भारत की राजभाषा हिंदी राष्ट्रभाषा क्यों नहीँ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हिंदी भारत की अत्यंत प्राचीन भाषा ‘संस्कृत’ की उत्तराधिकारिणी है। विश्व के लगभग सौ से भी ज्यादा देशों में हिंदी का या तो जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रयोग होता है अथवा उन देशों में हिंदी के अध्ययन एवं अध्यापन की सम्यक व्यवस्था है। हिंदी के महान साहित्यकार महावीर प्रसाद द्विवेदी ने वर्ष 1912 में कहा था कि देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता और उपयोगिता आज भी सिद्ध है और भविष्य में ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में ये विश्व की सबसे समृद्ध भाषा होगी। यानी आज से लगभग 110 वर्ष पूर्व हमारे लेखकों को ये पता था कि हिंदी, तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में सक्षम है।

हिंदी का भविष्य तो उज्ज्वल है, लेकिन हमारी लिपि पर बड़ा संकट मंडरा रहा है, क्योंकि उस वक्त मोबाइल यूजर्स अपने संदेश भेजने के लिए रोमन लिपि पर निर्भर रहते थे। लेकिन आज यह समस्या हल हो चुकी है। हिंदी के लिए सबसे उत्साहजनक बात ट्विटर पर उसका बढ़ता प्रयोग है।

संविधान सभा ने लम्बी चर्चा के बाद 14 सितम्बर सन् 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा स्वीकारा गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा के सम्बन्ध में व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये 14 सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। ध्यातव्य है कि भारतीय संविधान में राष्ट्रभाषा का उल्लेख नहीं है।

राजभाषा का शाब्दिक अर्थ है – राज-काज यानी शासन-प्रशासन की भाषा। जो भाषा देश के राजकीय अर्थात सरकारी कार्यालय के कार्यो के लिए प्रयुक्त की जाती हैं, वह राजभाषा कहलाती है। संविधान सभा की स्वीकृति के बाद 14 सितम्बर, 1949 को  हिंदी भारत की राजभाषा बनी। संविधान के अनुच्‍छेद 343 में भारतीय संघ की राजभाषा हिंदी को उल्‍लेखित किया गया है, जिसकी लिपि देवनागरी है।

संसद का कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति या लोकसभा के अध्यक्ष विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकते हैं (संविधान का अनुच्छेद 120)। किन प्रयोजनों के लिए केवल हिन्दी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है, और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अन्तर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मन्त्रालय की ओर से जारी किए गए निर्देशों द्वारा निर्धारित किया गया है।

8वीं शताब्दी  : भरतपुर राज्य तथा पूर्वी राजस्थान के कई राजवाड़े हिन्दी (ब्रजभाषा) में कार्य कर रहे थे।

1826  : हिन्दी के पहले समाचारपत्र उदन्त मार्तण्ड का कलकत्ता से प्रकाशन, पण्डित युगलकिशोर शुक्ल द्वारा

1829  : राजा राममोहन राय द्वारा ‘बंगदूत’ का प्रकाशन ; यह हिन्दी सहित बांग्ला, फ़ारसी और अंग्रेजी में छपता था।

1835  : बिहार में हिन्दी आन्दोलन शुरू हुआ था। इस अनवरत प्रयास के फलस्वरूप सन् 1875 में बिहार में कचहरियों और स्कूलों में हिन्दी प्रतिष्ठित हुई।

1872  : आर्य समाज के संस्थापक महार्षि दयानंद सरस्वती जी कलकत्ता में केशवचन्द्र सेन से मिले तो उन्होने स्वामी जी को यह सलाह दे डाली कि आप संस्कृत छोड़कर हिन्दी बोलना आरम्भ कर दें तो भारत का असीम कल्याण हो। तभी से स्वामी जी के व्याख्यानों की भाषा हिन्दी हो गयी और शायद इसी कारण स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश की भाषा भी हिन्दी ही रखी।

1873 : महेन्द्र भट्टाचार्य द्वारा हिन्दी में पदार्थ विज्ञान (material science) की रचना।

1875  : बिहार में कचहरियों और स्कूलों में हिन्दी प्रतिष्ठित हुई।

1875  : सत्यार्थ प्रकाश की रचना। यह आर्यसमाज का आधार ग्रन्थ है और इसकी भाषा हिन्दी है।

1877  : श्रद्धाराम फिल्लौरी ने भाग्यवती नामक हिन्दी उपन्यास की रचना की।

1878 : भारतमित्र नामक हिन्दी समाचार पत्र का कलकता से प्रकाशन। इसे कचहरियों में हिन्दी प्रवेश आन्दोलन का मुखपत्र कहा जाता है।

1882  : भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने शिक्षा आयोग (हन्टर कमीशन) के समक्ष अपनी गवाही दी जिसमें हिन्दी को न्यायालयों की भाषा बनाने की महत्ता पर बल दिया।

1880 का दशक  : गुजराती के महान कवि श्री नर्मद (1833-86) ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार रखा।

