हिंदुत्व वाली BJP फ्लॉप क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 224 में से 135 सीटें जीतकर बहुमत हासिल कर लिया है। BJP को 66, JD(S) को 19 और अन्य को 4 सीटें मिली हैं। रिजल्ट साफ है, पर कांग्रेस और BJP दोनों के लिए आने वाला वक्त आसान नहीं होने वाला। दो सवाल सीधे हैं, पहला BJP हारी क्यों? और दूसरा कि कांग्रेस में CM कौन होगा।

सिद्धारमैया के बेटे यतींद्र सिद्धारमैया

राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव और मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच जो हुआ या हो रहा है, उससे साफ है कि कर्नाटक का फैसला भी सोनिया और राहुल गांधी के लिए आसान नहीं होगा। एक तरफ जीत के हीरो डीके शिवकुमार हैं और दूसरी तरफ सीनियर लीडर और पार्टी में दबदबे वाले सिद्धारमैया।

कांग्रेस में कलह के कितने आसार…
अप्रैल के पहले हफ्ते में कोलार में कांग्रेस की रैली थी। मंच पर राहुल गांधी, डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया बैठे थे। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बोलने के लिए उठे। उन्होंने कहा, ‘मै साफ करना चाहता हूं, मैं इस बात को लेकर जरा भी परेशान नहीं हूं कि कौन मुख्यमंत्री बनेगा। मेरी एक ही चिंता है कि कांग्रेस को सत्ता में वापस आना चाहिए। मुख्यमंत्री का चुनाव आलाकमान और विधायकों के फैसले से होता है। जनता के बारे में सोचें और बाकी फैसले आलाकमान पर छोड़ दें।’

पहली बार कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने चुनाव से पहले CM उम्मीदवारी को लेकर बयान दिया था। ये मैसेज डीके शिवकुमार के लिए भी था, उन्होंने तीन दिन पहले मीडिया से कहा था कि ‘मल्लिकार्जुन खड़गे सीनियर लीडर हैं, उनके अंडर में काम करने में मुझे कोई दिक्कत नही है।’ सिद्धारमैया से डीके के बयान पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि नेतृत्व का फैसला इस बात पर होगा कि विधायकों की राय क्या है।

कर्नाटक कांग्रेस में CM बनने के लिए ऐसा मुकाबला नई बात नहीं है। पार्टी ने कर्नाटक चुनाव प्रभारी सुरजेवाला को जिम्मेदारी दी थी कि डीके और सिद्धारमैया आमने-सामने न आएं। तय हुआ कि सिद्धारमैया, उत्तर, मध्य और तटीय क्षेत्रों में प्रचार करेंगे। डीके दक्षिणी जिलों और वोक्कालिगा समुदाय के वोटों पर काम करेंगे। टिकट बंटवारा भी आसान नहीं था, 15 सीटों पर देर से कैंडिडेट का ऐलान होने के पीछे यही वजह थी।

कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, सिद्धारमैया के CM बनने की संभावना ज्यादा है। कांग्रेस ने करप्शन को मुद्दा बनाया और डीके पर करप्शन के आरोप हैं। इसके अलावा सिद्धारमैया पहले ही इसे अपना आखिरी इलेक्शन बता चुके हैं। ऐसे में विधायकों का इमोशनल सपोर्ट भी उनके साथ है। सूत्रों के मुताबिक, 2 साल सिद्धारमैया और बाद में डीके को CM बनाने पर भी विचार चल रहा है।

हाईकमान का साथ, येदियुरप्पा को कमान, फिर पार्टी क्यों हारी
BJP को इस बार सिर्फ 65 सीटें मिली हैं। इसकी वजह लिंगायतों का पार्टी से दूर होना माना जा रहा है। इसके तार जुलाई, 2021 से जुड़ते हैं। कर्नाटक में BJP की सरकार के दो साल पूरे हुए थे। पार्टी इसका जश्न मना रही थी।

इसी बीच CM येदियुरप्पा को पद से हटा दिया गया। इसकी कोई खास वजह भी नहीं बताई गई। बस कहा गया कि येदियुरप्पा 78 साल के हो गए हैं, इसलिए हटा दिया। बसवराज बोम्मई को येदियुरप्पा की जगह CM बनाया गया।

हाईकमान को उम्मीद थी कि येदियुरप्पा की तरह लिंगायत कम्युनिटी से आने वाले बोम्मई उनकी जगह संभाल लेंगे। कम्युनिटी उन्हें सपोर्ट करेगी। हुआ इसका उल्टा। बोम्मई, येदियुरप्पा की तरह पॉपुलर नहीं थे। कम्युनिटी में उनका दबदबा वैसा नहीं था। BJP के इस फैसले से लिंगायत नाराज हो गए।

तमाम कोशिशों के बाद भी लिंगायत नहीं सधे, तो हाईकमान ने येदियुरप्पा को फिर आगे बढ़ाया गया। उम्र 80 साल होने के बावजूद कैंपेन कमेटी का हेड बनाया। सवाल उठे कि जब ज्यादा उम्र की वजह से CM पद से हटा दिया, तो कैंपेन हेड क्यों बनाया।

