नोबेल पुरस्कारों में भारत का निम्न प्रदर्शन क्यों है?
विज्ञान नोबेल पुरस्कारों में भारत के खराब प्रदर्शन के क्या कारण हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत में काम करने वाले किसी भी भारतीय को 94 वर्षों में भौतिकी, रसायन विज्ञान या चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार नहीं मिला है।
- भारत में नोबेल पुरस्कारों की कमी को प्राय: भारतीय विज्ञान की स्थिति का प्रतिबिंब माना जाता है, हालाँकि अन्य कारक भी इसमें भूमिका निभाते हैं।
- विज्ञान में नोबेल पुरस्कार पाने वाले अंतिम भारतीय सी. वी. रमन थे, जिन्हें वर्ष 1930 में भौतिकी में प्रकाश के प्रकीर्णन (Scattering of Light) के लिये नोबेल पुरस्कार मिला था।
- अनुसंधान के लिये कम सार्वजनिक वित्तपोषण: भारतीय सरकार वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये अपर्याप्त वित्तपोषण उपलब्ध कराती है, जिससे अभूतपूर्व कार्यों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
- भारत में पिछले दशक में बुनियादी अनुसंधान के लिये प्रत्यक्ष वित्तपोषण सकल घरेलू उत्पाद के 0.6-0.8% के निम्न स्तर पर रहा है, जो अन्य ब्रिक्स देशों की तुलना में काफी कम है।
- वास्तव में अनुसंधान एवं विकास पर भारत का कुल व्यय 2005 और 2023 के बीच सकल घरेलू उत्पाद के 0.82% से घटकर 0.64% रह गया है।
- अत्यधिक नौकरशाही: भारत के शोध संस्थानों में नौकरशाही की लालफीताशाही नवाचार में बाधा उत्पन्न करती है और वैज्ञानिक प्रगति को धीमा कर देती है। उदाहरणार्थ:
- IIT दिल्ली में उपकरण मंगाने में 11 महीने का समय लगता है।
- IIT दिल्ली को दिया गया 150 करोड़ रुपए का GST नोटिस इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार कर नीतियाँ शैक्षणिक संस्थानों पर वित्तीय दबाव उत्पन्न करती हैं।
- गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GEM) सरकारी संस्थाओं के लिये अनिवार्य खरीद प्लेटफॉर्म का दायित्व आरोपित करता है।
- लघु शोधकर्त्ता पूल/समूह: भारत में इसकी जनसंख्या के सापेक्ष शोधकर्त्ताओं की संख्या अनुपातहीन रूप से कम है।
- भारत में शोधकर्त्ताओं की संख्या वैश्विक औसत से पाँच गुना कम है, जिससे नोबेल पुरस्कार के संभावित दावेदारों की संख्या कम हो रही है।
- व्यक्तिगत प्रतिभा पर निर्भरता: एक मज़बूत अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र की अनुपस्थिति में भविष्य में भारत की नोबेल पुरस्कार जीतने की संभावनाएँ व्यवस्थित समर्थन या बुनियादी ढाँचे के बजाय काफी हद तक वैज्ञानिकों की व्यक्तिगत प्रतिभा पर निर्भर हैं।
- शोध संस्थानों में विवेकाधिकार: कथित तौर पर कई शोध संस्थानों के प्रमुख आवश्यक शोध पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, इन शक्तियों का उपयोग व्यक्तिगत कॅरियर विकास (जैसे कि पद्म श्री या भारत रत्न जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार हासिल करना या सेवानिवृत्ति के बाद अपने कार्यकाल को बढ़ाना) के लिये करते हैं।
- स्पष्ट अनुसंधान का अभाव: कई वैज्ञानिक पुराने या अप्रासंगिक विषयों पर शोध करते हैं, जो अक्सर संयुक्त राज्य अमेरिका या यूरोपीय संघ में हुए असफल प्रयोगों पर आधारित होते हैं, जिनका भारत में कोई व्यावहारिक अनुप्रयोग नहीं है।
- उदाहरण के लिये, उच्च ऊर्जा कण त्वरक या जटिल परमाणु संलयन परियोजनाओं के लिये जल प्रौद्योगिकियों एवं कृषि नवाचार की उपेक्षा करना।
- गुणवत्ता की अपेक्षा मात्रा पर ध्यान: सरकारी वित्तपोषित अनुसंधान संस्थानों में किये जाने वाले अधिकांश अनुसंधान सार्थक नवाचार के बजाय “संख्या के स्तर पर” प्रकाशन जारी करने पर केंद्रित हैं।
- विदेशी प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता: मूल समाधान विकसित करने के बजाय भारतीय वैज्ञानिक अक्सर विदेशों में विकसित प्रौद्योगिकियों की नकल करने या उन्हें अपनाने में ही लगे रहते हैं, जिसके लिये गहन वैज्ञानिक नवाचार या योग्यता की आवश्यकता नहीं होती है।
