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क्यों जरूरी है पुस्तकों से मित्रता बढ़ाना? - श्रीनारद मीडिया

क्यों जरूरी है पुस्तकों से मित्रता बढ़ाना?

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विश्व पुस्तक एवं कापीराइट दिवस

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सबसे कम उम्र में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई अपनी आत्मकथा ‘आइ एम मलाला’ में लिखा है कि वह दुनिया की सभ्यता-संस्कृति, सामाजिक स्थिति आदि के बारे में बचपन में जो कुछ जान पाईं, वह पुस्तकों से ही संभव हो सका। भारत और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में भी उन्हें पुस्तकों से ही जानने को मिला। उन्होंने आगे बताया है कि जब वह ग्यारह साल की थीं, तो कैसे उन्होंने अपनी एक दोस्त के गहने चुरा लिए। उन्हें चोरी करने की बुरी लत लग गई थी। पर उन्होंने महात्मा गांधी की बचपन की कहानियों को पढ़ा था। उसमें बापू ने जोर देकर कहा था कि मनुष्य अपनी इच्छाशक्ति के बल पर अपनी बुरी आदत को खत्म कर सकता है।

बापू की बातों पर अमल करते हुए मलाला ने ठान लिया कि वह अब कभी चोरी नहीं करेंगी। मलाला ने यह भी बताया कि महान लोगों की आत्मकथा, उपन्यास पढ़ने के बाद ही उनमें यह भाव आ पाया कि गलती होने या असफलता मिलने पर व्यक्ति को कभी विचलित नहीं होना चाहिए। दोस्तो, यही तो होता है पुस्तक को मित्र बनाने का लाभ। पुस्तकें आपको न केवल बुरी आदतों से दूर करने में मदद करती हैं बल्कि मुश्किलें आने पर एक सच्चे मित्र की तरह साथ भी रहती हैं।

महान लेखक किशोरावस्था से रहे पुस्तक प्रेमी : जिन महान लेखकों की याद में दुनियाभर में वर्ल्ड बुक एंड कापीराइट डे मनाया जाता है, अपनी किशोरावस्था में वे सभी पुस्तक प्रेमी थे। उनमें से एक स्पेनिश लेखक मिगल डे सरवांटेस के बारे में कहा जाता है कि उनका जीवन बेहद तंगहाली में गुजरा था। पर विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने पुस्तकों के प्रति प्रेम को नहीं छोड़ा। बच्चों के सबसे लोकप्रिय लेखक रस्किन बान्ड भी छोटी उम्र में जीवन की मुश्किलों से सामना करने का एक जरिया किताबों को बनाया था।

सफलता के साथी : रोल डाल एक फाइटर पायलट और इंटेलिजेंस आफिसर थे। लेकिन उन्हें 20वीं सदी के बच्चों के सबसे महान स्टोरीटेलर में से एक माना जाता है। अपनी किताब ‘ब्वाय टेल्स आफ चाइल्डहुड’ में उन्होंने यह जानकारी दी कि भले ही जीवन-यापन के लिए उन्हें आर्मी ज्वाइन करनी पड़ी, लेकिन पुस्तकों से उनका लगाव कभी कम नहीं हुआ। दरअसल, पुस्तकें हर कदम पर उनका साथ देती रहीं और अपने अनुभवों को कलमबद्ध करने का आइडिया भी।

आरव सेठ किशोर होने के बावजूद धरती और पर्यावरण को बचाने के लिए कई बड़े-बड़े काम कर चुके हैं। वे एसडीजी चौपाल और एसडीजी फार चिल्ड्रेन के एंबेसडर भी रह चुके हैं। उन्हें अपने काम के लिए जीईसी यंग चेंजमेकर अवार्ड, फारेस्ट मार्शल कान्टेस्ट विनर अवार्ड और एनपीजेएसएस एनवायरमेंटल सेवियर रिकग्निशन पुरस्कार भी मिल चुका है। वह अपना संगठन ‘वी राइज टुगेदर’ भी चलाते हैं।