येदियुरप्पा और बसवराज बोम्मई के बाद पूर्व CM जगदीश शेट्टार BJP में तीसरे बड़े लिंगायत नेता थे। टिकट न मिलने पर वे कांग्रेस में चले गए। पूर्व डिप्टी CM लक्ष्मण सावदी ने भी कांग्रेस जॉइन कर ली। यानी BJP की लिंगायत समुदाय पर पकड़ कमजोर होती गई। शेट्टार हुबली-धारवाड़ सेंट्रल सीट से चुनाव हार गए, लेकिन लक्ष्मण सावदी 75 हजार से ज्यादा वोटों से जीते हैं।

लिंगायत समुदाय कर्नाटक की 70 सीटों पर प्रभावी हैं। 2018 के चुनाव में BJP ने इनमें से 38 सीटें जीती थीं। इस बार 54 सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं। BJP सिर्फ 19 पर जीत पाई।

सीनियर जर्नलिस्ट अशोक चंदारगी कहते हैं, ‘BJP हाईकमान ने जो किया, लिंगायत कम्युनिटी सब देख-समझ रही थी। इसी का नतीजा इलेक्शन रिजल्ट में दिखा है। तीन दशकों से जो लिंगायत कम्युनिटी BJP के साथ थी, अब दूर जाती दिख रही है। लिंगायतों को लग गया कि येदियुरप्पा राजनीति से संन्यास ले चुके हैं, कम्युनिटी का बड़ा चेहरा अब BJP में नहीं है।’

BJP के हारने की ये इकलौती वजह नहीं है, और भी कारण हैं…

1. बजरंगबली का मुद्दा फेल
2 मई को कांग्रेस ने चुनावी घोषणा पत्र जारी किया। कहा कि सरकार में आए तो बजरंग दल और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) जैसे संगठनों पर बैन लगाएंगे। कुछ ही घंटों में यह सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया।

कांग्रेस के ऐलान के करीब 5 घंटे बाद ही PM मोदी ने विजयनगर में एक रैली में कहा, ‘यह देश का दुर्भाग्य है कि कांग्रेस को प्रभु श्रीराम से तो तकलीफ रही ही है, अब उसे जय बजरंगबली बोलने वाले भी बर्दाश्त नहीं।’ इसके बाद PM ने अपनी सभाओं में ‘जय बजरंग बली’ का नारा लगाना शुरू कर दिया।

उत्तर कन्नड़ के अंकोला में एक रैली में ये भी कह दिया कि ‘जब पोलिंग बूथ में बटन दबाओ न, तब जय बजरंगबली बोलकर इनको सजा दे देना।’

सीनियर जर्नलिस्ट बेलागारू समीउल्ला कहते हैं, ‘कर्नाटक में भगवान बसवेश्वर को फॉलो किया जाता है। उन्होंने हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था और दूसरी कुरीतियों का विरोध किया। वे जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में यकीन रखते थे। उन्होंने नया संप्रदाय लिंगायत बनाया। उन्हीं को फॉलो करने का नतीजा है कि नॉर्थ इंडिया जैसा पोलराइजेशन कर्नाटक में नहीं हुआ।’

‘BJP ने बजरंगबली का मुद्दा उठाकर हिंदू वोट एकजुट करने की कोशिश की, लेकिन इसका उल्टा असर हुआ। हिंदू वोट बंट गए और मुस्लिम वोट एकजुट हुए। जिस ओल्ड मैसूरु रीजन में JD(S) का दबदबा था, वहां उसकी सीटें आधी से भी कम हो गईं। मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ चले गए।

2. 40% कमीशन का दाग नहीं मिटा
मुंबई-कर्नाटक बॉर्डर पर बसे बेलगावी के ठेकेदार संतोष पाटिल की मौत के बाद अप्रैल, 2022 में 40% कमीशन विवाद शुरू हुआ। पाटिल ने अपने सुसाइड नोट में BJP नेता केएस ईश्वरप्पा पर 40% कमीशन मांगने का आरोप लगाया था। कर्नाटक कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने भी कहा कि ज्यादा कमीशन देना मजबूरी हो गया है। उन्होंने PM मोदी को लेटर भी लिखा था। BJP इस पर कोई एक्शन लेते नहीं दिखी और कांग्रेस हमलावर हो गई।

सितंबर 2022 में कांग्रेस ने PayCM कैंपेन शुरू किया। CM बोम्मई के चेहरे के साथ क्यूआर कोड लगाकर फोटो चस्पा की गई। कैंपेन के आखिरी दिन तक कांग्रेस ने इस मुद्दे को छोड़ा नहीं। करप्शन पर BJP पूरे कैंपेन में बैकफुट पर नजर आई।

3. एंटी इनकम्बेंसी के आगे डबल इंजन ने दम तोड़ा
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से BJP ने हर चुनाव में डबल इंजन शब्द इस्तेमाल किया है। हर राज्य में इसके फायदे गिनाए जाते हैं। कर्नाटक में भी BJP नेता बार-बार डबल इंजन सरकार के फायदे गिनाते रहे। कहा गया कि राज्य और केंद्र में एक पार्टी की सरकार से डेवलपमेंट में तेजी आएगी। कर्नाटक के नतीजे बता रहे हैं कि एंटी इनकम्बेंसी के आगे डबल इंजन का नारा नहीं टिक पाया।

