मिट्टी के ही क्यों बनाए जाते हैं गणेश जी, पुराणों में भी है जिक्र, घर पर बनाते हुए रखे इन बातों का ध्यान
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
7 सितंबर को देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाएगा। इस दिन घर-घर में गणपति प्रतिमा स्थापित की जाएगी। शास्त्रों में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय बताया गया है। गणेशात्सव के 10 दिनों तक रोज गणेश जी की पूजा की जाती है।
गणेश चतुर्थी पर मिट्टी से बनी हुई भगवान गणेश जी की मूर्ति को सबसे उत्तम माना जाता है लेकिन क्या आपको पता है कि मिट्टी से बने हुए गणेश जी की पूजा क्यों की जाती है? आइए आज आपको बताएंगे गणेश चतुर्थी पर मिट्टी के गणेशजी के पूजा करने के धार्मिक और वैज्ञानिक फायदे।
धार्मिक महत्व
पुराणों में भगवान श्रीगणेश के जन्म की कथा में बताया गया है कि माता पार्वती ने पुत्र की कामना से मिट्टी का ही पुतला बनाया था, फिर शिवजी ने उसमें प्राण संचार किए। वो ही भगवान गणेश थे। शिव महापुराण में धातु की अपेक्षा पार्थिव प्रतिमा को महत्व दिया है। हालांकि पुराणों में सोना, चांदी और तांबे से बनी मूर्तियों की पूजा का विधान बताया गया है। इनके साथ ही पार्थिव प्रतिमाओं को भी बहुत पवित्र माना गया है। इस
वैज्ञानिक तर्क
ऐसा माना जाता है कि घर पर मिट्टी से गणेश मूर्ति का निर्माण करके पूजा की जाए तो इसका उत्तम फल मिलता है। मिट्टी की मूर्ति से पूजा करने से सकारात्मक ऊर्जा भी मिलती है और आसपास वातावरण में मौजूद नकरात्मकता नष्ट होती है। मिट्टी की यानी पार्थिव गणेश प्रतिमा प्रकृति के 5 मुख्य तत्व यानी भूमि, जल, वायु, अग्नि और आकाश बनी होती है। इसके अलावा मिट्टी की मूर्ति पानी में आसानी से घुल जाती है और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचाती हैं।
घर पर गणेश जी की प्रतिमा बनाने के लिए कैसी मिट्टी लें?
मूर्ति बनाने के लिए साफ और शुद्ध मिट्टी होनी चाहिए। इसके लिए आप नदी या तालाब किनारे की मिट्टी की मूर्ति ले सकते हैं। इसके अलावा पीपल या शमी के पेड की मिट्टी भी ले सकते हैं। जमीन से करीब एक फीट नीचे की मिट्टी को शुद्ध माना जाता है।
घर पर मूर्ति बनाते हुए किन बातों का ध्यान रखें
– घर में 9 इंच से ज्यादा बड़ी प्रतिमा स्थापित नहीं करनी चाहिए।
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– मूर्ति स्थापना के लिए घर की पूर्व, उत्तर, ईशान कोण (उत्तर-पूर्व के बीच) दिशा शुभ होती है।
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– मूर्ति ऐसी जगह न स्थापित करें जहां से गणेश जी की पीठ के दर्शन हो क्योंकि उनकी पीठ में दरिद्रता का वास होता है।
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– मूर्ति की स्थापना के 10 दिनों के भीतर ही प्रतिमा घर में ही विसर्जित करें।
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