पढ़ाई के साथ-साथ वह कई सारे काम करते हैं, जाहिर है उन्हें वक्त कम मिलता होगा। फिर भी समय निकाल कर आरव किताबें जरूर पढ़ते हैं। जब वह छोटे थे, तो ‘डायरी आफ विम्पी किड और ‘हैरी पाटर’ खूब पढ़ा करते थे। जब उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर काम करना शुरू किया, तो उन्हें इस बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं थी। उन्होंने बताया, ‘बिल गेट्स ने एक किताब लिखी है- हाउ टू अवाइड ए क्लाइमेट डिजास्टर। जलवायु परिवर्तन से आने वाले संकट को आसान तरीके से समझने का इसे ‘इनसाइक्लोपीडिया’ कहा जा सकता है।

वह इसी किताब को पढ़कर जलवायु परिवर्तन के बारे में विस्तृत रूप से जान पाए। दरअसल, किताबें हमारे दृष्टिकोण को व्यापक बनाती हैं। फिक्शन अलग दुनिया में एक्सप्लोर करने के लिए प्रेरित करती है।’ आरव ने व्यवस्थित तरीके से रहने और जीवन प्रबंधन के लिए सेल्फ हेल्प बुक्स भी पढ़ीं। इस जानर में उनकी पसंदीदा किताब जेम्स क्लियर की ‘एटामिक हैबिट्स’ है। इसके माध्यम से वह यह जान पाए कि सफलता हासिल करने के लिए स्वयं में छोटी और अच्छी आदतें डालनी चाहिए।

बन सकते हैं लीडर : ‘पूर्व राष्ट्रपति और प्रख्यात विज्ञानी डा. एपीजे अब्दुल कलाम की आटोबायोग्राफी है ‘विंग्स आफ फायर’। यह किताब ज्यादातर बच्चों की पसंदीदा है। इसमें अब्दुल कलाम ने अपने जीवन की ऐसी बातें बताई हैं, जिससे कोई भी प्रेरित हो सकता है। जैसे कि कैसे उनकी रुचि विज्ञान में थी और वे किस तरह से राकेट इंजीनियरिंग में एकाग्र होकर आगे बढ़े। समर्पित भाव से आगे बढ़ते हुए कैसे उन्होंने अपनी दिनचर्या को अपने लक्ष्य के अनुकूल बनाया।’ ये बातें कहती हैं मैथिली भाषा की स्टोरीटेलर और बिहार के मधुबनी के आइपीएस स्कूल की छात्रा वैष्णवी झा।

अपने बारे में बताते हुए वह कहती हैं, ‘लाकडाउन के दौरान आलस ने उन्हें घेर लिया था। उन्हें पढ़ाई करने का बिल्कुल मन नहीं करता था। तनाव के वातावरण में‘विंग्स ऑफ फायर’ किताब ने उन्हें सही राह दिखाई। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान स्टोरीटेलर लोपामुद्रा मोहंती की आनलाइन स्टोरीटेलिंग की क्लासेज ज्वाइन की थी।

वहां उन्होंने चेहरे की अभिव्यक्ति और हाथों की भाव-भंगिमा की कला सीखी। साथ में वहां अपने तरीके से कहानी गढ़ना भी सीखा।’ आत्मकथा के अलावा वैष्णवी दूसरी किताबें भी पढ़ती हैं, ताकि मैथिली में कही जाने वाली कहानियों को और रोचक तरीके से प्रस्तुत कर सकें। महापुरुषों के जीवन की कहानियों के माध्यम से वह जान पाईं कि एक लीडर के तौर पर दूसरे बच्चों को किस तरह कोई भी कला सिखाई जा सकती है। लाइफस्टाइल एक्सपर्ट दीनाक्षी अवस्थी ने बताया कि छोटी उम्र में पढ़ी गई पुस्तकों का गहरा प्रभाव बड़े होने पर भी बना रहता है। इसलिए किताबें पढ़ने की आदत बचपन में ही डालनी चाहिए।

