कामराज का यूज तमिलनाडु में BJP क्यों कर रही है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक नेता जिसने सीएम की कुर्सी छोड़ दी सिर्फ और सिर्फ संगठन को मजबूत करने की चाह में, वर्तमान दौर में देखें तो पद और सत्ता का लोभ राजनेताओं को फेविकॉल की तरह कुर्सी से चिपका कर रखता है। आज बात ऐसे शख्स की करेंगे जिसने शास्त्री को भी प्रधानमंत्री बनाया और इंदिरा को भी कुर्सी तक पहुंचाया। आज की कहानी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिसने किसी दौर में कहा- मैं कामराज हूं, बिस्तर पर लेट कर भी चुनाव जीत सकता हूं। फिर क्या हुआ ऐसा कि इस दिग्गज कांग्रेसी नेता ने इंदिरा गांधी को ही कांग्रेस से बाहर कर दिया। कामराज को मात देने के लिए इंदिरा ने आखिर क्यों अपने प्रतिद्ववंदी डीएमके से गठजोड़ कर लिया।

पांच राज्यों के तारीखों का ऐलान हो चुका है। सभी पार्टियां बहुमत पाने के लिए चुनावी जद्दोजहद में लगी है। भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी जिसे प्रतीकों की राजनीति करना बखूबी आता है। याहे वो सरदार पटेल हो या आंबेडकर या फिर बीते दिनों नेताजी सुभाष चंद्र बोस का पराक्रम दिवस। बीजेपी आए दिन इन देश के ऐतिहासिक धरोहरों के लिए एक तरह का इवेंट टाइम कार्यक्रम बना लाइमलाइट बटोर लेती है और यही विपक्षी दलों के लिए मुसीबत का सबब भी बन जाता है। तमिलनाडु में बीजेपी अब कामराज और एमजीआरप पर अपना हक जताने के मूड में आ गई है। जिससे तमिल सियासत करने वाली पार्टियां डीएमके और एआईडीएमके कि भौहें तन गई। दरअसल, तमिलनाडु के चुनाव के मौके पर बीजेपी अपनी रैलियों में कामराज और एमजीआर के कट आउट लगा रही है। वैसे तो वैचारिक तौर पर देखा जाए तो इन दोनों नेताओं का बीजेपी या संघ से कोई नाता नहीं रहा है। लेकिन बीजेपी तमिलनाडु में इनकी अहमियत को भली-भांति समझती है। इसलिए वह अपने को इनके साथ दिखाना चाहती है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे नेता कि कहानी सुनाएंगे जिसके बड़े-बड़े कट आउट की जरूरत बीजेपी को भी चुनावों में महसूस हो गई। तमिलनाडु के तीन बार के मुख्यमंत्री के कामराज की।

कामराज प्लान जिसने 6 मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे दिलवा दिये 

साल 1962 का आम चुनाव जिसमें कांग्रेस ने एक बार फिर ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की और देश की बागडोर एक बार फिर पंडित जवाहर लाल नेहरू के हाथों में थी। लेकिन कुछ वक्त बीते की भारत और चीन के बीच युद्ध हो गया। एक महीने तक चले इस युद्ध में भारत बहुत कुछ गंवा चुका था। भारतीय सेना के 1383 सैनिक शहीद हुए थे। 1696 सैनिकों का कुछ पता ही नहीं चला और चार हजार सैनिकों को युद्ध बंदी बनने की यातना झेलनी पड़ी। पंडित नेहरू और कांग्रेस पार्टी की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई और नतीजा ये हुआ कि 62 में ऐतिहासिक दर्ज करने वाली कांग्रेस एक साल बाद 3 लोकसभा उपचुनावों में हार गई। कामराज ने वो किया था जिसके बारे में आज सोचना भी मुश्किल है। कामराज ने खुद ही तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था और उनके इस्तीफे के बाद छह केंद्रीय मंत्री और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को कुर्सी छोड़ कर पार्टी में काम करना पड़ा था।

