तालाब बचाना क्यों जरूरी है?

तालाब बचाना क्यों जरूरी है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 प्रधानमंत्री आजादी के 75वें साल में हर जिले में 75 सरोवर बनाने की बात कर रहे हैं, तभी बंगलूरू विकास प्राधिकरण डोडाबेट्टा हल्ली गांव में चार एकड़ के तालाब पर आवासीय कॉलोनी खड़ा करने के बारे में लोगों की आपत्तियां आमंत्रित कर रहा है. अमृतोत्सव की धूम में तालाब भी जुड़ गये हैं. उत्तर प्रदेश के रामपुर के उत्साही अफसरों ने एक पुराने तालाब पर सीमेंट-टाइल्स का प्रसाधन किया और उसे टैंकर से भर कर देश का पहला अमृत तालाब घोषित कर दिया.

यह सर्वमान्य तथ्य है कि बढ़ते तापमान, सिकुड़ती नदियों, बरसात के घटते दिनों और जल-संसाधन की बड़ी परियोजनाओं के अपेक्षित परिणाम न निकल पाने से बढ़ती आबादी के लिए पुरखों से मिले तालाब ही काम आयेंगे. आधुनिक शिक्षा प्राप्त अफसरों-इंजीनियरों को असल में तालाब की वह समझ नहीं है, जो पारंपरिक समाज को थी. यह सुखद है कि किसी सरकार ने लगभग 78 साल पुरानी एक ऐसी रपट को अमल में लाने की सोची, जो 1943 के भयंकर बंगाल दुर्भिक्ष के बाद ब्रितानी सरकार द्वारा गठित एक आयोग की सिफारिशों में थी.

उस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत जैसे देश में नहरों से सिंचाई के बनिस्पत तालाब खोदने व उनके रखरखाव की ज्यादा जरूरत है. पहली पंचवर्षीय योजना में भी लघु सिंचाई परियोजनाओं यानी तालाबों की बात कही गयी थी. बाद में भी कई योजनाएं बनीं. लेकिन जब आंकड़ों पर गौर करें, तो सभी जगह विकास के लिए रोपी गयीं कॉलोनियों, सड़कों, कारखानों, पुलों आदि को तालाब को समाप्त कर ही बनाया गया.

अनुमानों के अनुसार, आजादी के समय देश में करीब 24 लाख तालाब थे. बरसात का पानी इनमें इकट्ठा हो जाता था, जो भूजल स्तर बनाये रखने के लिए बहुत जरूरी होता था. तालाबों, बावड़ियों और पोखरों की 2000-01 में गिनती की गयी थी. देश में ऐसे जलाशयों की संख्या साढ़े पांच लाख से ज्यादा है. इनमें से करीब 4.70 लाख जलाशय किसी न किसी रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं, जबकि करीब 15 प्रतिशत बेकार पड़े हैं.

आजादी के बाद के 53 सालों में हमारा समाज कोई 20 लाख तालाब चट कर गया. बीस लाख तालाब बनवाने का खर्च आज कई लाख करोड़ से कम नहीं होगा. सनद रहे ये तालाब मनरेगा वाले छोटे गढ्ढे नहीं हैं. इनमें से अधिकतर कई-कई वर्ग किलोमीटर तक फैले हैं. साल 2006-07 की गणना में सरकार ने स्वीकार किया कि देश के ग्रामीण अंचल में 5,23,816 तालाब हैं, जिनमें से 80,128 उपयोग में नहीं आ रहे.

जुलाई, 2021 में जल संसाधन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने संसद को बताया कि 2013-14 की गणना के अनुसार ग्रामीण भारत में 5,16,303 जल निधियां हैं, जिनमें से 53,396 गाद, गंदगी या अन्य कारणों से इस्तेमाल में नहीं हैं. यानी छह साल के अंतराल में ही 7,513 तालाब गुम हो गये. इन आंकड़ों में वे शहरी तालाब शामिल नहीं हैं, जिन्हें विकास के नाम पर पाट दिया गया.

साल 2001 में 58 पुरानी झीलों को पानीदार बनाने के लिए केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना शुरू की थी. इसके तहत मध्य प्रदेश की सागर झील, रीवा का रानी तालाब और शिवपुरी झील, कर्नाटक के 14 तालाबों, नैनीताल की दो झीलों सहित 58 तालाबों की गाद सफाई के लिए पैसा बांटा गया. इनमें राजस्थान के पुष्कर का कुंड और श्रीनगर की डल झील भी थी.

सफाई के लिए पैसा पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों को भी गया था. अब सरकार ने मापा तो पाया कि इन सभी तालाबों से गाद निकली कि नहीं, पता नहीं, लेकिन इसमें पानी पहले से भी कम आ रहा है. केंद्रीय जल आयोग ने जब खर्च की पड़ताल की, पाया कि कई जगह तो गाद निकाली ही नहीं गयी और उसकी ढुलाई का खर्च भी दिखा दिया गया. कुछ जगह गाद किनारों पर ही छोड़ दी गयी, जो अगली बारिश में ही फिर से तालाब में आ गिरी.

दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 2005 में केंद्र सरकार ने जलाशयों की मरम्मत, नवीकरण और जीर्णोद्धार की योजना बनायी. ग्यारहवीं योजना में काम शुरू भी हो गया. राज्य सरकारों को योजना को अमली जामा पहनाना था. इसके लिए कुछ धन केंद्र सरकार और कुछ विश्व बैंक जैसी संस्थाओं से मिलना था. सेंट्रल वाटर कमीशन और सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड को इस योजना को तकनीकी सहयोग देने का जिम्मा दिया गया, जबकि निरीक्षण का काम जल संसाधन मंत्रालय कर रहा है.

बस खटका वही है कि तालाब का काम करने वाले दीगर महकमें तालाब तो तैयार कर रहे हैं, लेकिन तालाब को तालाब के लिए नहीं- मछली वाले को मछली चाहिए, तो सिंचाई वाले को खेत तक पानी, जबकि तालाब पर्यावरण, जल, मिट्टी व जीविकोपार्जन की एक एकीकृत व्यवस्था है और इसे अलग-अलग आंकना बड़ी भूल है. बारहवीं पंचवर्षीय योजना में भी 1,765 करोड़ खर्च कर 2064 तालाबों के जीर्णोद्धार का प्रावधान था, लेकिन योजना की अवधि में मात्र 1160 पर ही काम हुआ.

सूखे पड़े तालाब बानगी हैं कि सरोवर खोदने या सुंदर बनाने से ज्यादा जरूरी उसमें पानी की नैसर्गिक आवक, जल निधि में गंदगी रोकना सुनिश्चित करना और उसका नियमित प्रयोग करना है, न कि प्रचार और नारे.

Leave a Reply

error: Content is protected !!