4. BJP के कम्युनल ट्रैप में नहीं फंसी कांग्रेस
कर्नाटक में BJP ने टीपू सुल्तान का मु्द्दा सोची-समझी रणनीति के तहत उठाया था। BJP टीपू को राष्ट्रविरोधी और हिंदू विरोधी कहती रही। कर्नाटक के उच्च शिक्षा मंत्री नारायण ने मंड्या में एक रैली में कहा था कि ‘आपको टीपू चाहिए या सावरकर? इस टीपू सुल्तान को हमें कहां भेज देना चाहिए? नान्जे गौड़ा ने क्या किया, आपको याद है न? हमें सिद्धारमैया को ऐसे ही खत्म कर देना चाहिए।’

राइट विंग का दावा है कि टीपू सुल्तान की मौत अंग्रेजों से लड़ाई में नहीं हुई थी, बल्कि नान्जे गौड़ा और उरी गौड़ा ने उन्हें मारा था। BJP ने नान्जे गौड़ा और उरी गौड़ा को वोक्कालिगा बताया, लेकिन कर्नाटक के बुद्धजीवियों ने कहा कि वास्तविकता में ऐसे कोई कैरेक्टर थे ही नहीं। BJP लगातार कोशिश कर रही थी कि कांग्रेस को कम्युनल ट्रैप में फंसाया जाए, लेकिन कांग्रेस ने एंटी इनकम्बेंसी, फेल एडमिनिस्ट्रेशन, करप्शन पर ही फोकस रखा।

5. नंदिनी-अमूल कंट्रोवर्सी
कर्नाटक चुनाव में नंदिनी दूध बड़ा मुद्दा बना। अमूल ने ट्वीट किया कि कंपनी बेंगलुरू में प्रोडक्ट लॉन्च करने जा रही है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि BJP गुजरात की अमूल कंपनी को कर्नाटक में लाकर यहां के लोकल ब्रांड नंदिनी को खत्म करने की कोशिश कर रही है।

इसी बीच गृहमंत्री अमित शाह के भाषण की क्लिप भी वायरल हुई, जिसमें वे अमूल के कर्नाटक में काम करने का जिक्र कर रहे हैं। कांग्रेस ने इस मुद्दे को इतना भुनाया कि BJP को अपने मेनिफेस्टो में नंदिनी दूध बांटने की घोषणा करनी पड़ी, लेकिन रिजल्ट में इस वादे का असर नहीं दिखा।

6. मुस्लिम रिजर्वेशन हटाने का फायदा नहीं मिला
कर्नाटक में हमेशा से लिंगायत और वोक्कालिगा कम्युनिटी को सबसे ज्यादा अहमियत मिलती रही है। इन्हीं दो कम्युनिटी से सबसे ज्यादा विधायकों की संख्या होती है। CM भी इन्हीं दो कम्युनिटी से बनते आए हैं। इसलिए BJP ने चुनाव के पहले मुस्लिमों का 4% आरक्षण खत्म कर लिंगायत और वोक्कालिगा में बांट दिया था।

इसके जवाब में कांग्रेस ने कहा कि पार्टी सत्ता में आई तो मुस्लिम आरक्षण दोबारा बहाल किया जाएगा। कहा जा रहा था कि कांग्रेस इसके जरिए मुस्लिम वोटों को एकजुट करना चाहती है। नतीजे भी यही बता रहे हैं कि इससे कांग्रेस को फायदा और BJP को नुकसान हुआ। लिंगायत और वोक्कालिगा पर BJP सरकार के फैसले का असर नहीं हुआ।

7. केरला स्टोरी भी कर्नाटक में फ्लॉप
‘कश्मीर फाइल्स’ की तर्ज पर बनी फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ भी चुनाव में मुद्दा बनी। खुद PM मोदी ने कहा कि यह फिल्म केरल की असली सच्चाई दिखाती है। फिल्म में कन्वर्जन और इस्लामिक स्टेट पर फोकस किया गया है। बजरंगबली, भगवान शिव और केरला स्टोरी के जरिए BJP वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश में थी, लेकिन कामयाब नहीं हुई।

दक्षिण की अयोध्या में कांग्रेस की जीत, हिजाब विवाद वाले उडुपी में BJP जीती

कर्नाटक की सबसे बड़ी कंट्रोवर्सी वाली 6 सीटों में से 3 कांग्रेस ने जीत ली हैं। दक्षिण की अयोध्या यानी रामनगर में कांग्रेस जीत गई। टीपू सुल्तान के विवाद से जुड़ी मेलकोटे में SKP और श्रीरंगपटना में कांग्रेस को जीत मिली। माइनिंग घोटाले में घिरी बेल्लारी में भी कांग्रेस को जीत मिली है। हिजाब विवाद वाले उडुपी और बजरंग दल कार्यकर्ता हर्षा की हत्या से चर्चा में आए शिवमोगा में BJP के उम्मीदवार जीते हैं।

 

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