1886  : बिहार के ‘इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स’ भूदेव मुखोपाध्याय ने न्यायालयों में फारसी के स्थान पर हिन्दी चलाने का आदेश दिया। उन्होने “सामाजिक निबन्ध” में लिखा, “भारतवर्ष में अधिकांश लोग हिन्दी कथोपकथन करने में समर्थ हैं। इसलिये शुद्ध भारतवासियों की सभाओं में अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी का ही प्रयोग होना चाहिये।” उन्होने सन् १९१९ में कांग्रेस कमिटी में सबसे पहले हिन्दी में भाषण दिया था।

1893  : काशी नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना।

1898  : मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में 17 सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल ने पश्चिमोत्तर प्रदेश व अवध के गवर्नर सर एंटोनी मैकडोनेल को ‘कोर्ट कैरेक्टर एण्ड प्राइमरी एजुकेशन इन नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेज’ नामक ज्ञापन सौंपा।

जनवरी, 1900  : सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ। (इण्डियन प्रेस, प्रयाग से)

18 अप्रैल 1900  : पश्चिमोत्तर प्रान्त और अवध के लेफ्टीनेण्ट गर्वनर एण्टोनी मैकडानेल ‘बोर्ड ऑफ़ रिवेन्यु’ और हाई कोर्ट तथा ‘जुडिशियल कमिशनर अवध’ से सम्मति लेकर आज्ञापत्र जारी कर दिया। नागरी प्रचारिणी सभा और मालवीय जी के नेतृत्व में चले इस आन्दोलन ने पश्चिमोत्तर प्रान्त में कचहरियों और प्राइमरी स्कूलों में हिन्दी भाषा के लिए द्वार खोल दिया।

1905  : बाल गंगाधर तिलक ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अधिवेशन में देवनागरी को सभी भारतीय भाषाओं की संपर्क भाषा (राष्ट्रलिपि), तथा हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आह्वान किया। इसे देशभर में समर्थन मिला और जगह-जगह संस्थाएं बनने लगी, भाषाई आयोजन होने लगे।

1907 : गुरुकुल कांगड़ी का महाविद्यालय विभाग खुला और हिन्दी को ही विज्ञान, गणित, पाश्चात्य दर्शन आदि सभी विषयों की शिक्षा का माध्यम रखा गया। उस समय हिन्दी में उच्च शिक्षा देना एक असम्भव बात समझी जाती थी। गुरुकुल ने इसे कार्यरूप में परिणत करके दिखा दिया। उस समय आधुनिक विद्वानों की पुस्तकें हिन्दी में नहीं थी। गुरुकुल के उपाध्यायों ने पहले-पहल इस क्षेत्र में काम किया और गुरुकुल के अनेक उच्चकोटि के ग्रन्थ प्रकाशित हुए।

1907  : न्यायमूर्ति शारदाचरण मित्र द्वारा ‘एक लिपि विस्तार परिषद’ की स्थापना एवं देवनागरी लिपि में ‘देवनागर’ नामक मासिक पत्र का प्रकाशन।

1917  : महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है।

1918  : मराठी भाषी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से घोषित किया कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी।

1918  : इंदौर में सम्पन्न आठवें हिन्दी सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था – मेरा यह मत है कि हिन्दी को ही हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा बनने का गौरव प्रदान करें। हिन्दी सब समझते हैं। इसे राष्ट्रभाषा बनाकर हमें अपना कर्त्तव्यपालन करना चाहिए।

1918  : महात्मा गांधी द्वारा दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना

1929  : हिन्दी शब्दसागर का प्रकाशन

1930  : इस वर्ष कांग्रेस अधिवेशन में आयोजित राष्ट्रभाषा सम्मेलन में स्वीकार किया गया कि देश का अन्तरप्रारान्तीय कार्य राष्ट्रभाषा हिन्दी में ही होना उचित एवं हितकारी है।

1930 का दशक  : हिन्दी टाइपराइटर का विकास (शैलेन्द्र मेहता)

1935  : मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री रूप में सी० राजगोपालाचारी ने हिन्दी शिक्षा को अनिवार्य कर दिया।

1937  : हरि गोविन्द गोविल (1899 -1956) द्वारा देवनागरी के लिए एक नए टाइपफेस का आविष्कार

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने को लेकर पूर्व के दिनों में काफी विवाद हुआ। 1946 से 1949 तक संविधान को बनाने की तैयारियां शुरू कर दी गईं थीं। संविधान में हर पहलू को लंबी बहस से होकर गुजरना पड़ा, ताकि समाज के किसी भी तबके को ये ना लगे कि संविधान में उसकी बात नहीं कही गई है। लेकिन सबसे ज्यादा विवादित मुद्दा रहा कि संविधान को किस भाषा में लिखा जाना है, किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देना है। इसे लेकर सभा में एक मत पर आना थोड़ा मुश्किल लग रहा था। क्योंकि दक्षिण के प्रतिनिधि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने को लेकर अपना विरोध प्रकट कर रहे थे।

 

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