पद छोड़कर पार्टी में काम करने की इस योजना को ही ‘कामराज प्लान’ कहा जाता है। भारत चीन युद्ध के बाद कमजोर हो रही कांग्रेस को संकटपूर्ण स्थिति से बाहर निकालने के लिए कामराज ने पंडित नेहरू को सुझाव दिया कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को मंत्री पद से इस्तीफा देकर संगठन को मजबूत करने में जुट जाना चाहिए। कामराज प्लान का मकसद मुख्य रूप से कांग्रेस पार्टी के लोगों के मन के भीतर से सत्ता के लालच को दूर करना था और इसके स्थान पर संगठन के उद्देश्यों और नीतियों के लिए एक समर्पित लगाव पैदा करना। उनका ये सुझाव नेहरू को काफी पसंद आया। नेहरू ने इस प्लान का प्रस्ताव कार्यसमिति के पास भेजने को कहा। सीडब्ल्यूसी ने इस प्रस्ताव को पास किया और इसके अमल में आते ही 6 मुख्यमंत्री और 6 केंद्रीय मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा।

उस वक्त के मद्रास और वर्तमान के तमिलनाडु राज्य के सीएम पद से कामराज ने इस्तीफा दिया, इसके साथ ही उत्तर प्रदेश से चंद्रभानु गुप्ता, ओडिशा के बीजू पटनायक और मध्य प्रदेश के सीएम भगवंत राव मंडलोई ने भी इस्तीफा दिया। कामराज प्लान के तहत 6 केंद्रीय मंत्रियों को भी इस्तीफा देना पड़ा जिसमें लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई और बाबू जगजीवन राम जैसे दिग्गज नाम शामिल थे। कुछ ही दिनों बाद कामराज को 9 अक्टबर 1963 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया।

 नेहरू के बाद कौन? 

हिन्दुस्तान के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के देहांत के बाद सवाल उठा नेहरू के बाद कौन? जवाहर लाल नेहरू के देहांत के महज दो घंटे बाद कांग्रेस के जाने-माने नेता गुलजारी लाल नंदा को केयर टेकर प्रधानमंत्री बना दिया गया। लेकिन नेहरू के बाद उनका असली उत्तराधिकारी कौन था? इस सवाल का जवाब सिर्फ और सिर्फ एक आदमी के पास था- के कामराज। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के कामराज उस वक्त तक देशभर में लोकप्रिय हो चुके थे। 27 मई 1964 को कामराज के सामने कांग्रेस पार्टी के अंदर से एक ऐसे व्यक्ति को चुनने की चुनौती थी जिसे सब अपना नेता मान ले। दिल्ली के त्यागराज मार्ग के बंगले में माहौल कुछ अलग था। मोरारजी देसाई यहां रहा करते थे।

मोरारजी देसाई कांग्रेस के बड़े नेता थे और पंडित नेहरू की सरकार में वित्त मंत्री रह चुके थे। उस वक्त गुजरात और महाराष्ट्र एक राज्य हुआ करता था। लाल बहादुर शास्त्री जब से नेहरू की कैबिनेट में मिनिस्टर विथआउट पोर्टफोलियो थे तब से ही उन्हें नेहरू के बाद उत्तराधिकारी माना जा रहा था। प्रधानमंत्री पद के लिए मोरारजी देसाई की दावेदारी जल्द ही अखबारों की सुर्खियां बन गई। जैसे ही मोरारजी देसाई की दावेदारी पब्लिक हुई कांग्रस अध्यक्ष कामराज का काम आसान हो गया। क्योंकि कामराज मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनने से रोकने का फैसला पंडित नेहरू के निधन से पहले ही कर चुके थे। 1963 के सितंबर महीने में कामराज तिरूपति पहुंचे थे। उस वक्त वो कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं थे और उनके साथ गैर हिंदी भाषी राज्यों के कई नेता भी थे।

