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चीन दलाई लामा पर क्यों डोरे डाल रहा है? - श्रीनारद मीडिया

चीन दलाई लामा पर क्यों डोरे डाल रहा है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में लोकसभा चुनाव की आहट के बीच चीन ने एक बार फिर से नए सिरे से भारत की घेरेबंदी करने का प्रयास करना शुरू कर दिया है। भारत का कट्टर पड़ोसी दुश्मन पाकिस्तान तो पहले से ही चीन के सामने पूरी तरह से बिछा हुआ है लेकिन सबसे बड़े खतरे की बात यह है कि तालिबानी शासन के तौर-तरीकों को पसंद नहीं करने वाला और अपने देश के अंदर सैन्य शक्ति और ताकत के साथ मुस्लिमों का दमन करने वाला चीन अफगानिस्तान को भी फंड और निवेश का लालच दिखाकर अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है।

जबकि यह वही अफगानिस्तान है, जिसको बचाए और बनाए रखने के लिए भारत ने हमेशा न केवल वित्तीय सहायता दी है बल्कि संकट के हर दौर में पुरजोर तरीके से अफगानिस्तान की जनता का साथ दिया है। अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और पुनर्वास में अब तक अरबों डॉलर की मदद कर चुके भारत ने इस साल के (2023-24) के आम बजट में भी अफगानिस्तान को 200 करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी। उसी अफगानिस्तान को अब चीन अपने बीआरआई प्रोजेक्ट के सहारे कर्ज के जाल में फंसाने की कोशिश कर रहा है।

दरअसल, एशिया के चौराहे पर स्थित होने के कारण अफगानिस्तान रणनीतिक तौर पर बहुत ही महत्वपूर्ण देश है। यह दक्षिण एशिया को मध्य एशिया से और मध्य एशिया को पश्चिम एशिया से जोड़ता है। भारत का संपर्क ईरान, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे मध्य एशिया के देशों के साथ अफगानिस्तान के माध्यम से ही होता है।

मध्य एशिया के देश तेल और गैस से समृद्ध हैं और इसलिए ये दुनिया के किसी भी देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। अफगानिस्तान में बढ़ रहे चीनी प्रभाव से भारत के लिए न केवल कूटनीतिक स्तर पर चुनौतियां पैदा होंगी बल्कि देश के अंदर खासकर कश्मीर और पंजाब में भी कई तरह की चुनौतियां नए सिरे से खड़ी हो जाएंगी क्योंकि तालिबान के आतंकी संगठनों के साथ संबंध तो जगजाहिर हैं ही और यह देश सबसे अधिक अफीम उत्पादक देशों में से भी एक है।

मध्य एशिया के देशों को चीन किस तरह से अपने प्रभाव में लेता जा रहा है, इसकी बानगी हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन जिसे एससीओ के तौर पर जाना जाता है की बैठक में भी दिखाई दिया। एससीओ की बैठक में भारत ने अपने स्टैंड को दोहराते हुए पुरजोर तरीके से चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का विरोध किया। यहां तक कि भारत ने शिखर सम्मेलन के अंत में जारी नई दिल्ली घोषणा में बीआरआई का समर्थन करने वाले पैराग्राफ पर हस्ताक्षर करने तक से इनकार कर दिया।

लेकिन भारत के लिए सबसे अधिक चिंताजनक एससीओ में शामिल अन्य मध्य एशियाई देशों का रवैया रहा। आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ के मसले पर एससीओ के देशों ने भारत का प्रबल समर्थन किया लेकिन चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट पर भारत के रूख का समर्थन नहीं करते हुए पाकिस्तान और रूस के साथ-साथ कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों ने भी चीन का साथ दिया। पाकिस्तान और रूस की मजबूरी तो समझी जा सकती है लेकिन मध्य एशियाई देशों का यह रुख निश्चित तौर पर भारत के लिए चिंताजनक है।

अब चीन ने भारत के पड़ोस में स्थित तिब्बत में भी नया दांव खेलना शुरू कर दिया है। चीन के दमन और आक्रमण के कारण दशकों पहले दलाई लामा ने अपने शिष्यों और तिब्बत के नागरिकों के साथ भारत में आकर राजनीतिक शरण ली थी। चीन की नाराजगी और आक्रमण के बावजूद भारत हमेशा दलाई लामा के साथ खड़ा रहा। यहां तक कि चीन के दमनकारी रवैये से त्रस्त होकर तिब्बती नेता भारत से ही तिब्बत की निर्वासित सरकार भी चला रहे हैं।

लेकिन अब भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और ताकत से डरे चीन ने भारत को घेरने के लिए दलाई लामा और तिब्बत की निर्वासित सरकार पर भी डोरे डालना शुरू कर दिया है। तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि चीन तिब्बत समस्या के समाधान के लिए उनसे संपर्क करना चाहता है। दलाई लामा ने शनिवार को ही धर्मशाला में यह बयान दिया कि वे हमेशा बातचीत के लिए तैयार हैं।

चीन को समझना चाहिए कि तिब्बत के लोग आध्यात्मिक रूप से बहुत मज़बूत हैं, तिब्बत की समस्या के समाधान के लिए उन्हें उनसे बात करनी चाहिए। उन्होंने आगे यह भी कहा कि वे तिब्बत की स्वतंत्रता नहीं चाहते हैं और चीन का हिस्सा बने रहने के लिए तैयार हैं। अपने वतन लौटने की उम्मीद कर रहे निर्वासित तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने चीन की कोशिशों का जिक्र करते हुए सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही कि चीन बदल रहा है और वह औपचारिक या अनौपचारिक तरीके से उनसे संपर्क करना चाहता है।

जबकि भारत में रह रहे तिब्बत की निर्वासित सरकार के कई नेता आज भी यह मानते हैं कि तिब्बत में चीन की दमनकारी नीति आज भी जारी है। वहां पर चीन आज भी तिब्बतियों को दलाई लामा की तस्वीरें रखने तक की भी अनुमति नहीं देता है। यहां तक कि अन्य प्रांतों से लोगों को तिब्बत में लाकर लगातार बसाया जा रहा है ताकि तिब्बत की डेमोग्राफी को बदला जा सके।

ऐसे में जाहिर है कि, अब भारत को चीन की इन नापाक साजिशों से ज्यादा सतर्क रहना पड़ेगा और काउंटर स्ट्रेटेजी बना कर एक साथ कई मोर्चो पर काम भी करना पड़ेगा क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में जब भी भारत के ऊपर कोई संकट आएगा तो भारत को अकेले ही उसका सामना करना पड़ सकता है।

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