- निजी क्षेत्र की सफलता पर अत्यधिक निर्भरता: कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन विकास में हाल की सफलताएँ, मुख्य रूप से निजी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं द्वारा हासिल की गई हैं जो सरकार द्वारा वित्तपोषित अनुसंधान संस्थानों एवं सफल वैज्ञानिक सफलताओं के बीच एक विसंगति को दर्शाती है।
- इस निर्भरता से वैज्ञानिक प्रगति में सरकारी प्रयोगशालाओं की विश्वसनीयता और आवश्यकता में कमी आती है।
- अनुभव से पर्याप्त लाभ न उठा पाना: यहाँ तक कि जब विदेश से प्रशिक्षित वैज्ञानिक भारत लौटते हैं तो वे अक्सर अस्वस्थ संस्थागत वातावरण के कारण अपनी क्षमता के अनुरूप कार्य नहीं कर पाते हैं।
- वे उत्कृष्टता प्राप्त करने या प्रमुख वैज्ञानिक चुनौतियों से निपटने के बजाय अप्रासंगिक शोध प्रकाशित करने और पदोन्नति पाने के चक्र में फँस जाते हैं।
- अवसरों का लाभ न उठा पाना: कई उल्लेखनीय भारतीय वैज्ञानिकों ने अभूतपूर्व कार्य किया, लेकिन उन्हें या तो अनदेखा कर दिया गया या नोबेल के लिये नामांकित नहीं किया गया। जैसे:
- जगदीश चंद्र बोस: इन्होने वर्ष 1895 में वायरलेस संचार का प्रदर्शन किया, लेकिन उनके कार्य को उस स्तर पर पहचान नहीं मिल सकी, जबकि वर्ष 1909 में इसी कार्य के लिये गुग्लिल्मो मार्कोनी और फर्डिनेंड ब्राउन को नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
- के.एस. कृष्णन: इन्होने सी.वी. रमन के साथ मिलकर रमन प्रकीर्णन प्रभाव की खोज की, लेकिन उन्हें कभी नोबेल के लिये नामांकित नहीं किया गया।
- ECG सुदर्शन: वर्ष 1979 और 2005 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार ऐसे कार्यों के लिये दिये गए थे जिनमें सबसे मौलिक योगदान सुदर्शन का था लेकिन उन्हें पुरस्कार के लिये नजरअंदाज कर दिया गया था।
- ECG सुदर्शन ने मूलभूत कणों के बीच की विद्युत चुंबकीय अंतर्क्रिया पर कार्य किया।
- कई भारतीय वैज्ञानिकों (जैसे मेघनाद साहा, होमी भाभा, सत्येंद्र नाथ बोस, जीएन रामचंद्रन और टी शेषाद्रि) को नोबेल पुरस्कार के लिये कई बार नामांकित किया गया, लेकिन उन्हें पुरस्कार नहीं मिल पाया।
- नोबेल पुरस्कारों में पश्चिमी प्रभुत्व: नोबेल पुरस्कारों पर अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिकों का प्रभुत्व रहा है, जिनके पास मज़बूत वैज्ञानिक बुनियादी ढाँचा और अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र है।
- भौतिकी, रसायन विज्ञान या चिकित्सा के लिये नोबेल पुरस्कार जीतने वाले 653 लोगों में से 150 से ज़्यादा यहूदी समुदाय से (जो कि काफी उच्च अनुपात है) हैं लेकिन इज़राइल को विज्ञान में केवल चार नोबेल पुरस्कार मिले हैं।
विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले भारतीय मूल के वैज्ञानिक:
- हरगोविंद खुराना (वर्ष 1968, चिकित्सा में): आनुवंशिक कोड और उसके प्रोटीन संश्लेषण कार्य को डिकोड करने के लिये।
- सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर (वर्ष 1983, भौतिकी में): तारों की संरचना और विकास के लिये महत्त्वपूर्ण भौतिक प्रक्रियाओं के सैद्धांतिक अध्ययन के लिये।
- उन्होंने दर्शाया कि जब एक निश्चित आकार के तारों का हाइड्रोजन ईंधन समाप्त होने लगता है, तो वह एक सघन, चमकदार तारे में परिवर्तित हो जाता है जिसे सफेद बौना तारा के रूप में जाना जाता है।
- वेंकटरमन रामकृष्णन (वर्ष 2009, रसायन विज्ञान में): राइबोसोम की संरचना और कार्य के अध्ययन के लिये।
अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु प्रमुख सरकारी पहलें क्या हैं?
- अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF)
- टेक्नोलॉजी इनक्यूबेशन और उद्यमियों का विकास (TIDE 2.0)
- वैभव फेलोशिप
- अनुसंधान नवाचार और प्रौद्योगिकी को प्रभावित करने वाली जानकारी (IMPRINT – II)
- अनुसंधान के लिये SERB विज्ञान और प्रौद्योगिकी पुरस्कार (SERB-STAR) पर जानकारी
- सामाजिक विज्ञान में प्रभावशाली नीति अनुसंधान (IMPRESS)
- शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग संवर्धन योजना (SPARC)
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