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भारत को कोयले पर निर्भरता क्यों कम करनी चाहिये?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत ने अपनी राष्ट्रीय विद्युत नीति (National Electricity Policy- NEP) के अंतिम मसौदे से एक प्रमुख खंड (clause) को हटाकर कोयला-संचालित नए विद्युत संयंत्रों का निर्माण नहीं करने (उन संयंत्रों को छोड़कर जो पहले से निर्माणरत हैं) की योजना बनाई है, जो जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबले के प्रयासों में एक बड़ा प्रोत्साहन है।

सरकार को संभवतः यह लगता है कि संचालन के 25 वर्ष पूरे कर लेने के बाद भी पुराने संयंत्रों को बनाए रखना एक अच्छा विचार होगा। 25 वर्ष से अधिक पुरानी उत्पादन इकाइयों को बनाए रखना बुरा विचार नहीं है क्योंकि सुसंचालित संयंत्रों की ‘स्टेशन हीट रेट’ दीर्घ कार्यकरण के साथ प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं होती है। पुराने संयंत्रों को चालू रखने का लाभ यह है कि पारेषण लिंक पहले से ही मौजूद हैं और इनका कोयला लिंकेज बना हुआ है।

इस कदम का क्या महत्त्व है?

  • यह जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबला करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • भारत की प्रस्तावित कोयला विद्युत क्षमता चीन के बाद सबसे अधिक है। सभी सक्रिय कोयला परियोजनाओं के 80% भारत और चीन में संचालित हैं।
  • यह दृष्टिकोण कोयले को चरणबद्ध तरीके से हटाने और ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों की ओर आगे बढ़ने की वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप है।
  • यह नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ऊर्जा दक्षता के विकास को प्रोत्साहित करता है।
    • सरकार वर्ष 2030 तक 500 GW स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और वर्ष 2070 तक शून्य कार्बन तटस्थता (net zero carbon neutrality) प्राप्त करने का लक्ष्य रखती है।
    • नए कोयला विद्युत संयंत्रों को निर्माण शुरू करने की अनुमति देने से न केवल मिश्रित संकेत प्राप्त होंगे और बाज़ार अपने महत्त्वाकांक्षी RE लक्ष्यों से विचलित होगा, बल्कि यह नवीकरणीय उद्योग के विकास को भी बाधित करेगा।
  • कोयला दहन से होने वाले प्रदूषण को कम करके वायु गुणवत्ता और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है।
  • यह कोयले के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने में योगदान करेगा।
  • विद्युत उत्पादन की लागत कम करना-
    • अभी 33 ऐसे ‘ज़ोंबी’ कोयला संयंत्र प्रस्ताव मौजूद हैं जो या तो अनुमति की प्रतीक्षा कर रहे हैं अथवा उन्हें अनुमति मिल गई है लेकिन अभी तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है।
    • ये ऊर्जा संयंत्र नवीकरणीय ऊर्जा (RE) विकल्पों की तुलना में 2 से 3 गुना अधिक महँगे होंगे।

भारत का कितना विद्युत उत्पादन कोयले पर निर्भर है?

  • भारत विद्युत उत्पादन के लिये कोयले पर अत्यधिक निर्भर है। भारत में उत्पादित कुल विद्युत का लगभग 60% कोयले से उत्पादित होता है और यह देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का मुख्य स्रोत है।
    • गैर-जीवाश्म स्रोत लगभग 40% की हिस्सेदारी रखते हैं।
  • वर्ष 2022-23 में कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों से विद्युत उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में 8.87% की वृद्धि देखी गई।
  • वर्ष 2023-24 के लिये विद्युत उत्पादन का लक्ष्य 1750 बिलियन यूनिट तय किया गया था, जिसमें से 75% से अधिक तापीय स्रोतों (मुख्य रूप से कोयले) से अपेक्षित है।

भारत को कोयले पर निर्भरता क्यों कम करनी चाहिये?

