपनिवेशवाद और विदेशी शासन के जरिए हिन्दुस्तान पर एक केंद्रीकृत शासन की प्रणाली थोपने को न्यायोचित ठहराने के लिए उन्होंने अकबर को इस रूप में पेश किया।

अगर योग्यता के आधार पर भी देखा जाए तो अकबर का साम्राज्य अन्य शासकों की तुलना में कोई बड़ा नहीं था। यदि हम अकबर के अधीन मुगल शासन के राजनीतिक क्षेत्र की तुलना करें तो यह औरंगजेब जैसे उसके उत्तराधिकारियों और मौर्य साम्राज्य की तुलना में बहुत कम था। वह मराठा साम्राज्य, अंग्रेजी हुकूमत और यहां तक कि गुप्त साम्राज्य की तुलना में भी कम था। इसे निम्नलिखित टेबल के हिसाब से भी समझा जा सकता है।

(अधिकतम वर्ग किलोमीटर में) (भारत गणराज्य के क्षेत्रफल का प्रतिशत)

  • मौर्य साम्राज्य : 5,000,000 152 प्रतिशत
  • ब्रिटिश शासन: 4,574, 000 139 प्रतिशत
  • मुगल साम्राज्य: 4,000,000 122 प्रतिशत
  • गुप्त साम्राज्य: 3,500,000 106 प्रतिशत
  • भारत गणराज्य (तुलना के लिए): 3,287,263 100 प्रतिशत
  • मराठा साम्राज्य: 2,500,000 76 प्रतिशत

नोट: क्षेत्रफल के हिसाब से मुगलों में सबसे अधिक क्षेत्र पर औरंगजेब ने शासन किया। ईस्ट-वेस्ट ओरिएंटेशन ऑफ हिस्टोरिकल एम्पायर के हिसाब से।

इस लिहाज से यह कहना कि अकबर का साम्राज्य वृहद था, पूरी तरह गलत, मनगढंत और वास्तविक ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ है। साथ ही उपरोक्त तथ्य यह साबित भी करते हैं कि मुगल सम्राट अकबर के साम्राज्य को क्षेत्रफल की दृष्टि से बड़ा दिखाने के समर्थन में जो प्रयास हुए हैं, वह त्रुटिपूर्ण है।

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नेहरूयुगीन-वामपंथी इतिहासकारों द्वारा जिस दूसरे तर्क को आगे बढ़ाया गया वह ये है कि अकबर भारतीय था क्योंकि उसका जन्म भारत में हुआ, वह भारत में ही पला और बढ़ा तथा उसकी मौत भी भारत में ही हुई। उसने भारत को अपना घर बनाया और अंग्रेजों की तरह वह भारत की संपत्ति को अपने देश लेकर नहीं गया।

ऐतिहासिक साक्ष्यों और तथ्यों से कुछ भी परे नहीं है। वह जानेमाने आक्रमणकारी बाबर का पोता था, जिसने भारत को लूटने और उसकी संपत्ति को हड़पने के मकसद से आक्रमण किया था। उसने काफिरों को मारने, उनके मंदिरों को बर्बाद करने और काफिरों को इस्लाम धर्म में तब्दील करने के धार्मिक कर्तव्य का अनुसरण किया।

यहां तक कि उसके पिता हुमायूं भारत में मुकम्मल शासन नहीं कर सके और उसने कभी भारत को अपना घर नहीं बनाया, भले ही उसकी मृत्यु भारत में ही हुई। अगर हम ऐतिहासिक लेखाजोखा देखें {सतीश चंद्रा (2001) मध्यकालीन भारत और स्मिथ, विंसेंट आर्थर (1917)} तो अकबर अपने भले के लिए अभिभावक बैरम खान के साथ काबुल जाने की तैयारी में कलानौर (बाटला, पंजाब) में था, तब उसे पता चला कि हुमायूं कि मृत्यू हो गई है। ऐसा नहीं था कि अकबर अपने मन से भारत में रहा और उसने भारत को अपना घर बनाया। ऐतिहासिक परिस्थितियों ने उसे लड़ने और भारत में रहने को मजबूर किया।

ऐतिहासिक घटनाओं ने ऐसी परिस्थितियां पैदा की कि उसे पानीपत की दूसरी लड़ाई (1556) लड़नी पड़ी और खुद इस लड़ाई को लड़े बगैर उसने जीत हासिल की। इस युद्ध को धर्म के आधार पर लड़ा गया था और इसका आह्वान भारत को इस्लामिक राज्य में परिवर्तित करने का था क्योंकि पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमचंद्र विक्रमादित्य अर्थात हेमू को पराजित करने और उसका सर कलम करने के बाद ही अकबर ने ‘‘गाजी’’ की उपाधि ली थी। उसने हेमू का सर काबुल भेज दिया और उसका धड़ दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया (पेज 29 वी स्मिथ)।