नहीं होगा तनाव : अपनी किताब ‘13 स्टेप्स टू ब्लडी गुड मार्क्स’ में बेस्टसेलर लेखक अश्विन सांघी ने बताया है कि तनावमुक्त होकर तथा समय को सही तरीके से मैनेज कर पढ़ाई करने पर परीक्षा में बढ़िया अंक हासिल किए जा सकते हैं। कुछ इसी तरह के विचार रखती हैं पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम में हिस्सा ले चुकीं जिया श्रीवास्तव।

जिया नई दिल्ली के एक केंद्रीय विद्यालय की बारहवीं कक्षा की छात्रा हैं। उनकी बोर्ड परीक्षा काफी नजदीक है, लेकिन पाठ्यक्रम की किताबें पढ़ने के बाद जब भी उन्हें समय मिलता है, वह महापुरुषों की आत्मकथा जरूर पढ़ती हैं। बड़ी होकर न्यूरोलाजिस्ट बनने का सपना देखने वाली जिया ने बताया, ‘अच्छी किताबों ने परीक्षा के दौरान होने वाले तनाव से मुक्ति दिलाने में मेरी मदद की। आत्मकथा या उपन्यास पढ़ने के कारण परीक्षा के समय मैं खुद को संयमित रख पाती हूं। पुस्तकें सफलता-असफलता, दोनों के साथ जीना और आगे बढ़ना सिखाती हैं।’

एकाग्रता व समय प्रबंधन : लेखक डा. सुधीर दीक्षित की किताब ‘टाइम मैनेजमेंट’ ने जीवन की सही राह दिखला दी उत्तर प्रदेश के आरएस नयन इंटरनेशनल स्कूल की छात्रा इरम फातिमा को। उन्हें बचपन से ही आर्ट ऐंड क्राफ्ट का शौक रहा है। इरम ने बताया, ‘मैं अपना काम ठीक ढंग से नहीं कर पाती थी। स्कूल की तरफ से जब मुझे यह किताब पढ़ने को मिली, तो मैं कई सारी नई बातों को जान पाई। मैं किसी भी काम को एकाग्रचित्त होकर करना सीख सकी। पढ़ाई के साथ-साथ अपनी रुचि के काम पेंटिंग को भी समय देने लगी। मुझे ‘क्रिएटिव स्टूडेंट आफ द ईयर 2019’ का अवार्ड भी मिला।’

विश्व पुस्तक व कापीराइट दिवस : यूनेस्को ने सबसे पहले 23 अप्रैल, 1995 को विश्व पुस्तक व कापीराइट दिवस (वर्ल्ड बुक एंड कापीराइट डे) को मनाने की घोषणा की थी। दरअसल, इस दिन महान नाटककार विलियम शेक्सपीयर के साथ-साथ प्रख्यात स्पेनिश लेखकों मिगल डे सरवान्टेस और इंका गर्सिलासो डे ला वेगा की भी पुण्यतिथि है। इन सभी की याद में पूरी दुनिया में हर वर्ष यह दिवस मनाया जाता है। इसे विश्व पुस्तक दिवस (इंटरनेशनल डे आफ बुक) भी कहा जाता है।

नई पुस्तक होती है नई दुनिया की तरह : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के निदेशक युवराज मलिक ने बताया कि पुस्तकों के नियमित अध्ययन से व्यक्तित्व का विकास होने के साथ-साथ ज्ञान भी बढ़ता है। ये हमें आत्मविश्वास से परिपूर्ण बनाती हैं और सोच को विस्तार देती हैं। जीवन के प्रति नये दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करती हैं। पुस्तक पढ़ने को प्रोत्साहित करने के लिए नेशनल बुक ट्रस्ट एशिया के सबसे बड़े विश्व पुस्तक मेले (नई दिल्ली) के साथ-साथ समय-समय पर वर्कशाप, बुक प्रमोशन सेंटर्स, पुस्तक सचल प्रदर्शनी आदि का आयोजन करता रहता है। एक नई पुस्तक एक नई दुनिया की तरह है। पुस्तक मेले अपने आप में एक अलग दुनिया होते हैं।

 

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