  • प्रदूषण में कमी लाना:
    • कोयला एक अत्यधिक प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन है जो वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय योगदान करता है।
      • कोयला दहन से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कणिका पदार्थ (Particulate Matter- PM) का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु परिवर्तन, धूम्र-कोहरा (smog), अम्ल वर्षा और श्वसन रोग, हृदय संबंधी समस्याओं तथा यहाँ तक कि समय-पूर्व मृत्यु में योगदान करते हैं।
    • कोयला वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है। पेरिस समझौते के एक हस्ताक्षरकर्ता के रूप में भारत अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की प्रतिबद्धता रखता है।
  • स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की ओर आगे बढ़ना: भारत के पास प्रचुर मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन मौजूद हैं, जिनमें सौर, पवन, जल और बायोमास शामिल हैं। कोयले के उपयोग से हटकर और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देकर भारत स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के लिये अपनी विशाल क्षमता का दोहन कर सकता है।
  • जल की कमी को दूर करना: कोयला-संचालित विद्युत संयंत्रों के शीतलन और अन्य प्रक्रियाओं के लिये बड़ी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। कोयला खनन और विद्युत उत्पादन के लिये जल की निकासी एवं उपभोग से जल की कमी और पारिस्थितिक गिरावट की स्थिति बन सकती है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो पहले से ही जल की कमी का सामना कर रहे हैं।
  • आयात कम करना: भारत को कोयले के आयात पर अत्यधिक निर्भर रहना पड़ता है। कोयले पर निर्भरता कम करने से विदेशी मुद्रा भंडार की बड़ी बचत होगी।
  • रोज़गार सृजन: कोयले से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत की ओर आगे बढ़ना नए आर्थिक अवसरों का सृजन कर सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र रोज़गार सृजन, नवाचार और तकनीकी प्रगति की नवीन संभावनाएँ प्रदान करता है।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताओं का अनुपालन: भारत द्वारा कोयले से आगे बढ़ना जलवायु परिवर्तन से निपटने और निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है। कोयले पर निर्भरता कम करने की प्रतिबद्धता प्रदर्शित करके भारत अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि को बेहतर बना सकता है, वैश्विक सतत लक्ष्यों में योगदान कर सकता है और नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश को आकर्षित कर सकता है।

भारत विद्युत उत्पादन के लिये कोयले पर अपनी निर्भरता कैसे कम कर सकता है?

  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाना: भारत ने वर्ष 2030 तक अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, जो विद्युत मिश्रण में कोयले की हिस्सेदारी को कम करने में मदद करेगा। सौर, पवन, पनविद्युत एवं बायोमास जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत भारत की बढ़ती आबादी और अर्थव्यवस्था के लिये स्वच्छ, सस्ती एवं विश्वसनीय विद्युत प्रदान कर सकते हैं।
  • ऊर्जा दक्षता को बढ़ाना: भारत अपने ऊर्जा संयंत्रों, उद्योगों, भवनों, उपकरणों एवं वाहनों की दक्षता में सुधार करके ऊर्जा की बचत कर सकता है और उत्सर्जन को कम कर सकता है। ऊर्जा दक्षता उपाय विद्युत बिल को कम करने, रोज़गार सृजित करने और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने में भी योगदान कर सकते हैं।
  • पुराने और अकुशल कोयला संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करना: भारत अपने पुराने और अक्षम कोयला-संचालित विद्युत संयंत्रों को बंद कर सकता है, जिनका संचालन एवं रखरखाव महँगा पड़ता है और उन्हें स्वच्छ एवं सस्ते विकल्पों के साथ प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
  • ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाना: भारत अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाकर और अपने ऊर्जा मिश्रण में प्राकृतिक गैस, परमाणु एवं पनविद्युत की हिस्सेदारी को बढ़ाकर कोयले पर अपनी निर्भरता को कम कर सकता है। ये स्रोत ग्रिड को लचीलापन एवं स्थिरता प्रदान कर सकते हैं और नवीकरणीय ऊर्जा के परिवर्तनीय उत्पादन को पूरकता प्रदान कर सकते हैं।
  • ग्रिड अवसंरचना को सुदृढ़ करना: भारत अधिक नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण को सक्षम करने और हानि एवं आउटेज को कम करने के लिये अपने ग्रिड अवसंरचना एवं ट्रांसमिशन नेटवर्क में सुधार ला सकता है। भारत ग्रिड की विश्वसनीयता एवं प्रत्यास्थता को बढ़ाने के लिये स्मार्ट ग्रिड, ऊर्जा भंडारण और मांग प्रतिक्रिया प्रौद्योगिकियों (demand response technologies) में निवेश भी कर सकता है।

