कृषि में सकल पूंजी निर्माण में कमी क्यों हो रही है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कृषि में पूंजी निर्माण की स्थिति बहस का विषय रही है। कृषि में सकल पूंजी निर्माण (Gross Capital Formation in Agriculture- GCFA) वर्ष 2013-14 से घटता जा रहा है। कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में GCFA वर्ष 2013-14 को समाप्त हुई तीन वर्ष की अवधि में 17.5% से घटकर वर्ष 2020-21 को समाप्त हुए तीन वर्ष की अवधि में 15.7% रह गया।

  • समग्र अर्थव्यवस्था में ही पूंजी निर्माण में मंदी की प्रवृत्ति नज़र आ रही है, लेकिन कृषि में मंदी की दर अधिक तीव्र है।
    • वर्ष 2004-05 से 2013-14 की अवधि के दौरान GCF और GCFA दोनों की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 9% रही।
    • लेकिन 2013-14 से 2020-21 की अवधि में GCFA का CAGR तेज़ी से गिरकर 3% हो गई है, जबकि GCF में 5% की कुछ अधिक दर दर्ज की गई।
  • GCFA का कृषि के भविष्य के विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा और इसलिये इस मंदी के संभावित कारणों को समझना ज़रूरी है।

इस मंदी के पीछे क्या कारण हैं? 

  • सार्वजनिक निवेश में संरचनात्मक बदलाव: एक मान्यता यह है कि सार्वजनिक निवेश में गिरावट प्रमुख और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं से सूक्ष्म सिंचाई की ओर स्थानांतरित होने के कारण हुई है।
    • कृषि क्षेत्र में 90% से अधिक सार्वजनिक निवेश सिंचाई से संबंधित है और संभव है कि ध्यान क्षेत्र में बदलाव के कारण समग्र पूंजी निर्माण में गिरावट आई हो।
  • RKVY कार्यक्रम में बदलाव: राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) ने कृषि में राज्य निवेश को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • वर्ष 2014 के बाद से, चूँकि राज्य RKVY के व्यय का 40% पूरा कर रहे थे, इस आवश्यकता में ढील दी गई। इसने राज्यों के लिये कृषि में साल-दर-साल निवेश जारी रखने की प्रोत्साहन संरचना को कमज़ोर कर दिया है। 
  • कृषि क्षेत्र से अपवर्जन: ग्रामीण विद्युतीकरण, बिजली आपूर्ति, ग्रामीण सड़क, भंडारण, कृषि अनुसंधान, उर्वरक और कीटनाशक उद्योगों पर महत्त्वपूर्ण व्यय को कृषि या संबद्ध क्षेत्रों के अंतर्गत वर्गीकृत नहीं किया गया है।
    • संभव है कि इस अपवर्जन से कृषि विकास में इन क्षेत्रों के समग्र योगदान को चिह्नित करने में अंतराल उत्पन्न हुआ हो।
  • निजी निवेश में कमी: कृषि क्षेत्र में 80% से अधिक निवेश निजी क्षेत्र द्वारा किया गया है। कृषि में व्यापार स्थिति (Terms of Trade- ToT) कृषि में निजी निवेश का एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक है।
    • ToT किसानों द्वारा प्राप्त कीमतों को दर्शाता है और हाल की अवधि में इसमें व्यापक गिरावट आई है।
    • संभव है कि ToT में इस गिरावट ने कृषि में निजी निवेश को भी कम कर दिया हो।
    • निजी क्षेत्र के निवेश, जो कृषि में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, ToT से प्रभावित होते हैं।
  • कृषि पद्धतियों में बदलाव: संभव है कि सूक्ष्म सिंचाई जैसे अधिक आधुनिक एवं कुशल तरीकों की ओर कृषि पद्धतियों के बदलाव ने पूंजी निवेश के प्रकार एवं पैमाने को प्रभावित किया होगा।
  • आर्थिक और नीतिगत कारक: सरकारी नीतियों और कृषि पद्धतियों में बदलाव सहित व्यापक आर्थिक कारक इस गिरावट के योगदानकर्ता हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, सब्सिडी, ऋण उपलब्धता या बाज़ार पहुँच से संबंधित नीतियों में बदलाव निवेश निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं।
  • वैश्विक और जलवायु संबंधी कारक: वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ, जलवायु परिवर्तन और अन्य बाह्य कारक भी कृषि और पूंजी निर्माण को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, बदलते मौसम के पैटर्न से कुछ कृषि निवेशों की व्यवहार्यता प्रभावित हो सकती है क्योंकि जलवायु परिवर्तन कृषि को कम लाभप्रदता और तापमान परिवर्तन, कीटों एवं बीमारियों के कारण उच्च फसल विफलता जोखिम के साथ प्रभावित करता है ।

GCAF में इस कमी का क्या असर हो सकता है? 