‘‘सबसे सहिष्णु’’ मुगल शासक ने इस युद्ध को जीतने के बाद मृत सैनिकों के कटे हुए सरों से एक टावर बनवाया था। तो इस प्रकार से एक विदेशी आक्रांता, जिसके पिता और दादा ने भारत पर आक्रमण किया और जिसे लूटा, उसको एक भारतीय शासक को पराजित करने और मुगल साम्राज्य स्थापित करने के लिए ‘‘महान’’ कहा गया। यह तर्क का उपहास नहीं तो और क्या है? इस तर्क के मुताबिक तो अंग्रेजों को भी महान ही कहा जाएगा।

इन इतिहासकारों द्वारा जो अन्य धारणा बनाई गई, वह ये है कि अकबर अन्य धर्मावलंबियों के प्रति बहुत ही सहिष्णु था। वह अन्य मुगल बदशाहों के मुकाबले सबसे अधिक उदार, सहिष्णु और सबसे कम कट्टर था। उनके मुताबिक अकबर ने भारतीय शासकों के साथ भी लड़ाई की तो वह धर्म आधारित कतई नहीं था। उसकी राज्य नीति धर्म के आधार पर कभी भी किसी व्यक्ति से भेदभाव नहीं करती थी।

तथ्यों को कोई झुठला नहीं सकता। कल्पना कीजिए कि इतिहास को वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में पढ़ने की कोशिश करने वाले मुगलों के इन समर्थकों ने किस स्तर पर छेड़छाड़ करने, कथानक तैयार करने के साथ ही मिथकों को गढ़ा।

मजेदार तो ये है कि उनके मुताबिक अकबर ने इस्लाम के आधार पर निर्दोष हिन्दुओं की हत्या नहीं की और ना ही उसने इस्लाम के नाम पर काफिरों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। और वह सभी मुगल शासकों में सबसे कम कट्टर था, खासकर धर्मांध व हठधर्मी औरंगजेब से भी कम।

इनमें से किसी भी इतिहासकार ने यह खारिज नहीं किया कि अकबर ने चित्तोर पर विजय हासिल करने के बाद निर्दोषों की हत्या की। मुगलों में अकबर ने कम मंदिरों को तबाह किया इसलिए वह ‘‘महान’’ था। उनकी धारणा के मुताबिक अकबर ने कम हिंदुओं की हत्या की इसलिए वह दुष्टतम शासकों में सर्वश्रंष्ठ था।

अपनी मौलिक पुस्तक ‘‘द ग्रेट मुगल’’ में इरा मुख्योती बताती हैं कि 1568 में अकबर ने लंबी घेराबंदी के बाद चित्तौंड़गढ़ के किले को जीता था। इस युद्ध को जीतने के बाद अकबर ने 40,000 निर्दोष हिन्दुओं की हत्या का आदेश दिया था वह भी उन लोगों की जो निहत्थे थें, किसान थे और उन्होंने किले में शरण ले रखी थी। इसे वह एक ‘‘अनैतिक सर्वक्षार नीति’’ अर्थात सब कुछ नष्ट कर देने या या कुछ ना रहने की नीति का नाम देती हैं।

वह आगे कहती हैं कि चित्तौड़ की हार को काफिरों पर इस्लाम की विजय के रूप में घोषित किया गया और अकबर ने खुद को ‘‘जिहाद में व्यस्त’’ कहा था। कई मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था और सैंकड़ों महिलाएं जो खुद को जौहर (हिन्दु मान्यता के अनुरूप खुद की इज्जत बचाने के लिए जान दे देने की एक परंपरा) नहीं कर सकीं, उन्हें बंधक बनाया।

प्रसिद्ध इतिहासकार और प्रकांड विद्वान जेम्स टोड के अनुसार ‘‘सहिष्णु इस्लामिक अकबर’’ मारे गए लोगों को गिनती उनके जनेऊ की गिनती करके की थी। चित्तौड़ पर उसकी तबाही के बाद उसने जो जनेऊ की गिनती की थी वह 74.5 मन (एक मन यानी 40 किलो) थी। वह आगे बताते हैं कि अकबर ने कितने अन्याय किए उसका हिसाब किया जाए तो उसकी गिनती करना अपने आप में एक चुनौती होगी। अनुमान सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि एक जनेऊ का वजन महज सात सात ग्राम ही होता है।

