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पर्वतारोही बनने के लिए फौलादी जिगर-जज्बा क्यों जरूरी है? - श्रीनारद मीडिया

पर्वतारोही बनने के लिए फौलादी जिगर-जज्बा क्यों जरूरी है?

पर्वतारोही बनने के लिए फौलादी जिगर-जज्बा क्यों जरूरी है?

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राष्ट्रीय पर्वतारोहण दिवस पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बछेंद्री पाल का नाम जुबान पर आते ही आंखों के सामने पर्वतों की उंची पहाड़ी दिखने लगती हैं। वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला हैं। पर्वतारोहण खेल नहीं, जज्बा है जिसमें टीम वर्क, फ्लेक्सीबिलिटी, दृढ़ता और मजबूत इरादे का संगम होता है। इसके लिए कठिन परिश्रम रूपी घोर तपस्या करनी होगी। पर्वतारोहण सभी को अपनी तरफ आकर्षित करता है। पर, है बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण? एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पर्वतारोही खिलाड़ियों की संख्या अब गुजरे समय के मुकाबले अच्छी-खासी है।

उसकी वजह ये है कि पर्वत पर जाने वाले खिलाड़ियों के लिए राज्य सरकारें अब हर संभव सहयोग करती हैं। बकायदा टेनिंग दी जाती हैं, प्रशिक्षण का प्रावधान है जिसमें शारीरिक-मानसिक रूप से खिलाड़ियों को मजबूत किया जाता है। जबकि, एक वक्त था जब इस ओर हुकूमतों का ध्यान ज्यादा नहीं हुआ करता था। लेकिन हाल के वर्षों में इस क्षेत्र के चलत हिंदुस्तान की विश्व पटल पर हमारे पर्वतारोहियों ने खूब चर्चांए करवाई।

भारत में कई पर्वतारोही खिलाड़ियों ने अपने असाधारण कारनामे से देश का नाम रौशन किया। वैसे, ये तल्ख सच्चाई है अपने कदमों से गगनचुंबी पर्वतों को नापना अब भी सबके बस की बात नहीं? क्योंकि इस खेल में पर्वतारोही खुद की जान-हानि की जिम्मेदारी लेकर जोखिम में डालता है। खुदा न खास्ता कुछ भी हुआ, उसकी जिम्मेदारी स्वयं की होगी।

पर्वतारोहण क्षेत्र की हालिया एक दुखद घटना को सभी जानते हैं जो उत्तराखंड के पर्वतों पर हुई। उत्तरकाशी के द्रौपदी डांडा-2 पर्वत चोटी के पास हुए अचानक से हिमस्खलन में करीब 26 पर्वतारोहियों की असमय मौत हो गईं, घटना में कई खिलाड़ी लापता भी हुए जिनका अभी तक कोई अता-पता नहीं है। इस घटना में हमने विश्व प्रसिद्व पर्वतारोहण सविता कंसवाल को भी खो दिया है।

जिन्होंने बेहद कठिन और तकनीकी रूप से माउंट मकालु पर एवरेस्ट पर्वतारोहण के 16 दिन के भीतर ही चढ़कर समूचे विश्व में हाहाकार मचा दिया था। जबकि, वो इससे पहले भी चार वर्ष पूर्व में समुद्र तल से करीब सात हजार से भी ज्यादा मीटर ऊंचे त्रिशूल शिखर पर भी पर्वतारोहण का कारनामा कर चुकी थीं।

सविता ने अभावों के भंवर से निकलकर पहाड़ों की रानी बनने की अद्भुत कहानी को इतिहास के पन्नों में दर्ज करवाया था, देश को उन पर हमेशा गर्व रहेगा। हरियाणा की पर्वतारोही अनिता कुंडू ने भी कई कारनामे किए हैं, हाल ही में उन्होंने चीन-नेपाल के दुर्गम पर्वतों को अपने कदमों से नापा है। कुलमिलाकर एक पर्वतारोही के लिए फौलादी जिगर और जज्बे का होना जरूरी है।

पर्वतारोहण क्षेत्र के इतिहास पर नजर डालें तो पहली अगस्त को राष्ट्रीय पर्वतारोहण दिवस मनाया जाता है जिसका श्रीगणेश 2015 में बॉबी मैथ्यूज और उनके दोस्त जोश मैडिगन को संमानित करने के बाद हुआ। दोनां ने न्यूयॉर्क में एडिरोंडैक पर्वत की तकरीबन सभी 46 चोटियों पर सफलतापूर्वक चढ़ाई करके कभी ना टूटने वाला कीर्तिमान स्थापित किया है।

दोनों संयुक्त रूप से अगस्त की पहली तारीख को अंतिम चोटी, व्हाइटफेस माउंटेन पर पहुंचे थे। इसलिए ये दिवस पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के संरक्षण और संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भी खास माना जाता है। राष्ट्रीय पर्वतारोहण दिवस मनाने के कई तरीके हैं। खिलाड़ी अपने स्थानीय पहाड़ों में पदयात्रा के लिए जा सकते हैं, किसी नई चोटी पर चढ़ सकते हैं, या बस पर्वतारोहण के बारे में और अधिक सीख सकते हैं।

यदि आप पर्वतारोहण में नए हैं, तो आरंभ करने में आपकी सहायता के लिए कई संसाधन उपलब्ध हैं। पर, इसके लिए सबसे पहले संपूर्ण जानकारी लेनी चाहिए और सरकारी या निजी अकादमी में मुकम्मल प्रशिक्षण जरूर प्राप्त करना चाहिए।

 

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