  • धीमी कृषि वृद्धि: जब पूंजी निर्माण में गिरावट आती है तो कृषि क्षेत्र की वृद्धि की गति सुस्त हो सकती है। ऐसा इसलिये है क्योंकि कम पूंजी का अर्थ होगा बुनियादी ढाँचे ढाँचे, प्रौद्योगिकी और आधुनिक कृषि पद्धतियों में कम निवेश, जो उत्पादकता में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत में आयोजित एक अध्ययन में पाया गया कि कृषि में सार्वजनिक पूंजी निर्माण में 10% की वृद्धि से कृषि उत्पादन में 1.6% की वृद्धि हुई।
  • आय असमानता: विश्व बैंक के अनुसार निम्न-आय देशों में निर्धनतम 40% आबादी की औसत आय वर्ष 2018 में 1.25 डॉलर प्रति दिन थी, जबकि सबसे अमीर 10% की औसत आय 9.61 डॉलर प्रति दिन थी। धीमी गति से वृद्धि कर रहा कृषि क्षेत्र इस असमानता को और बढ़ा सकता है।
  • रोज़गार सृजन संबंधी चुनौतियाँ: कृषि क्षेत्र एक प्रमुख नियोक्ता है। यदि क्षेत्र धीमी गति से बढ़ता है तो यह खेती और संबंधित उद्योगों में कम रोज़गार सृजित करेगा। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर या अल्प रोज़गार दर बढ़ सकती है।
  • खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: FAO के अनुसार विश्व 9.7 बिलियन आबादी का पेट भरने के लिये वर्ष 2050 तक 50% अधिक खाद्य उत्पादन की आवश्यकता होगी। धीमी गति से विकास कर रहा कृषि क्षेत्र इस लक्ष्य में बाधक बन सकता है जिससे भुखमरी एवं कुपोषण का खतरा बढ़ सकता है।
  • प्रतिस्पर्द्धात्मकता में कमी: यदि भारत के कृषि क्षेत्र में पूंजी निवेश की कमी होगी तो विश्व स्तर पर इसकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता में कमी आ सकती है।
    • अन्य देश जो अपनी कृषि में अधिक निवेश करते हैं, उन्हें दक्षता, प्रौद्योगिकी अंगीकरण और निर्यात क्षमताओं के मामले में बढ़त प्राप्त हो सकती है।
  • पर्यावरणीय परिणाम: विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute- WRI) के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2010 में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 24% के लिये कृषि क्षेत्र ज़िम्मेदार था और यदि मौजूदा रुझान जारी रहा तो यह हिस्सेदारी वर्ष 2050 तक 30% तक बढ़ सकती है।
    • कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने का एक तरीका यह होगा कि कृषि में निम्न-कार्बन और जलवायु-स्मार्ट प्रौद्योगिकियों एवं अभ्यासों का निवेश किया जाए।
  • मानसून पर निर्भरता: इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (ICRIER) के एक अध्ययन में पाया गया कि सामान्य वर्षा से 1% विचलन से भारत में कृषि विकास में 0.7% की कमी आई। 
    • मानसून पर निर्भरता कम करने के लिये सिंचाई प्रणाली विकसित करने, मौसम पूर्वानुमान और फसल बीमा के विषय में पूंजी निवेश की आवश्यकता है।

भारत में कृषि का महत्त्व 

  • यह कुल जनसंख्या के लगभग 54.6% को रोज़गार के अवसर प्रदान करता है।
  • यह कुल सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 17% का योगदान देता है।
  • यह भारत की वृहत और बढ़ती आबादी के लिये खाद्य की आपूर्ति करता है।
  • यह विभिन्न कृषि-आधारित और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिये कच्चा माल उपलब्ध कराता है।
  • यह देश के आंतरिक और बाह्य व्यापार एवं वाणिज्य को प्रभावित करता है।
  • यह पूंजी निर्माण और सरकारी राजस्व सृजन में मदद करता है।

कृषि में GCF बढ़ाने के लिये और क्या किया जाना चाहिये? 

  • सिंचाई, अनुसंधान एवं विकास, विस्तार सेवाओं, बाज़ार अवसंरचना आदि पर सार्वजनिक व्यय बढ़ाना।
    • ये कृषि की उत्पादकता एवं लाभप्रदता में सुधार करने और निजी निवेश के लिये अनुकूल माहौल बनाने में मदद कर सकते हैं।
  • मॉडल कृषि उपज और पशुधन विपणन अधिनियम (Model Agriculture Produce and Livestock Marketing Act), मॉडल कृषि उपज और पशुधन अनुबंध खेती अधिनियम (Model Agriculture Produce and Livestock Contract Farming Act), किसान उत्पादक कंपनियों (Farmer Producer Companies) को आयकर से छूट जैसे नीतिगत सुधारों के माध्यम से कृषि में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना।
    • ये वैकल्पिक विपणन चैनल का निर्माण करने, अनुबंध खेती को सुविधाजनक बनाने और किसानों द्वारा सामूहिक कार्रवाई को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकते हैं।
  • जलवायु प्रत्यास्थी और निम्न-उत्सर्जनकारी कृषि की दिशा में रूपांतरण का समर्थन करने के लिये जलवायु वित्त की क्षमता का लाभ उठाना। इसे तीन परस्पर-संबद्ध मार्गों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है: प्रत्यास्थी कृषि को बढ़ावा देना, जलवायु संबंधी सलाह एवं जोखिम प्रबंधन सेवाओं को सुविधाजनक बनाना और खाद्य प्रणालियों का पुनर्विन्यास करना।
    • हरित जलवायु कोष (GCF) जलवायु वित्त के स्रोतों में से एक है जो इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में विकासशील देशों का समर्थन कर सकता है।

कृषि में सकल पूंजी निर्माण में मंदी के कारण भारत को कृषि संवहनीयता में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सार्वजनिक निवेश में परिवर्तन और कृषि पद्धतियों में बदलाव से यह समस्या जटिल हो गई है, जिससे आय वितरण, रोज़गार सृजन और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित हो रही है। भारत के महत्त्वपूर्ण कृषि क्षेत्र के प्रत्यास्थी, प्रतिस्पर्द्धी और संवहनीय भविष्य के लिये सहयोगात्मक एवं रणनीतिक उपाय आवश्यक हैं। 

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