यह तर्क भी दिया जाता है कि उसने कई भारतीय शाही औरतों से विवाह किया था, जो उसके धर्मनिरपेक्ष मान्यताओं को दर्शाता है। लेकिन अगर हम ऐतिहासिक धारणाओं पर नजर दौड़ाएंगे तो पाएंगे कि वह सिर्फ राजनीतिक मुनाफे के लिए था ना कि धर्मनिरपेक्ष या फिर उदारवादी चरित्र के कारण। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि अकबर ने बलपूर्वक सलीमा सल्ताना बेगम से निकाह किया था जो कि उसके संरक्षक बैरम खान की पत्नी थी।

विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक ‘‘द ग्रेट मुगल’’ (पेज संख्या 81) में लिखते हैं कि ‘‘अकबर महिलाओं के प्रति असाधारण वासना से अभिभूत था’’। विभिन्न शासकों के खिलाफ अकबर की आक्रामक युद्ध की नीति का लक्ष्य उनकी महिलाओं, पुत्रियों और बहनों को अपने उपयुक्त इस्तेमाल करना था। वह अकबर ही था जिसने रखैल रखने के लिए मीना बाजार की शुरुआत की थी।

अकबर शासक होने से पहले एक मुसलमान था। युद्ध के लिए उसके आह्वान इस्लामिक थे और युद्ध जीतन के बाद उसने जो उपाधि हासिल की वह सारे इस्लामिक थे। एक भी ऐसा सबूत या उदाहरण नहीं है कि उसने किसी मुस्मिल शासक को परास्त करने के बाद मस्जिद को नेस्तनाबूद किया हो। वह विभिन्न अवसरों पर बड़ी संख्या में धन मक्का भेजा करता था, जो वह युद्ध में विजय हासिल करने के बाद प्राप्त करता था।

यह दावा किया जाता है कि उसने जजिया कर वापस लिया था और यही उसे एक सहिष्णु शासक के रूप में पेश करता है। जबकि सच्चाई ये है कि जजिया कर को अस्थाई तौर पर वापस लिया गया था और इस वापसी को भी उपयुक्त तरीके से लागू नहीं किया गया था। 1582 में मुगल शासक अकबर ने सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया था लेकिन किसी ने यह सवाल नहीं उठाया कि उसने बुर्का को प्रतिबंधित किया कि नहीं या फिर मस्जिदों के दरवाजे महिलाओं के लिए खोले की नहीं। भारत के सबसे शक्तिशाली मुगल शासक अकबर, जिसने 1578 में सुनिश्चित किया कि उसे गाजी कहकर पुकारा जाए, उसने इलाहाबास का किला बनाया जो बाद में चलकर इलाहाबाद कहलाया।

यह भी तर्क दिया जाता है कि उसने हिन्दू मंदिरों के निर्माण और उनके पुनरूत्थान की अनुमति दी थी। लेकिन सच्चाई यह है कि विंसेट स्मिथ (पेज संख्या 58) के मुताबिक उसने प्रयाग और बनारस को लूटा और तहस-नहस किया। अकबर से जुड़ी इस सच्चाई को छिपाया गया।

अकबर के समकालीन मोन्सेरात लिखते हैं (पेज संख्या 27) कि ‘‘मुसलमानों की धार्मिक जिद ने पूज्य मंदिरों को तबाह किया, जो कि संख्या में अनगिनत थे। हिन्दू मंदिरों के स्थान पर असंख्य मकबरों और छोटे-छोटे इबादतगाहों का निर्माण किया गया। अकबर ने भारतीय उपमहाद्वीप में कई सारे मंदिरों को तोड़ा लेकिन उसने अपने उत्तराधिकारी औरंगजेब के मुकाबले कम मंदिर तोड़े इसलिए वह ‘‘महान’’ था।

एक बाहरी मुसलमान धर्मांध व कट्टर शासक, जिसने हिन्दुस्तान पर राज किया और जिसे हमने ‘‘महान’’ होने की उपाधि दी, उसके बारे में दिखाई गई सुनहरी तस्वीरों की हमें पुन: चर्चा करने की जरूरत है। अकबर-द ग्रेट के बारे में फैलाई गई इस धारणा से नकाब हटाया जाना और उसकी पोल खोलना अनिवार्य है।

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