नवीकरणीय ऊर्जा की ओर आगे बढ़ने से संबद्ध चुनौतियाँ 

  • विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMs) की बदहाल वित्तीय स्थिति, जिनमें से अधिकांश का स्वामित्व राज्य सरकारों के पास है, एक प्रमुख चुनौती है। DISCOMs नवीकरणीय ऊर्जा के मुख्य खरीदार हैं, लेकिन वे प्रायः उत्पादकों को भुगतान में देरी करते हैं अथवा कम मांग या उच्च लागत के कारण अपनी विद्युत में कटौती करते हैं। यह नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की व्यवहार्यता और बैंक क्षमता को प्रभावित करता है।
  • विद्युत व्यवस्था में सौर एवं पवन जैसे चर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करने के लिये पर्याप्त ग्रिड अवसंरचना और भंडारण क्षमता की कमी एक अन्य प्रमुख चुनौती है। आपूर्ति की विश्वसनीयता एवं स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये ट्रांसमिशन लाइनों, सबस्टेशनों, स्मार्ट मीटर, मांग प्रतिक्रिया और बैटरी भंडारण में निवेश की आवश्यकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये पूंजी जुटाने हेतु, विशेष रूप से घरेलू स्रोतों से, वित्तीय मध्यस्थों और साधनों की कमी है। भारत अपने नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के लिये विदेशी वित्तपोषण पर अत्यधिक निर्भर है, जो इसे मुद्रा जोखिमों और नीतिगत अनिश्चितताओं के लिये भेद्य/संवेदनशील बनाता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा से संबद्ध अवसरों और लाभों के बारे में निवेशकों में, विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्यमों, परिवारों एवं ग्रामीण समुदायों के बीच, जागरूकता एवं समझ की कमी पाई जाती है।

आगे की राह

  • परिचालन दक्षता में सुधार लाने, हानियों को करने, राजस्व संग्रह को बढ़ाने और उत्पादकों को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के रूप में DISCOMs की स्थिति में सुधार लाया जाना चाहिये।
    • इसमें प्रदर्शन-आधारित अनुबंध, कॉस्ट-रेफ्लेक्टिव टैरिफ, स्मार्ट मीटरिंग और प्रीपेड बिलिंग जैसे उपाय भी शामिल हो सकते हैं।
    • नए विद्युत नियम विद्युत क्षेत्र में सुधार लाने की मंशा रखते हैं और यदि इन्हें उपयुक्त रूप से क्रियान्वित किया जाए तो स्थिति व्यापक सीमा तक ठीक हो सकती है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों के अंगीकरण एवं स्वीकरण को बढ़ावा देने के लिये सूचना प्रसार, क्षमता निर्माण, तकनीकी सहायता और उपभोक्ता संलग्नता में सुधार लाने की आवश्यकता है।
  • पारेषण एवं वितरण नेटवर्क में निवेश करके ग्रिड अवसंरचना एवं भंडारण क्षमता को सुदृढ़ करना, ग्रिड के लचीलेपन एवं प्रत्यास्थता को बढ़ाना और बैटरी भंडारण एवं पम्प्ड हाइड्रो स्टोरेज प्रणालियों (pumped hydro storage systems) को तैनात करना उपयोगी सिद्ध होगा।
    • इसमें ग्रिड कोड, सहायक सेवाएँ, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र (renewable energy zones) और ग्रीन कॉरिडोर जैसे उपाय भी शामिल हो सकते हैं।
  • निम्न लागत एवं दीर्घकालिक वित्तपोषण, जोखिम न्यूनीकरण और ऋण वृद्धि प्रदान कर सकने वाले वित्तीय मध्यस्थों एवं साधनों को विकसित करके नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये घरेलू पूंजी जुटाना आवश्यक होगा।
    • इसमें ग्रीन बॉण्ड, ग्रीन बैंक, ग्रीन फंड और ग्रीन इंश्योरेंस जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
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