नीलम संजीव रेड्डी, निजालिंगप्पा, एसके पाटिल और अतुल्य घोष के साथ बैठक में मोररार जी देसाई के उम्मीदवारी को लेकर खिलाफत के बीज पड़ चुके थे। मोरारजी देसाई चाहते थे कि प्रधानमंत्री चुनने का काम संसदीय दल करेन कि पार्टी। लेकिन कामराज ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी का वर्चस्व जारी रखा। कामराज ने कांग्रेस में आम राय बनाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और तीन दिन तक देशभर के कांग्रेस नेताओं से मुलाकत की। 1 जून 1964 को कामराज और मोरारजी से मुलाकात के बाद लाल बहादुर शास्त्री के रूप में कांग्रेस की राय का ऐलान हो गया। कहा जाता है कि कामराज इंदिरा गांधी के लिए राजनीतिक पिच तैयार कर रहे थे। नेहरू के निधन के बाद इंदिरा ने शोक में होने की बात कहते हुए पीएम पद को लेकर दावेदारी से स्वयं की अलग हो गईं थी। कामराज को लगता था कि मोरारजी देसाई से मुकाबिल शास्त्री जी कम महत्वकांक्षा रखने वाले राजनेता हैं। जिससे आगे चलकर इंदिरा की राह खुद ब खुद आसान हो जाएगी। लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो उनके कैबिनेट में बतौर आईबी मिनिस्टर इंदिरा गांधी को जगह मिली। लेकिन ताशकंद में 11 जनवरी 1966 में शास्त्री जी का निधन हो गया। हिन्दुस्तान खबर पहुंची तो लोग हैरान हुए परेशान हुए। ताशकंद समझौते के बाद लाल बहादुर शास्त्री खुद नहीं बल्कि उनका पार्थिव शरीर हिन्दुस्तान पहुंचा।

 

इंदिरा गांधी को ऐसे मिली पीएम की कुर्सी

दिल्ली में एक बार फिर कुर्सी की खींचतान तेज हो गई और इस बार इंदिरा गांधी पूरी तरह से सक्रिय हो गई थी। कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज के मन में क्या चल रहा है ये जानने के लिए इंदिरा गांधी उनसे मिलने पहुंची। केयर टेकर प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा का जिक्र कर इंदिरा कामराज की मंशा भांपने की कोशिश में थीं। लेकिन वो उसमें नाकाम साबित हुई। कामराज का अगला कदम क्या होगा इसपर सभी की नजर थी। इंदिरा गांधी के समर्थक और सलाहकार डीपी मिश्रा की किताब के अनुसार अतुल्य घोष और कांग्रेस सिंडीकेट के कई नेता कामराज पर प्रधानमंत्री बनने के लिए दवाब डाल रहे थे। कामराज के समर्थक उन पर फैसला लेने के लिए दबाव डाल रहे थे। कामराज ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि मैं प्रधानमंत्री बन सकता क्योंकि मैं न हिंदी जानता हूं न अग्रेजी। जिसके बाद ये तय हुआ कि कामराज प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे।

इस बैठक से बेपरवाह इंदिरा के सामने ये सवाल कायम था कि क्या कामराज किंग की जगह किंगमेकर बनने के लिए तैयार थे?कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोरारजी देसाई सर्वसम्मति की बात इस बार नहीं माने और वो वोटिंग पर अड़ गए। इंदिरा गांधी को कामराज का समर्थन मिला। उस वक्त इंदिरा गांधी को मोरारजी देसाई के मुकाबले कमजोर माना जाता था लेकिन ये किंगमेकर कामराज का ही कमाल था कि कांग्रेस संसदीय दल में 355 सांसदों का समर्थन पाकर इंदिरा प्रधानमंत्री बन गई। कहा जाता है कि ये कामराज का आखिरी सफल दांव था।

1967 का चुनाव और कामराज की हार 

इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही महीनों बाद रूपये के अवमूल्यन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इससे देश में महंगाई बढ़ गई। कामराज इंदिरा के इस फैसले से नाराज भी हुए लेकिन फिर वो कांग्रेस में नेहरू का सबसे अच्छा विकल्प इंदिरा को ही मानते थे। 1967 का चुनाव आता है जो कांग्रेस के लिए बड़ा झटका सरीखा होता है। उन दिनों कामराज का पैर टूट गया था और उन्होंने बिस्तर पर से ही कहा था- मैं कामराज हूं, बिस्तर पर लेट कर भी चुनाव जीत सकता हूं। कांग्रेस यूपी, बिहार, पंजाब जैसे कई राज्यों में बुरी तरह से हारी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामराज खुद तमिलनाडु की एक विधानसभा से डीएमके की पार्टी के बैनर चले चुनाव लड़ रहे छात्र नेता से चुनाव हार जाते हैं।

दो भागों में विभाजित हुई कांग्रेस 

मई 1967 में सर्वपल्ली राधा कृष्णन का कार्यकाल खत्म हो गया था। कांग्रेस की ओर से आंध्र प्रदेश के नीलम संजीव रेड्डी को प्रत्याशी बनाया गया। लेकिन इंदिरा गांधी ने उपराष्ट्रपति वीवी गिरी को पर्चा दाखिल करने के लिए बोला और चुनाव से ठीक एक दिन पहले कांग्रेसियों से अंतरआत्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील की। कांग्रेस उम्मीदवार रेड्डी चुनाव हार जाते हैं और वीवी गिरी राष्ट्रपति बन जाते हैं। इंदिरा की इस हरकत से कांग्रेस के नेता निजीलिगप्पा, अतुल्य घोष, एसके पाटिल और कामराज नाराज होकर नवंबर 1969 में एक मीटिंग बुलाई और इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया। इंदिरा के इस्तीफा नहीं देने के बाद बहुमत साबित करने की नौबत आई और 229 सांसदों का इंदिरा को समर्थन मिला। जबकि कामराज के धुर विरोधी करुणानिधि की पार्टी डीएमके और वाम दलों ने भी इंदिरा का साथ दिया। कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेताओं के सिंडिकेट ने इंदिरा पर शिकंजा कसना चाहा तो उन्होंने 1969 में पार्टी ही तोड़ दी। कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेताओं के सिंडिकेट ने इंदिरा पर शिकंजा कसना चाहा तो उन्होंने 1969 में पार्टी ही तोड़ दी. इंदिरा की कांग्रेस को कांग्रेस रूलिंग यानी कांग्रेस आर कहा जाता था जबकि कामराज की कांग्रेस को कांग्रेस आर्गनाइजेशन यानी कांग्रेस ओ कहलाती थी। तमिलनाडु में ही कामराज कमजोर पड़े गए। उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को चुनाव में हार मिलने लगी। कामराज की सेहत खराब रहने लगी। 2 अक्टूबर 1975 को कामराज का हार्ट अटैक के चलते निधन हो गया। कामराज के निधन के अगले साल ही इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया।

 मिड डे मील के जनक

बहुत ही कम लोग जानते हैं कि आज जिस मिड डे मील को लेकर चर्चा होती है। भारत में पहली मिड डे मील योजना कुमार स्वामी कामराज यानी के कामपाज ने मद्रास के मुख्यमंत्री रहते हुए शुरू की थी। खुद गरीबी के चलते स्कूल नहीं जा पाने वाले कामराज ने ये संकल्प लिया कि मुझे हर बच्चे को स्कूली शिक्षा मुहैया करवानी है, उसे खाना देना और यूनिफार्म देनी है। मिड डे मील, फ्री यूनीफॉर्म जैसी कई योजनाओं के जरिये स्कूली व्यवस्था में कामराज ने इतने जबरदस्त सुधार किए की जो साक्षरता ब्रिटिश राज में महज 7 फीसदी थी वो 37 फीसदी तक पहुंच गई। चेन्नई के मरीना बीच पर कामराज का स्टेत्यू लगा है। वो उनके अकेले का नहीं बल्कि उनके बगल में दो बच्चों का स्टेच्यू भी है, जो कामराज के शिक्षा के क्षेत्र में किए गए काम को एक श्रद्धांजलि है।

ये तो थी तमिलनाडु के दिग्गज नेता के कामराज की कहानी। अब अगर वर्तमान परिस्थिती की बात करे तो पीएम मोदी की रैली में कामराज और एमजीआर के प्रति सम्मान दिखाने के लिए दोनों नायकों के बड़े कटआउट के मुकाबले मोदी के छोटे कट आउट लगाए गए। तर्क दिया गया कि हम राष्ट्र नायकों को राजनीतिक पाले में बांट कर नहीं देखना चाहेत। जो राष्ट्र का है वह सबका है। एआईडीएमके और डीएमके दोनों पार्टियां इसके दूरगामी नतीजों को बखूबी जानती है।

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